स्वच्छ भारत अभियान के तीन साल ...!
स्वच्छ भारत अभियान के तीन साल ...!
भले ही हम दावा करें कि स्वच्छता के मामले में हमने बहुत कुछ कर लिया है किन्तु हकीकत यही है कि अभी हमें बहुत कुछ करना है.आज सुबह जब मैं मार्निंग वाक पर निकला तो मुझे इस बात का एहसास हुआ कि इतना सब कुछ होने के बाद भी लोग जागरूक नहीं है. हम राजधानी मे रह रहे हैं और यहां की गरीब बस्ती में रहने वाले आज भी शौचालय के अभाव में बोतल और लौटा लेकर खुले मैदान का सहारा ले रहे है किन्तु इसके बावजूद पिछले तीन वर्षों में स्वच्छता को लेकर समाज में एक सकारात्मक माहौल बना है किन्तु अभी भी बहुत कुछ करना है. सबसे पहली बात तो यह कि गंदगी फैलाने की आदत से बाज नहीं आने वालों के प्रति थोड़ी बहुत सख्ती जरूरी है उसके बगैैर इस मिशन के पूरा होने की संंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंभावना कम है. कागजी तौर पर देखा जाये तो सफाई देश के एजेंडे पर आ गई है. सर्वे के अनुसार शहरों और कस्बों के करीब आधे लोगों ने माना है कि पिछले तीन वर्षों में स्वच्छ भारत स्कीम का ठीकठाक असर उन्हें अपने आसपास देखने को मिला है लोग यह भी मान रहे हैं कि एकदम से तो सबकुछ नहीं बदला है, मगर दिशा सही हैं किन्तु उसे मार्गदर्शन की जरूरत है. इस विशाल देश में, जहां सफाई कभी मुद्दा ही नहीं रहा, वहां इसे एक जन अभियान का रूप लेने में वक्त तो लगेगा ही.असल में इस मामले में आम लोगों को जोडऩे के साथ उन लोगों को भी पूरी अहमियत देने की जरूरत है जो विपरीत परिस्थितियों में सफाई कार्य में लगे रहते हैं. अभी एक टीवी चैनल में स्वच्छता अभियान के ब्राण्ड एम्बेसडर अमिताभ बच्चन के साथ कुछ ऐसे लोगों को भी वार्ता में शामिल किया गया था जो वास्तव में सफाई के लिये प्रमुख भूमिका निभाते हैं उनका कहना था कि भेदभाव से वे इतना परेशान है कि कतिपय विपरीत परिस्थितियों वाले स्थल पर जहां कोई आम जन जा भी नहीं सकता वहां हम काम करकेे निकलते हैं तो हमें पानी पिलाने में भी लोग हिचकते हैं. इस तरह की भावना इस अभियान में रोडा़ अटकाता है. असल में सफाई अभियान एक जागरूकता लाने का माध्यम भर है असल सफाइ्र्र का जिम्मा उन लोगों का है जिस काम में दिन रात बिना किसी हिचक के लगे रहते हैं. उन्हें सेल्यूट करने की जरूरत है उसके बगैर तो सफाई संभव ही नहीं है कथित रूप से अभियान में जो लोग जुड़ते हैं उनमें से अधिकांश अपना चेहरा वीडियो पर देखने दिखाने के लिये ही यह सब करते हैं असल काम करने वालों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है.हम यह कहकर स्वच्छता अभियान पर किसी प्रकार का प्रश्र चिन्ह नहीं लगा रहे है इस अभियान का ही नतीजा है कि देश में स्वच्छता को लेकर एक माहौल बना है. गांवों में जहां आज तक लोग बाहर शौच के लिये जाते थे अब अपने घर में बने शौचालय का उपयोग कर रहे हैं. कई लड़कियों ने अपनी ससुराल में शौचालय बनाने पर जोर दिया और इसके लिए डटी रहीं.कुछ ने तो लड़के के यहां शौचालय न होने के कारण शादी तक से इनकार कर दिया। गांवों में लोग अब खुद आगे आकर शौचालय बनवा रहे है यह परिवर्तन निरंतर प्रचार की ही देन है. हालांकि कई जगहों से जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी की बात सामने आ रही है. कूड़ेदान की व्यवस्था करने, कूड़ा उठाने और उसकी डंपिंग और रीसाइक्लिंग करने का काम नगर निगम का है, इसमें ढीलापन रहने से आम नागरिकों की कोशिशें व्यर्थ हो जाती हैं, इसलिए निगमों को चुस्त-दुरुस्त होना होगा सबसे बड़ी बात है कि स्वच्छता को जीवन पद्धति का एक हिस्सा बनाना होगा. इसका सीधा संबंध हमारे स्वास्थ्य से है. लोगों को इस बात के लिये भी तैयार करना होगा कि वे किसी सार्वजनिक स्थल,कार्यालय अथवा अन्य किसी स्थान पर बने वाष बेसिन अथवा दीवाल पर नहीं थूकेंगे और ऐसा करना भी हो तो उसे ऐसे स्थान पर करें जहां लोगों का आना जाना न होता हो.सरकारी स्थर पर इस बात का प्रयास भी होना चाहिये कि ऐसे स्थानों को चुनकर यहां वहां डस्ट बीन की व्यवस्था करें ताकि लोगो को कचरा करते समय यह डस्ट बीन नजर आये और कचरा उसी में डाले. वरना वैसा ही होगा जैसे प्रधानमंत्री को किसी कार्यक्रम में हाथ साफ करने के बाद कागज को अपनी जेब में रखना पड़ा.
भले ही हम दावा करें कि स्वच्छता के मामले में हमने बहुत कुछ कर लिया है किन्तु हकीकत यही है कि अभी हमें बहुत कुछ करना है.आज सुबह जब मैं मार्निंग वाक पर निकला तो मुझे इस बात का एहसास हुआ कि इतना सब कुछ होने के बाद भी लोग जागरूक नहीं है. हम राजधानी मे रह रहे हैं और यहां की गरीब बस्ती में रहने वाले आज भी शौचालय के अभाव में बोतल और लौटा लेकर खुले मैदान का सहारा ले रहे है किन्तु इसके बावजूद पिछले तीन वर्षों में स्वच्छता को लेकर समाज में एक सकारात्मक माहौल बना है किन्तु अभी भी बहुत कुछ करना है. सबसे पहली बात तो यह कि गंदगी फैलाने की आदत से बाज नहीं आने वालों के प्रति थोड़ी बहुत सख्ती जरूरी है उसके बगैैर इस मिशन के पूरा होने की संंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंंभावना कम है. कागजी तौर पर देखा जाये तो सफाई देश के एजेंडे पर आ गई है. सर्वे के अनुसार शहरों और कस्बों के करीब आधे लोगों ने माना है कि पिछले तीन वर्षों में स्वच्छ भारत स्कीम का ठीकठाक असर उन्हें अपने आसपास देखने को मिला है लोग यह भी मान रहे हैं कि एकदम से तो सबकुछ नहीं बदला है, मगर दिशा सही हैं किन्तु उसे मार्गदर्शन की जरूरत है. इस विशाल देश में, जहां सफाई कभी मुद्दा ही नहीं रहा, वहां इसे एक जन अभियान का रूप लेने में वक्त तो लगेगा ही.असल में इस मामले में आम लोगों को जोडऩे के साथ उन लोगों को भी पूरी अहमियत देने की जरूरत है जो विपरीत परिस्थितियों में सफाई कार्य में लगे रहते हैं. अभी एक टीवी चैनल में स्वच्छता अभियान के ब्राण्ड एम्बेसडर अमिताभ बच्चन के साथ कुछ ऐसे लोगों को भी वार्ता में शामिल किया गया था जो वास्तव में सफाई के लिये प्रमुख भूमिका निभाते हैं उनका कहना था कि भेदभाव से वे इतना परेशान है कि कतिपय विपरीत परिस्थितियों वाले स्थल पर जहां कोई आम जन जा भी नहीं सकता वहां हम काम करकेे निकलते हैं तो हमें पानी पिलाने में भी लोग हिचकते हैं. इस तरह की भावना इस अभियान में रोडा़ अटकाता है. असल में सफाई अभियान एक जागरूकता लाने का माध्यम भर है असल सफाइ्र्र का जिम्मा उन लोगों का है जिस काम में दिन रात बिना किसी हिचक के लगे रहते हैं. उन्हें सेल्यूट करने की जरूरत है उसके बगैर तो सफाई संभव ही नहीं है कथित रूप से अभियान में जो लोग जुड़ते हैं उनमें से अधिकांश अपना चेहरा वीडियो पर देखने दिखाने के लिये ही यह सब करते हैं असल काम करने वालों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है.हम यह कहकर स्वच्छता अभियान पर किसी प्रकार का प्रश्र चिन्ह नहीं लगा रहे है इस अभियान का ही नतीजा है कि देश में स्वच्छता को लेकर एक माहौल बना है. गांवों में जहां आज तक लोग बाहर शौच के लिये जाते थे अब अपने घर में बने शौचालय का उपयोग कर रहे हैं. कई लड़कियों ने अपनी ससुराल में शौचालय बनाने पर जोर दिया और इसके लिए डटी रहीं.कुछ ने तो लड़के के यहां शौचालय न होने के कारण शादी तक से इनकार कर दिया। गांवों में लोग अब खुद आगे आकर शौचालय बनवा रहे है यह परिवर्तन निरंतर प्रचार की ही देन है. हालांकि कई जगहों से जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी की बात सामने आ रही है. कूड़ेदान की व्यवस्था करने, कूड़ा उठाने और उसकी डंपिंग और रीसाइक्लिंग करने का काम नगर निगम का है, इसमें ढीलापन रहने से आम नागरिकों की कोशिशें व्यर्थ हो जाती हैं, इसलिए निगमों को चुस्त-दुरुस्त होना होगा सबसे बड़ी बात है कि स्वच्छता को जीवन पद्धति का एक हिस्सा बनाना होगा. इसका सीधा संबंध हमारे स्वास्थ्य से है. लोगों को इस बात के लिये भी तैयार करना होगा कि वे किसी सार्वजनिक स्थल,कार्यालय अथवा अन्य किसी स्थान पर बने वाष बेसिन अथवा दीवाल पर नहीं थूकेंगे और ऐसा करना भी हो तो उसे ऐसे स्थान पर करें जहां लोगों का आना जाना न होता हो.सरकारी स्थर पर इस बात का प्रयास भी होना चाहिये कि ऐसे स्थानों को चुनकर यहां वहां डस्ट बीन की व्यवस्था करें ताकि लोगो को कचरा करते समय यह डस्ट बीन नजर आये और कचरा उसी में डाले. वरना वैसा ही होगा जैसे प्रधानमंत्री को किसी कार्यक्रम में हाथ साफ करने के बाद कागज को अपनी जेब में रखना पड़ा.
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