कही फूल, कहीं कांटे!
रायपुर मंगलवार। दिनांक 19 अक्टूबर 2010
कही फूल, कहीं कांटे! यह कैसा
अडियल रवैया है निगम का?
जयस्तंभ चौक में आरएसएस के पथ संचलन पर किसी समय फूलों की वर्षा करने वाली रायपुर की महापौर को यह अचानक क्या हो गया कि उन्होंने विजयादशमी पर आरएसएस को सप्रे शाला प्रांगण में शस्त्र पूजन करने पर कठोर कार्रवाई करने का ऐलान कर दिया? हालांकि बाद में यह मामला सलटा लिया गया और पूजा वहीं हुई जहां यह वर्षो से होती आ रही है। महापौर ने अपने इस विरोध की वजह बताते हुए सुप्रीम कोर्ट का हवाला दिया जिसमेेंं स्कूल प्रांगण में कोई भी बाहरी कार्यक्रम आयोजित करने पर रोक लगी हुई है। अगर ऐसा है तो संघ के इस आयोजन से पहले इसी मैदान में जन्माष्टमी का कार्यक्रम भी आयोजित किया गया था उसपर रोक क्यों नहीं लगाई गई? महापौर ने कुछ ही दिन पहले आरएसएस के पथ संचलन के दौरान फूल बरसाकर सभी कांग्रेसियों को चकित कर दिया था। अब अचानक आये नये बदलाव ने फिर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। कांग्रेस की टिकिट पर महापौर बनीं किरणमयी नायक का रवैया शुरू से ही टकराहट का रहा है। वे यह जानती हंंै कि भाजपा सरकार से तालमेल बनाये बगैर शहर का विकास संभव नहीं है फिर भी न केवल सरकार से उन्होंने कई मामलों में पंगा लिया बल्कि अपनी ही पार्टी कांग्रेस में वे आलोचना का शिकार बनी। उनसे मतभेद के चलते एक पार्षद ने जहां एमआईसी से इस्तीफा दिया वहीं अनेक पार्षदों को अपने खिलाफ कर निया। दो पार्षदों ने दिल्ली में जाकर कांग्रेस आलाकमान से इसकी शिकायत की तो कई पार्षदों ने कांगेस के वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा से भी उनके कार्यप्रणाली की शिकायत की। महापौर ने अपनी कार्यप्रणाली का जो रास्ता चुना है। वह इस शहर के विकास के लिये तो ठीक नहीं है, बल्कि खुद निगम के लिये भी ठीक नहीं है। निगम की माली हालत खराब हो चुकी है, आय के साधन बंद हो चुके हैं। कर्मचारियों को छठवें वेतन आयोग के तहत पैसा देने की स्थिति में नहीं हैं। ठेकेदारों को पैसा नहीं मिलने के कारण वे काम रोक देते हैं। सफाई का काम जब मर्जी आता है तब चलता है। निगम में कांग्रेस का कब्जा होने के बाद आम जनता को लगा था कि लेडी मेयर के आक्रामक रवैये से शहर का तेजी से विकास होगा लेकिन एक साल के अंदर ही सारी हकीकत लोगों के सामने आ गई। रायपुर नगर निगम व सरकार के बीच किसी प्रकार का तालमेल नहीं हैं यहां तक कि विपक्ष से निर्वाचित निगम सभापति और महापौर के बीच टकराहट की स्थिति है। निगम कमिश्रनर कुछ करते हैं और महापौर कुछ। इस हाल में इस शहर का क्या भला होगा? इन परिस्थितियों में क्या निगम फिर से प्रशासक कार्यकाल की ओर नहीं बढ़ रहा?
कही फूल, कहीं कांटे! यह कैसा
अडियल रवैया है निगम का?
जयस्तंभ चौक में आरएसएस के पथ संचलन पर किसी समय फूलों की वर्षा करने वाली रायपुर की महापौर को यह अचानक क्या हो गया कि उन्होंने विजयादशमी पर आरएसएस को सप्रे शाला प्रांगण में शस्त्र पूजन करने पर कठोर कार्रवाई करने का ऐलान कर दिया? हालांकि बाद में यह मामला सलटा लिया गया और पूजा वहीं हुई जहां यह वर्षो से होती आ रही है। महापौर ने अपने इस विरोध की वजह बताते हुए सुप्रीम कोर्ट का हवाला दिया जिसमेेंं स्कूल प्रांगण में कोई भी बाहरी कार्यक्रम आयोजित करने पर रोक लगी हुई है। अगर ऐसा है तो संघ के इस आयोजन से पहले इसी मैदान में जन्माष्टमी का कार्यक्रम भी आयोजित किया गया था उसपर रोक क्यों नहीं लगाई गई? महापौर ने कुछ ही दिन पहले आरएसएस के पथ संचलन के दौरान फूल बरसाकर सभी कांग्रेसियों को चकित कर दिया था। अब अचानक आये नये बदलाव ने फिर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। कांग्रेस की टिकिट पर महापौर बनीं किरणमयी नायक का रवैया शुरू से ही टकराहट का रहा है। वे यह जानती हंंै कि भाजपा सरकार से तालमेल बनाये बगैर शहर का विकास संभव नहीं है फिर भी न केवल सरकार से उन्होंने कई मामलों में पंगा लिया बल्कि अपनी ही पार्टी कांग्रेस में वे आलोचना का शिकार बनी। उनसे मतभेद के चलते एक पार्षद ने जहां एमआईसी से इस्तीफा दिया वहीं अनेक पार्षदों को अपने खिलाफ कर निया। दो पार्षदों ने दिल्ली में जाकर कांग्रेस आलाकमान से इसकी शिकायत की तो कई पार्षदों ने कांगेस के वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा से भी उनके कार्यप्रणाली की शिकायत की। महापौर ने अपनी कार्यप्रणाली का जो रास्ता चुना है। वह इस शहर के विकास के लिये तो ठीक नहीं है, बल्कि खुद निगम के लिये भी ठीक नहीं है। निगम की माली हालत खराब हो चुकी है, आय के साधन बंद हो चुके हैं। कर्मचारियों को छठवें वेतन आयोग के तहत पैसा देने की स्थिति में नहीं हैं। ठेकेदारों को पैसा नहीं मिलने के कारण वे काम रोक देते हैं। सफाई का काम जब मर्जी आता है तब चलता है। निगम में कांग्रेस का कब्जा होने के बाद आम जनता को लगा था कि लेडी मेयर के आक्रामक रवैये से शहर का तेजी से विकास होगा लेकिन एक साल के अंदर ही सारी हकीकत लोगों के सामने आ गई। रायपुर नगर निगम व सरकार के बीच किसी प्रकार का तालमेल नहीं हैं यहां तक कि विपक्ष से निर्वाचित निगम सभापति और महापौर के बीच टकराहट की स्थिति है। निगम कमिश्रनर कुछ करते हैं और महापौर कुछ। इस हाल में इस शहर का क्या भला होगा? इन परिस्थितियों में क्या निगम फिर से प्रशासक कार्यकाल की ओर नहीं बढ़ रहा?
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