जंगलों में आग...प्राकृतिक या कृत्रिम-सावधानी की जरूरत!
वैसे तो विश्व के जंगलों में आग सामान्य सी बात है. अभी कुछ ही महीनों पहले-अमरीका के जंगलों में भीषण आग लगी थी लेकिन भारत के उत्तराखंड से लेकर कई अन्य राज्यों तक में फैले जंगलों में इस भीषण गर्मी के दौरान आग लगने की घटना ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया. आग की भीषणता का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि आग बुझाने के लिये वायुसेना और थल सेना दोनों का सहारा लेना पड़ा. एक साथ कई जंगलों में आग की घटना ने यह सोचने के लिये विवश कर दिया है कि कहीं आग किसी ने जानबूझकर तो नहीं लगाई.? कई हैक्टर के जगल जलकर राख हो गये जगंली जानवर भी काफी तादात में जलकर मर गये होंगे. वास्तविकता यही है कि इस साल लगी आग ने पहाड़ के लोगों और वन्यजीवों पर कहर बरपा दिया. यह जानना जरूरी है कि हमारी वन संपदा को कौन खाक कर रहा है. कहीं इसके लिये पा्रकृतिक घटनाओंं की जगह मानव तो जिम्मेदार नहीं है? सोशल मीडिया पर जंगलों में दहक रही इस आग के लिए लकड़ी माफियाओं को जिम्मेदार माना जा रहा है क्योंकि हर साल वन विभाग द्वारा गिरे या सूखे पेड़ की निलामी की जाती है.आग लगाने से बड़ी संख्या में वन संपदा को नुकसान पहुंचता है और वन माफिया को इससे फायदा होता है वहीं समाजशास्त्री और पर्यावरणविदों का कहना है कि शीतकालीन बर्षा न होने से जमीन में नमी नहीं है इस कारण जंगलों में आग लग रही है.पहाड़ी इलाकों में ही नहीं हमारे छत्तीसगढ़ तथा अन्य कई जंगलों में गिरी पत्तियों को जलाने के लिए आग लगाई जाती है, लेकिन यह आग लोग नियंत्रित रूप से लगाते हैं. उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग के लिए वहां रह रहे लोगों की जिम्मेदार मानना गलत है. वन विभाग को पहले से ही ऐसी स्थिति के लिए तैयार रहना चाहिए था,अब जब स्थिति विभाग के नियंत्रण से बाहर हो गई तो वह वहां रह रहे लोगों पर आरोप लगा रहे हैं. ऐसा तर्क देने वाले कह रहे हैं कि राज्य के जंगलों में लगी आग का मुख्य कारण इस साल विंटर रेन न होना है, जिस कारण जमीन में बिल्कुल नमी नहीं है और आग लगातार बढ़ती चली गई वहीं इस साल मार्च से गर्मी तेज पड़ रही है जिससे जंगलों में पतझड़ ज्यादा हो गया है,यह जल्दी आग पकड़ता है. वन संपदा को आग से बचाने के लिए पुराने तरीकों को ढ़ूंढना होगा, जिसमें स्थानीय लोगों की भागीदारी अहम है पहले जंगलों में फायर लाइन बनाई जाती थी, जिससे आग जंगल में नहीं फैलती थी स्थानीय लोगों द्वारा सूखी लकड़ी और पत्तों को हटा दिया जाता था। इससे गर्मी के मौसम में जंगल में आग फैलने का डर नहीं रहता था. इसके साथ ही वन कानून को भी चुनौती देने की जरूरत है. वन विभाग द्वारा वन कानून पर समीक्षा की जानी चाहिए ताकि भविष्य में फिर ऐसी स्थिति न हो. जंगल की पत्तियां हाटाकर उनसे रोजगार उत्पन्न करना चाहिए, इनको एकत्र करवाकर खाद बनानी चाहिए. एक तरफ विश्व पर्यावरण को बचाने के लिये एक होकर ट्रीटी कर रहा है और दूसरी तरफ हमारें देश के जंगल आग से धधक रहे हैं. आग से हजारों हैक्टेयर वन क्षेत्र खाक हो गये. जंगल में ये आग क्यों और कैसे लगी इसपर विचार जरूरी है.जंगल में ज्यादातर आग की घटनाएं गर्मी के मौसम में सामने आती हैं.प्राकृतिक रूप से जंगलों में आग लगने का एक बड़ा कारण आसमानी बिजली है, जिसके कारण आग सूखे पत्तों और झाडयि़ों से होती हुई पूरे जंगल को चपेट में ले लेती है कहा जाता है कि धरती पर हर सेकेंड में औसतन सौ बार आसमानी बिजली गिरती है और पश्चिमी संयुक्त राज्य अमेरिका में जंगलों में आग लगने का सबसे बड़ा कारण है आसमानी बिजली गिरना.गर्मी बढ़ जाने से जंगल में पड़े सूखे पत्ते और जमीन पड़ी सूखी लकडियां खुद ही आग पकड़ लेती हैं यह घरों में ईंधन के रूप में प्रयोग में लाई जाती है, जिससे इनमें आसानी से आग लग जाती है। जंगलों में अधिकतर आग मौसम और हवा के बहाव की गति से लगती है। हवा में ऑक्सिजन होती है जो आग लगने का सबसे बड़ा कारण है. जंगलों में लगने वाली आग के पीछे ज्यादातर इंसान ही होते हैं. जंगल से गुजर रहे लोग खाना पकाने के लिए आग जलाने के बाद उसे सही सही ढंग से बुझाना भूल जाते हैं तो वह आग हवा के कारण पूरे जंगल में फैल जाती है.मानवों द्वारा जंगलों में आग लगने की घटना ज्यादातर सावधानी न बरतने के कारण होती हैं, बीड़ी सिगरेट पीकर फेंक देते हैं जो पूरे जंगल को खाक कर देती है. कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो जान बूझकर जंगलों में आग लगाते हैं अब आगे शायद पता चले कि यह आग प्राकृतिक थी या कृत्रिम?
Aag kitrim hai ya prakritik
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