भारत में 19 करोड़ लोग रोजाना भूखे पेट सोते हैं








 देश में चार में से एक बच्चा कुपोषण का शिकार है। 
 58 फीसदी बच्चों की ग्रोथ 2 साल से कम उम्र में रुक जाती है 
...और दूसरी और वीवीआईपी संस्कृति में जीने वाला एक पूरा कुनबा भी है जो हीरे और सोने से लदा है फिर भी खुश नहीं!
इतनी सुविधाएं कि आंखे फटी रह जाये!


हम भले ही अपने आपको विश्व के बड़े देशों के समकक्ष स्थापित करें लेकिन हकीकत हमही जानते हैं कि हमारे देश का एक बड़ा समुदाय नंगा, भूखा और बहुत गरीब है जबकि मुट्टीभर लोगों के हाथ में बहुत कुछ आ गया है और वह देश की जनता को उंगलियों पर नचाने की ताकत भी रखता हैं. हां हम जिस प्रजातांत्रिक व्यवस्था में जी रहे हैं उसमें सत्तासीन कई लोगों की सपंत्ति से दूसरे देशों की तुलना करेंं तो यह उनसे कई गुना है जबकि जिनकी मदद से वे इस मुकाम पर पहुंचे हैं वे उनके सामने एकदम बौने हैं. आजादी के बाद के वर्षो में ऐसे लोगों की संपत्ति मेंं जो इजाफा हुआ है वह आश्चर्यजनक ,अविश्वसनीय है शायद यही कारण है कि देश में राजनीतिक दलों में घुसने और कुर्सी पाने की होड़ सी मची हुई है.इसमें भी वे लोग हैं जिसके पास अकूट संपत्ति है या जिनके पास मैन पावर है.मौजूदा लोकसभा की ही बात करें तो उसमें 442 सांसद करोड़पति हैं. एक सांसद की संपत्ति तो 683 करोड़ भी है. वहीं एक सांसद ऐसे भी मिले, जिनकी संपत्ति के आगे 34 हजार रुपये लिखा हुआ है.अर्थात वह ही इन सबमें सबसे गरीब है. राज्यसभा में पहुेंचे  57 नए सदस्यों में से 55 करोड़पति हैं.जो सबसे अमीर सांसद हैं उनकी संपत्ति 252 करोड़ बताई जाती है.आप यह जानकर भी हैरान रह जायेंगे जब आपको पता चलेगा की भारतीय सांसदो के ऊपर हर साल कितना खर्च होता है, उसकी कितनी सैलरी है और उसे अपनी सैलरी के अलावा और क्या क्या सुविधाएं मिलती है. ऐसी सुविधाएं कि हम और आप उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते. भारत के असली वीआईपीज तो यही लोग हैं जो आज जनता के पैसों को पानी की तरह खर्च कर सुविधाएं ग्रहण करते हैं. उनको  मिलने वाली सुविधाए, वेतन और अन्य भत्तो के बारे में सुनने के लिये आपको साँस रोककर इसे पढऩा पड़ेगा कि एक भारतीय सांसद को 50,000 रुपए प्रतिमाह का वेतन मिलता है जो पूरी तरह से टैक्स फ्री होती है. सांसदों को 3 टेलीफोन लाइन फ्री मिलती है जिनसे वह 1 लाख 70 हजार फोन कॉल हर महीने फ्री कर सकते है .उन्हें हर महीने अपने स्टाफ खर्चे के 45,000 रुपए और 15,000 रुपए स्टेशनरी व अन्य डाक व्यय आदि के मिलते हैं,इनके घर के अन्य खर्चे जैसे फर्नीचर, धोबी आदि के खर्चे भी सरकार द्वारा या जनता की जेब से काटकर फ्री दिए जाते हैं. हर सांसद अपने घर के लिए 50,000 यूनिट बिजली फ्री इस्तेमाल कर सकता है और जाहिर सी बात है की पानी तो पूरी तरह से ही फ्री मिलता है. भारत का कोई भी सांसद पूरे देश में कही भी फर्स्ट क्लास रेल में फ्री यात्रा कर सकता है और इसके अलावा इन्हें साल में 34 फ्री एयर टिकट भी मिलते है. सांसदों को सरकार की तरफ से जो बंगला मिलता है वह पूरी तरह से सज्जित होता है अर्थात उसमे एसी, फ्रिज, टीवी पहले से ही लगे हुए होते है और पूरे बंगले की मेंटेनेंस भी जैसे रंग रोगन, फर्नीचर आदि की देखभाल आदि का व्यय भी सरकार की तरफ से किया जाता है. माननीयों का अधिकतर चिकित्सा व्यय केंद्र सरकार की तरफ से 'चिकित्सा सेवा योजनाÓ के अन्तर्गत किये जाते हैं.जब भी कोई सांसद अधिकारिक रूप से विदेश यात्रा पर जाता है तो इन्हें फ्री बिजनेस क्लास टिकट दी जाती है तथा  दैनिक यात्रा भत्ता भी अलग से दिया जाता है जो यात्रा के लिए जाने वाले देश के ऊपर आधारित होता है.अपने निर्वाचन क्षेत्र में खर्च करने के लिए इन्हें प्रतिमाह 45,000 रुपए अलग से दिए जाते है. सांसदों को लोकसभा अधिवेशन में हिस्सा लेने के लिए 2,000 रुपए प्रतिदिन अलग से दिए जाते है और लोकसभा के हर साल 3 अधिवेशन होते है जो कुल 150 दिनों के होते है और अगर आप इन सबका हिसाब जोडेंगे तो कुल बनता है 3 लाख रुपए, जो सिर्फ लोकसभा कार्यवाही में हिस्सा लेने के लिए ही बनता है. लोकसभा अधिवेशन के दौरान सांसदों की पत्नियों को देश के किसी भी हिस्से से दिल्ली आने के लिए 8 बार फ्री एयर टिकट मिलते है- इसका हाल ही खूब दुरूपयोग करने का एक बड़ा मामला भी सामने आ चुका है. जहां तक ट्रेन से आने-जाने की बात है यह तो पूरी तरह से फ्री !  यदि कोई भी व्यक्ति इस देश में एक बार सांसद बन जाता है तो वह पूरी जिंदगी 20,000 रुपए की पेंशन पाने का हकदार बन जाता है याने वह कभी भी बेरोजगार इस जन्म में नहीं रहेगा. अगर कोई व्यक्ति पुरे 5 साल के लिए सांसद बना रहता है तो उसकी पेंशन में प्रति वर्ष 15,00 रुपए की अतिरिक्त वृद्धि का विधान भी हमारे माननीयों ने ही बना रखा है.अगर हम सीधे सीधे हिसाब लगायें तो हर भारतीय सांसद को 3 लाख रुपए सीधे मिलते हैं, इसके अलावा वह किसी भी सरकारी और निजी नौकरी के अलावा किसी भी प्रकार का व्यापार करने के लिए भी मुक्त है, सबसे बड़ी बात यह है की अगर कोई सांसद लोकसभा के अधिवेशन में भी शामिल नहीं होता तो भी उसे उपरोक्त सारी सुविधाएं मिलती रहेगी. यह सारी सुविधाओं के बावजूद हमारे माननीय खुश नहीं है वे अपना वेतन भत्ता बढाने की मांग करते रहते हैं. चे चाहते हैं कि उनका वेतन भत्ता कैबिनेट सचिव से ज्यादा किया जाये. तर्क यह दिया जाता है कि सांसदों के पास काफी संख्या में लोग मदद के लिए आते रहते हैं और ऐसे में उन्हें अपने घर से खर्च करना होता है. जब समाज सेवा के लिये निकले हैं तो सरकार के खजाने की तरफ देखकर उसपर क्यों आश्रित रहते हो?. यह खजाना तो जनता के पैसे से देश के विकास के लिये भरता है.दिलचस्प बात तो यह है कि विभिन्र राजनीतिक दल जो हर मामले में एक दूसरे के खिलाफ बोलते और झगड़ते रहते हैं वह जब वेतन या भत्ते की बात करते हैं तो सारा ध्वेष भूल जाते हैंॅ तथा एक दूसरे के स्वर में स्वर मिलाते हैं इसमें सत्ता पक्ष भी एक उनका साथ देने लग जाता है. इस लोकसभा में भी यह मांग उठी थी किन्तु प्रधानमंत्री ने आंखे दिखाई तो यह मामला शांत हो गया वरना आज माननीयों की तनखाह और भत्ते का आंकड़ा यह नहीं होता.भारत में भूख एक ''गंभीरÓÓ समस्या है. 119 देशों के वैश्विक भूख सूचकांक में भारत 100वें पायदान पर है1 हम उत्तर कोरिया और बांग्लादेश जैसे देशों से भी पीछे है लेकिन पाकिस्तान से आगे हैं. इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट (आईएफपीआरआई) ने कहा है कि बच्चों में कुपोषण की उच्च दर से देश में भूख का स्तर इतना गंभीर है कि सामाजिक क्षेत्र को इसके प्रति मजबूत प्रतिबद्धता दिखाने की जरूरत है। पिछले वर्ष भारत इस सूचकांक में 97वें स्थान पर था. झारखंड के सिमडेगा से आज ही मिली एक रिपोर्ट बेहद हैरान करने वार्ली है. जहां कुछ दिनों से भूखी 11 साल की एक बच्ची की मौत हो गई. स्थानीय राशन डीलर ने महीनों पहले उसके परिवार का राशन कार्ड रद्द करते हुए अनाज देने से इनकार कर दिया था. राशन डीलर की दलील थी कि राशन कार्ड आधार नंबर से लिंक नहीं है, इसलिए अनाज नहीं मिल सकता. ंभूख से दम तोडती बच्ची की व्यथा झकझोर देती है.इस परिवार ने 4-5 दिनों से कुछ नहीं खाया था. स्कूल में खाना मिलता था लेकिन दुर्गा पूजा की छुट्टियों की वजह से स्कूल से खाना भी नहीं मिल पाया.  इधर विश्व बैंक ने प्रमाण स्वरुप एक आंकड़ा जारी किया है जिसके अनुसार वर्ष 2015 में भारत में अत्यधिक गरीबी वाली आबादी 9.6 प्रतिशत तक पहुंच गई है जबकि 2012 में यह आंकड़ा 12.8 प्रतिशत था.वर्ष 1990 से जबसे विश्व बैंक ने यह आंकड़े इक_े करने शुरु किए हैं तबसे पहली बार ऐसी कमी दिखाई दी है ऐसा तब है जब ग्लोबल हंगर इंडेक्स के आंकड़ों के अनुसार भारत में 19 करोड़ लोग रोजाना भूखे पेट सोते हैं. देश में चार में से एक बच्चा कुपोषण का शिकार है. 58 फीसदी बच्चों की ग्रोथ भारत में 2 साल से कम उम्र में रुक जाती है दुनिया में भारत की गरीबी बिकती रही है. ऑस्कर के लिए नामित होने वाली अधिकतर फिल्में वहीं हैं जिनमें भारत की गरीबी और भूखमरी को दिखाया गया हो- आखिरकार भूखमरी से जद्दोजहद करने वालों की विदेशियों की ओर से तैयार कहानी स्लम डॉग मिलेनियम ऑस्कर पुरस्कार जीतने में सफल हो ही गई. अब गरीबी के साथ भूख भी बिकने लगेगी.दुनिया में तेल के भाव पानी से भी सस्ते हो जाने तथा रिकॉर्ड स्तर पर गिर जाने के बावजूद भी मंहगाई से जनता को कोई राहत नहीं मिल पा रही है. रोजमर्रा की चीजों के भाव आसमान छू रहे हैं और दाल गरीब की थाली में से गायब होकर अमीरों का महंगा व्यंजन बन चुकी है कुछ क्षेत्रों में तो गरीब घास, फूस और बथुए के सेवन के सहारे जिंदा रहने का प्रयास कर रहे हैं .एक व्यक्ति को गाय के साथ झूठन खाते देख कोई भी इस बात का तो अंदाज लगा सकता है कि देश आजादी के सत्तर साल में कितना आगे बढ़ चुका है?और तो और सार्वजनिक वितरण प्रणाली की खामियों और व्याप्त भ्रष्टाचार ने लोगों को अकाल मृत्यु मरने को मजबूर कर दिया है. वितरण किए जाने वाले अनाज का 50 प्रतिशत से भी अधिक वितरण, परिवहन और भंडारण की खामियों के चलते नष्ट हो जाता है या बाजार में ऊंचे दाम पर बेच दिया जाता है. भारत के लिए एक शर्मनाक खबर यह भी है कि भूखमरी के मामले में हमारे हालात पाकिस्तान और बंगलादेश जैसे देशों से भी कहीं ज्यादा खराब हैं -विश्व परिदृश्य में देखा जाए तो रुस के नेतृत्व में साम्यवादी सोच का सामना पश्चिमी सोच के साथ होने के उपरांत राज्यों की अर्थव्यवस्था में हस्तक्षेप बढ़ा था किंतु वर्तमान में भारत सहित दुनिया के तमाम देशों में यह विमर्श भारी पड़ रहा है कि सामाजिक क्षेत्रों में राज्य का दखल कम से कम होना चाहिए. भारत एक विकासशील देश है गुलामी की जंजीरों से निकल आने के बावजूद साम्राज्यवादी ताकतों के आगे झुकने को मजदूर है.भारतीय बाजार अभी भी चीन में तैयार माल से भरे पड़े हैं. वर्तमान प्रधानमंत्री की महत्वाकांक्षी योजना 'मेक इन इंडियाÓ का बहुचर्चित लोगो मशीनी बाघ एक विदेशी कंपनी विडन-केनेडी इंडिया लिमिटेड की भारतीय इकाई ने तैयार किया है.देश के प्राय: नगरों  के बाहर एक चुंगी नाका हुूआ करता था केवल माल लाने ले जाने पर ही चुंगी कर लगता था मगर आज डबल जीएसटी और  टोल प्लाजा युग में प्रत्येक आने जाने वाली गाड़ी पर कर है. जीएसटी राज्य और केेन्द्र दोनों वसूल कर रहा है. विश्वबैंक ने भारत की डिजीटल पहचान प्रणाली 'आधारÓ की  तारीफ की है.विश्व बैंक के मुख्य कार्यकारी ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा है कि आज दुनिया की 40 प्रतिशत आबादी इंटरनेट से जुड़ी है . उन्होंने विश्व को सावधान भी किया है कि यह उपलब्धियां जश्न मनाने लायक नहीं हैं. उन्होंने इसके बीच एक नए उपेक्षित वर्ग के उबरने की आशंका भी व्यक्त की. विश्व में 20 प्रतिशत आबादी अभी भी निरक्षर है तथा निरक्षरों का आंकड़ा सबसे अधिक भारत और चीन में है. मनरेगा मजदूरों के पारिश्रमिक के करोड़ों रुपए सरकार के पास बकाया रहने की स्थिति बता रही है कि जॉबकार्डधारकों के इस महत्वाकांक्षी कानून के प्रति दिलचस्पी क्यों नहीं है. 100 दिन का रोजगार देने की गारंटी के बावजूद मानसिक, आर्थिक, सामाजिक और शारीरिक प्रताडऩा के बावजूद मजदूर दूसरे राज्यों में जाकर दैनिक मजदूरी को तरजीह देते हैं.नोटंबदी के बाद जहां लघुू उद्योग खत्म प्राय: हो गये है वहीं अब आईटी में भी रोजगार मिलना मुश्ििकल हो गया है. जनसंख्या पर किसी प्राकर का नियंत्रण किसी प्रकार नहीं है अपराध और अपराधी बढ़ रहे है.बेरोजगारी बढ़ रहे हैं.एक तरफ वोट जनता है तो दूसरी तरफ सिंहासन भोगी!               



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