नक्सलियों से निपटने अब आयेगी महिला सीआरपीएफ!
नक्सली समस्या से निपटने के लिये रोज नये नये प्रयोग हो रहे हैं लेकिन समस्या है कि हल होने की जगह उलझती ही जा रही है. आम आदमी की जुबान पर बस एक ही सवाल है कि आखिर क्या होगा इसका अंत? सरकारी तौर पर एक और जहां यह वादे किये जा रहे हैं कि बडे बड़े नक्सली आत्मसमर्पण कर रहे हैं तो वहीं नक्सली अपनी ठोस सक्रियता का दावा भी तुरन्त दिखा देते हैं.बड़े नक्सली हमले के बाद सरकार समस्या से निपटने कई दावे करती है उसके बाद फिर कोई बड़ी वारदात होने पर नये सिरे से पहल होती है. हाल के महीनों में सरकार की कार्यवाही में ड्रोन, हवाई पट्टी जैसी बाते सामने आई तो अब खबर आ रही है कि सरकार सारी पुरानी परंपरा को तोड़कर देश के सबसे बड़े अर्धसैनिक बल सीआरपीएफ की 560 से ज्यादा महिला कमांडों को नक्सल प्रभावित इलाकों में भेजने की तैयारी कर रही है सरकार मानती है कि नक्सल समस्या देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन चुकी है.नक्सलियों के बीच महिला नक्सली भी भारी तादात में मौजूद है और अब इन दोनों से लडऩे के लिये महिला सीआरपीएफ की मौजूदगी क्या गुल खिलायेगी यह आगे देखना महत्व रखता है. नक्सलियों के खिलाफ अभियान का हिस्सा बनने की इस सरकारी महत्वाकांक्षी योजना में शामिल होने के लिए 567 महिलाओं ने पिछले सप्ताह राजस्थान के अजमेर में अपना प्रशिक्षण पूरा किया. सीआरपीएफ की मंशा इस पूरे बैच को नक्सल प्रभावित इलाकों में 'कंपनी फॉर्मेशनÓ के तरीके से तैनात करने की है इसका अर्थ है कि एक समय में 100 जवानों की तैनाती होगी. छह मई को जिन महिलाओं ने अजमेर में प्रशिक्षण पूरा किया है, उन्हें नक्सल प्रभावित इलाकों में जिम्मेदारी सौंपने के उद्देश्य से प्रशिक्षित किया गया हैं, उन्हें सेवाकाल के प्रारंभिक सालों में ही सबसे कठिन अभियान की जिम्मेदारी सौंपी जा रही हैं शुरुआत में इन महिलाओं की एक कंपनी नक्सल इलाकों में तैनात की जाएगी. एक तरफ सरकार गंभीर रूप से महिला सीआरपीएफ को उतारने की तैयारी कर रही है वहीं बस्तर में तैनात जवानों पर बस्तर की कतिपयय ग्रामीण महिलाओं का गंभीर आरोप है कि उनके साथ दुव्र्यवहार किया जा रहा है.पुलिस के आला अफसर इसको यह कहका नकारते हैं कि पुराने मामलों को ही बार बार दोहराया जाता है. इधर सुरक्षाबलो पर यह भी आरोप लगा है कि वे गांव के लोगों को धमकाते हैं कि अगर नक्सलियों को खाना दोगे तो उनका घर जला देंग. छत्तीसगढ़ के तीन गांवों में सुरक्षा बलों के फर्जी मुठभेड़ करने और आदिवासी महिलाओं से सामूहिक बलात्कार की वारदात की खबरें आ चुकी है जिसपर कुछ कार्यकर्ताओं ने एक स्वतंत्र जांच पर आधारित रिपोर्ट जारी की थी.स्टेट ऑफ़ सीज़ नाम की यह रिपोर्ट वुमेन अगेन्स्ट सेक्सुअल वॉयलेंस एंड स्टेट रिप्रेशन, कमेटी फ़ॉर प्रोटेक्शन ऑफ़ डेमोक्रैटिक राइट्स और कोऑर्डिनेशन ऑफ डेमोक्रैटिक राइट्स ऑर्गनाइज़ेशन की ओर से जारी की गई.पिछले दो महीनों में वकीलों ईशा खंडेलवाल, शालिनी गेरा समेत पत्रकार मालिनी सुब्रह्मण्यम और आंदोलनकारी बेला भाटिया ने आरोप लगाया है कि छत्तीसगढ़ पुलिस और उनके समर्थन से काम कर रहे संगठनों की प्रताडऩा से तंग आकर उन्हें बस्तर छोडऩा पड़ा है.नक्सली समस्या से निपटने फिलहाल सरकार के पास एक ही उपाय यहां दिखाई देता है दबाव, मुठभेड़ और आत्मसमर्पण- वार्ता की सारी संभावनाएं दब चुकी है.हालाकि कई बार नक्सलियों से बातचीत करने और कोई समाधान निकालने की कोशिश की है लेकिन ऐसा हो ही नही ंपाया है कि दोनों एक मंच पर आकर बात करें जबकि मुठभेड़,गोलीबारी और मारने मरने का सिलसिला लगातार जारी है. साल 2015 में 162 मुठभेड़ों में 43 लोग मारे गए थे जबकि अक्तूबर 2015 से फरवरी 2016 में मुठभेड़ों में मारे गए लोगों की संख्या 31 है. इस बात के पुख्ता प्रमाण है कि पुरूष नक्सलियों के साथ महिला नक्सली भी वारदातों में शामिल रहती है वे मुठभेड और अन्य कई गंभीर किस्म की वारदातों में पुरूष नक्सलियों के साथ रहती है.कुछ दिन पहले सत्ताईस नक्सलियों के साथ आत्मसमर्पण करने वालों में भी तीन महिला नक्सली थी.कुछ मुठभेड़ों में कुख्यात महिला नक्सलियों को मार गिराया भी गया है इस परिप्रेक्ष्य में अब महिला सीआरपीएफ की भूमिका बस्तर में क्या होगी यह देखना दिलचस्प होगा.
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