एनआईए की साख पर दाग! निष्पक्ष एजेंसी कौन सी?





मुंबई में २६/११ के आतंकवादी हमलों के बाद तत्कालीन सरकार ने आतंकवादी हमला मामलों की जाँच के लिए राष्ट्रीय जाँच एजेंसी (एनआईए) बनाई थी, तब यह माना  गया कि यह एजेंसी राजनीतिक दबाव से मुक्त होकर काम करेगी लेकिन शायद ऐसा हुआ नहीं. इस एजेंसी ने जितने मामलों की जाँच अपने हाथ में ली उसमें से ज्यादातर में जाँच इतनी लंबी खिंच गई कि आरोपियों को न केवल राहत मिली बल्की इसके जाल से निकलने का मौका भी मिल गया. २००८ में महाराष्ट्र के मालेगाँव मामले में आरोपी साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को क्लीन चिट ने इसकी पुष्टि कर दी. पहले उसने समझौता ट्रेन बम धमाके के मामले में कर्नल पुरोहित को क्लीन चिट दी और अब साध्वी प्रज्ञा को मालेगाँव बम धमाका मामले में कोई सबूत नहीं होने के चलते क्लीन चिट दे दी. इससे पहले एनआईए ने जब समझौता बम धमाका और हैदराबाद की मक्का मस्जिद में हुए विस्फोट मामले में आरोपी स्वामी असीमानंद को जमानत के खिलाफ अपील नहीं करने की बात कही थी तभी लगने लगा था दकि अगला नंबर प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित का होगा. भगवाधारियों की जब गिरफ्तारी हुई तब यह मामला दुनिया के अखबारों की सुर्खियोंं में था तब आतंकवाद का एक नया स्वरूप दुनिया के सामने आया था, अब क्लीन चिट की खबर ने भी दुनिया को सुॢखयों में रखा है..   साध्वी प्रज्ञा के जेल से बाहर आने के बाद जो माहौल बनेगा निश्चित ही वह हिंदूवादी ताकतों को एक जुट करेगा. देश की प्रतिष्ठित जाँच एजेंसी एनआइए के लिये यह सोचने का विषय है कि सिर्फ गवाहों या चश्मदीदों के बयानों के आधार पर ही मामले को इतना गंभीर क्यों बना दिया जाता है जो बाद में गवाहों के कथित रूप से पलटने के बाद कमजोर हो जाता है- इससे जाँच एजेंसी की छवि भी प्रभावित होती है. एक के बाद एक धमाकों के चलते एनआईए ने  ताबड़तोड़ मामजे दर्ज किये लेकिन आरोपपत्र दायर करने में बहुत ज्यादा समय लगा जिसके चलते मामले के आरोपी राहत पाने में सफल रहे. यह बात भी सामने आ रही है कि  एनआईए की ओर से दूसरे आरोपपत्र में पूर्व के रुख से पलटना निष्पक्षता पर सवाल खड़े करता है. कांग्रेस सरकार के समय सीबीआई को पिंजरे में बंद तोते की उपमा दी गयी थी उसी प्रकार एनआईए के लिए कांग्रेस ने नमो इंवेस्टिगेटिव एजेंसी की उपमा दी है.विपक्ष यह भी आरोप लगा रहा  है कि केंद्र में सरकार बदलने के बाद संघ परिवार की शह पर सरकार ने साध्वी प्रज्ञा और कर्नल पुरोहित को बचाने का काम किया है.जब साध्वी प्रज्ञा को गिरफ्तार किया गया था तब भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से मुलाकात कर अपनी आपत्ति दर्ज कराई थी. कुछ समय पहले एनआईए की एक वकील ने भी एक अधिकारी पर यह आरोप लगाया था कि उसने उन्हें आरोपियों के प्रति नरमी बरतने को कहा था. एनआईए के आरोपपत्र में इस बात का भी उल्लेख है कि इस मामले की जाँच में महाराष्ट्र एटीएस के तत्कालीन प्रमुख हेमंत करकरे ने गड़बड़ की थी और कर्नल पुरोहित के खिलाफ कई आरोप गलत थे.आरोपपत्र में कथित रूप से एनआईए ने इस बात के सबूत होने का दावा किया है कि कर्नल पुरोहित की गिरफ्तारी के समय एटीएस ने ही उनके घर पर आरडीएक्स रखा था. रिपोर्टों के मुताबिक महाराष्ट्र एटीएस के अधिकारियों ने एनआईए के इस दावे का प्रतिक्रिया दी है और कहा है कि यदि एनआईए का कहना सही है तो क्यों उसने कर्नल पुरोहित को क्लीन चिट नहीं दी? यहां यह बता दे कि एटीएस के प्रमुख दिवंगत हेमंत करकरे ही वह पहले शख्स थे जिसने भगवा  आतंकवाद से जुड़े मामले में गिरफ्तारी की थी उस समय विपक्ष में रही भाजपा ने करकरे की निष्पक्षता पर सवाल उठाये थे और कहा था कि वह कांग्रेस के करीब हैं और उसके इशारे पर ही यह कार्रवाई कर रहे हैं. भाजपा के इन आरोपों को तब और भी बल मिला था जब कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने यह दावा किया था कि मुंबई हमले से कुछ घंटे पहले हेमंत करकरे ने उन्हें फोन कर बताया था कि उनको हिंदुत्ववादी ताकतों से खतरा था. कुछ मुस्लिम संगठनों ने अब इस मामले में कानूनी रास्ता अख्तियार करने का निर्णय किया है और संदेह जताया है कि एक वर्ग विशेष से जुड़े लोगों को राहत पहुँचाने का काम किया जा रहा है। इस मामले में संघ परिवार की काफी सधी हुई प्रतिक्रिया आई है जिसने सिर्फ इतना कहा है,हमारे पास कुछ भी नया कहने को नहीं है हमने शुरू में ही कहा था कि मामले में इन लोगों को गलत तरीके से फंसाया गया है और अब हमारी बात सही साबित हुई है।




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