कोई दलील नहीं, कोई सुनवाई नहीं- फैसला ऑन द स्पॉट!
हमारे आसपास होने वाली कुछ घटनाओं को सुनकर या देखकर हमारा सिर शर्म से झुक जाता है और उस कानून पर भी तरस आता है जिसके रहते मनुष्यों या जानवरों पर जुर्म करने वालों पर कार्रवाई नहीं होती. हाल ही बिहार के अजासैरा जिले की ग्राम पंचायत में एक व्यक्ति जिसका नाम महेश ठाकुर है को कथित रूप से बिना अनुमति के घर में घुसकर आने के लिए इतनी बड़ी सजा दी कि वह किसी के मुंह दिखाने के लायक नहीं रहा, जिसने भी सुना वह दहल उठा. वह दिन दीवाली का था और उस दिन पूरा देश खुशियां मना रहा था तथा भगवान राम के अयोघ्या वापसी की खुशी में पटाखें फोड़ रहा था तभी नालंदा पंचायत के फरमान पर एक शख्स लोगों के थूक चाटकर अपनी सजा पूरी कर रहा था। कसूर यह था कि दिवाली के मौके पर वह बिना दरवाजा खटखटाए सुरेन्द्र यादव के घर के अंदर आ गया। उसे यह नागवार गुजरा और बुरा भला कहते हुए महेश ठाकुर नामक शख्स को मुखिया दयानंद मांझी के घर ले गया जहां सरेआम गांववालों के सामने बेइज्जत तो किया गया साथ ही वहां मौजूद मुखिया ने सजा सुनाकर उसे अपना थूक चाटने के लिए मजबूर किया इतने पर भी यह सजा पूरी नहीं हुई, महिलाओं ने उसे चप्पलें मारीं। पीडि़त व्यक्ति के जख्म पर मरहम की जगह दर्द उस समय और बढ़ गया जब उसे थूक चाटते और महिलाओं से चप्पल से पिटवाते वीडियों बनाकर वायरल कर दिया गया. पीडि़त का दर्द यह था कि वह अब समाज को मुंह दिखाने के लायक नहंीं रह गया। उसके परिवार से कौन रिश्ता कायम करेगा? हालाकि दुखी व्यक्ति की शिकायत पर पुलिस ने मुखिया समेत 8 लोगों के खिलाफ केस दर्ज कि या है किन्तु हर कोई यह जानता है कि ऐसे मामलों का हश्र आगे क्या होता है. यह आरोपी प्रभावशाली व पैसे वाले हैं इनके सामने गरीब कैसे टिक सकेंगे? महेश नामक पीडि़त का दर्द सुनकर हर किसी का दिल दहल जाता है कि वह किस मुंह से अपनी बेटी का रिश्ता लेकर जायेगा? एक ताजा घटना छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के गांव कोयलंगा की है जहां -पांच परिवारों का इसलिए सामाजिक बहिष्कार कर दिया क्योंकि उन्होंने पंचायत के फरमान का पालन नहीं किया. जब परिवारों ने यह बात मीडिया को बताई तो गांव के लोगों ने परिवारों के सदस्यों की पिटाई कर दी. पंचायतों के फरमान और किसी को सजा देने का यह सिलसिला आज से शुरू नहीं हुआ. पुराने जमीदारों के समय से चली आ रही यह परंपरा देश के कई इलाकों में मौजूद है और इनकी प्रताडऩा के शिकार समाज के कमजोर तबके के लोग हो रहे हैं। सरकार ने पंचायतों को जो अधिकार दिये उसे दरकिनार रख कानून को अपने हाथ में लेकर खेलने का सिलसिला आज भी जारी है. ऐसे कई बेतुके फरमान और व्यवस्था सुनने में आ ही जाता है जो हमारे आधुनिक समाज को लज्जित कर देता है. यह भी सही है कि जब भी पंचायतों ने बेतुके तालिबानी फरमानों को जारी किया है उस पर बड़े बवाल पैदा हुए है किन्तु सत्तर वर्षो बाद भी देश में हो रही इस ग्रामीण तालीबानी व्यवस्था को रोकने कड़ाई से प्रयास क्यों नहीं हो रहा.? अगर पीछे मुड़कर देखे तो पंचायत के ऐसे फैसलों की बाढ़ सी दिखाई देती है फिर चाहे यह सवाल, मुजफ्फरनगर या हापुढ़कस ही क्यों न हो। उत्तर प्रदेश के हापुर में एक शख्स एक शादीशुदा महिला को लेकर फरार हो गया इसके बाद गांव की पंचायत ने फरमान सुनाया कि फरार प्रेमी की बीवी उस आदमी को दे दी जाये जिसकी बीवी भाग गई थी.यह इक्कीसवीं सदी का भारत है जहां आज भी पंचायतें तुगलकी फरमान सुनाती है- कोई दलील नहीं, कोई सुनवाई नहीं बस फैसला ऑन द स्पॉट. फैसला भी ऐसा कि सुनकर यकीन न हो.कभी लडकियों के जींस पहनने और मोबाइल रखने पर रोक, तो कभी डायन बता कर भयानक सजा देने वाली इस तरह की पंचायतों के तालिबानी फैसले कई बार देखे गए हैं. नालंदा, हापुर,रायगढ़ जैसी घटनाएं आज भी होती हंै और हो रही हैं किन्तु प्रशासन में बैठे लोग अपनी चमड़ी बचाने के लिए इस तरह की घटनाओं से इंकार करते हैं. वैसे तो पंचायतों के तालीबानी फैसलों की एक लम्बी फेहरिस्त हैै किन्तु बागपत में 7 जुलाई, 12 जुलाई व 30 जुलाई-2013 की तिथियां उन लम्हों की साक्षी बनी हैं, जिनमें पंचायतों ने तुगलकी फरमान जारी किए थे.असारा में हुई इन तीन तारीखों पर पंचायतों ने देश-विदेश की मीडिया को अपनी ओर खींच लिया था. पंचायत के आयोजक मोहकम पहलवान ने गांव में होनी वाली छेड़छाड़ व प्रेम-प्रसंग जैसी कुरीतियों को दूर करने के लिए पंचायतें आयोजित की थीं. सीधे लोकतंत्र पर हमला करते हुए पंचायतों में लड़कियों को मोबाइल न देने, उनके पहनावे तक को लेकर कई बेतुके फरमान जारी कर दिए गए थे, इसके बाद गांव में असर तो हुआ, लेकिन एक हत्या ने इन पंचायतों की पोल खोल दी. एक अन्य मामला भी हुआ जिसमें बागपत की एक और पंचायत ने छेड़छाड़ का अपराध महज दो-दो थप्पड़ और बीस हजार रुपये जुर्माना लगाकर सुलझा दिया!
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