संदेश

2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सातवां वेतन आयोग क्या कर्मचारियों के तौर तरीको में भी बदलाव लायेगा?

सरकारी नौकरी यानी 'मस्ती-'शहंशाही नौकरी-'अलाली या जब मर्जी आये तब काम करो और निकल जाओ! सरकारी कर्मचारियों के बारे में लोगों को सदैव यह कहते सुना गया हैं 'यार काम करों या न करो तनख्वाह तो मिलना ही है. जब मर्जी आये तब आफिस जाओ, गप्पे सप्पे मारो और चाय पीने या लंच  के नाम से बाहर जाकर मटर गस्ती करते घूमते रहो. कई दिनों की छुट्टी,प्रोवीडन्ट फण्ड,बोनस, महंगाई भत्ता और भी कई सुविधाएं तो पकी-पकी  रहती है लेकिन अब आगे आने वाले वर्षों में सरकारी कर्मचारियों के लिये नौकरी कठिन होने वाली हैं.सरकार कर्मचारियों से काम लेगी, तभी पैसा देगी. अगर अलाली दिखाई तो घर का रास्ता दिखा दिया जायेगा-सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट संदेश दे रही है कि देश में और भी कई ईमानदार व काम करने वाले बेरोजगार हैं जिन्हें काम पर लगाया जा सकता है- आयोग कि सरकार को सिफारिश है कि जो अफसर या कर्मचारी काम किये बगैर कुर्सी पर बैठै- बैठे सरकार का खजाना खाली कर रहे हैं उन्हें नौकरी से निकालो. आयोग ने सरकारी कर्मचारियों के वेतनमान मे भारी बढ़ौत्तरी की है न्यूनतम वेतन सात हजार रूपये से बढ़ाकर अठारह हजार कर दिया है साथ ...

रष्ट्रीय महागठबंधन कितना कारगर साबित होगा?क्या विचारधाराओं का संगम होगा?

बिहार में महागठबंधन को जीत क्या मिली राष्ट्रव्यापी महागबंधन बनाने की चर्चाओं का दौर चल पड़ा. यहां तक कि राष्ट्रीय स्तर पर भी इसके बारे में सोच शरू हो गई.अगले आने वाले विधानसभा चुनावों में तो संंभव हैं एक बार फिर महागठबंधन सामने आये साथ हीं राष्ट्रीय स्तर पर भी महागठबंधन कर चुनाव लडऩे की तैयारी चल रही है इसके लिये  प्रधानमंत्री प्रत्याशी की चर्चा भी शुरू हो गई हैै. लेकिन क्या पूरा देश चुनाव के मामले में दिल्ल्ी या बिहार हो सकता है?और होगा तो भी क्या इस प्रकार के दल जिनकी विचारधाराएं अलग-अलग हैं? वे कितने दिन एक साथ रह सकेंगे? या यह गठबंधन सिर्फ भाजपा और नरेन्द्र मोदी को सत्ता विहीन करने के लिये बनाया जायेगा? कई ऐसे सवाल हैं जो आगे आने वाले समय में उठेंगे बहरहाल इस समय जो माहौल चल रहा है वह बिहार चुनाव में महागठबंधन जिसमें राजद, जदयू कांग्रेस शामिल हैं की भारी विजय को लेकर है.चुनाव से पूर्व उत्तर प्रदेश में महागठबंधन करने की तैयारी शुरू हुई थी, उसमें कांग्रेस को छोड़कर और बहुत से पार्टियों के नेता एकत्रित हुए . इस पहल के बाद ही बिहार में महागठबंधन अस्तित्व में आया जिसमें जदयू, राज...

सरकारी कामगारों ने तो मंहगाई की बेतरनी पार कर ली लेकिन आम आदमी! वह तो...

सरकारी कर्मचारियों को बधाई! शुभकामना की उनका वेतन नये वर्ष से तीन गुना हो जायेगा-बढ़ती मंहगाई में उनको यह बहुत बड़ी राहत है. एक सरकारी  कर्मचारी जो अब तक सात हजार रूपये की न्यूनतम तनख्वाह पाता था वह अब अठ्ठारह हजार रूपये प्राप्त करने लगेगा.जस्टिस माथुर आयोग ने अपनी रिपोर्ट पेश कर दी और उसके अनुसार अब सरकार को निर्णय लेना है-यह निर्णय सरकार के अनुसार उनके द्वारा स्टडी करने के बाद जनवरी से लागू होगा परन्तु इस बढ़ौत्तरी से बहुत से सवाल उठ खड़े हुए हैं कि सरकारी कर्मचारियों की नैया तो इस मंहगांई की धारा में पार हो जायेगी मगर शेष आम आदमी जो निजी, सार्वजनिक व रोज कमाकर खाता है उसके जीवन का क्या होगा?अभी से भारी टैक्स में फटे हाल जी रहे लोगों की जिंदगी पर अब सरकार अपने कर्मचारियों को खुश करने के लिये ऐसा तीर चलायेगी कि वे उठ नहीं सकेंगे मसलन सरकार कर्मचारियों को बढ़ा हुआ वेतन देने के लिये पैसा एकत्रित करने सकल कर्म करेगी- याने कर्ज लेगी, टैक्स बढ़ायेगी?अकेले रेलवे को अपने कर्मचारियों को अठ्ठाईस हजार करोड़ रूपये देना होगा. पहले से यात्रियों पर बोझ डालती आ रही रेलवे इसके लिये फर किराया...

बोलने की आजादी का जबरदस्त दुरूपयोग अब समस्या बन रही !

देश की राजनीति का संतुलन क्यों बिगड़ रहा? शायद इसलिये भी कि देश में बोलने की आजादी का दुरूपयोग इससे पहले कभी नहीं हुआ. लोग अपना काम छोड़कर कभी सहिष्णुता-असहिष्णुता पर तो कभी व्यक्तिगत आक्षेपों को लेकर  एक दूसरे को नीचा दिखाने के चक्कर में आपे से बाहर हो रहे हैं.दुख इस बात का है कि बड़ी राष्ट्रीय पार्टियों के बड़े लोग भी इन लफड़ो में पड़कर अपने छबि पर दाग लगवाने लगे हैं. कुछ तो एकदम अति कर रहे हैं और कुछ ऐसे भी हैं जो सात समुन्दर पार बैठे लोगों को कोसने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रहे.बात अगर चुनाव तक सीमित रह जाती तो भी समझ में आता लेकिन चुनावों के निपटने के बाद भी यह सिलसिला बना हुआ है. पिछले  चुनावों के बाद से कुछ ऐसा हो गया कि लोग मुंंह से बाण चलाने में ज्यादा रूचि दिखा रहे हैं. संविधान में प्रदत्त अधिकारों का जिस प्रकार अभी दुरूपयोग हो रहा है वह इससे पहले कभी नहीं हुआ. यह अब विचार करने का विषय है कि क्या लोगों को इतनी आजादी दी जानी चाहये कि वह अपनी बातों से देश की अस्मिता पर ही सवाल उठा दे. सरकार की नीितयों के खिलाफ अगर विपक्ष का हल्ला हो तो बात समझ में आती है यहां तो सीधे-...

सरकारी खजाने को चूना-विभागीय जांच का ढोंग कब तक? नौकरी से क्यों नहीं हटाये जाते!

एक आम आदमी जब खर्च करता है तो सोच समझकर करता है कि कहीं आगे उसको परेशानी तो न हो जाये लेकिन क्या हमारी निर्वाचित सरकारे ऐसा कर रही है? शायद नहींं! ऐसा इसलिये भी कि उसको यह पैसा खर्च करने में दर्द नहीं होता! चूंकि यह पैसा उस साधारण आदमी की जेब काटकर प्राप्त होता है जो दिनरात मेहनत करता है.भारत जैसे गरीब देश में आम आदमी पैदा होने के बाद से लेकर अपना जीवन समाप्त होते तक इतना टैक्स पटा चुका होता है कि उसकी आने वाली पीढ़ी बिना टैक्स पटाये रह सकती है लेकिन सरकार के अनाप शनाप खर्चों ने उसकी जिंदगी को जहां टैक्स और मंहगाई के बोझ से लाद दिया वहीं भ्रष्टाचरण के चलते उसे इतनी परेशानी में डाल दिया है कि उसकी कमर ही टेढ़ी हो गई है.वैसे बहुत से उदाहरण है इसके किन्तु ताजा   उदाहरण हाल के उस वाक्ये का लें जिसमें सरकार के एक विभाग ने अपने विभाग की वेबसाइट तैयार करने के लिये जनता की जेब पर ऐसा डाका डाला कि सबके होश उड़ गये.वेबसाइट के लिये नब्बे लाख रूपये निकाले गये जबकि इस पर खर्च करीब दो लाख के आसपास आता है. जनता किससे पूछे कि यह किसने किया और ऐसा करने वालों को नौकरी से निकाला गया? जब चोर को को...

आतंक के साये में विश्व,अब तो यह लगने लगा कि अगला सूरज देख पायेेंगे या नहीं?

एक साल के भीतर जिस तरह से आतंक का रूप विश्व में सामने आया है वह इंसानियत को सोचने के लिये मजबूर कर रहा है कि वह उसके लिये कितना खतरनाक है. भावी पीढ़ी को चिंतित होना चाहिये कि आने वाला भविष्य उसे कहां लेकर जाने वाला है? भारत हो या फ्रांस अथवा अन्य शांतिप्रिय देश सर्वत्र यह चिंता है कि निकलने वाला अगला सूरज उसे देखने मिलेगा या नहीं? जिस प्रकार जेहाद ने सिर्फ एक वर्ष में विश्व के नक्शे पर अपना सिक्का कायम किया है वह न केवल चिंतनीय है बल्कि पूरी मानवता को खतरे में डालने वाला है. हमारे प्रधानमंत्री ने ठीक कहा है कि संयुक्त राष्ट्र को तय करना चाहिये कि कौन आंतकवाद का साथी है और कौन मानवता के साथ है. मानवतावादियों को कुर्बानी के लिये तैयार रहना पड़ेगा. इस्लामिक संगठन आईएसआईएस जैसा आतंकवादी संगठन जिसने सिर्फ एक साल के अंदर पूरे विश्व में अपना झंडा गाड़ दिया है कि करतूते यह साबित करने के लिये काफी है कि यह सिलसिला थमने वाला नहीं. दुख तो इस बात का है कि हमारे बीच में ही कुछ लोग सारे मामले में मीरजाफर की भूमिका अदा कर रहे हैं. विश्व के साथ भारत कई सालों से आंतक के साये में है. वह अपनी धरती पर ...

ट्रेड सेंटर हो या मुम्बई,पेरिस हर जगह इंसानियत ही लहूलुहान होती है!

आतंक का नाम कुछ भी हो लेकिन हर बार इंसानियत ही लहूलुहान होती है.पहले न्यूयार्क का वल्ड ट्रेड सेंटर फिर मुंबई और अब पेरिस. लश्कर और अलकायदा के बाद आतंक का नया और सबसे खौफनाक चेहरा है आईएसआईएस जिसने पेरिस हमले की जिम्मेदारी ली है.पिछले शुक्रवार की रात पेरिस में उसकी इस कारस्तानी के बाद पूरी दुनिया हिल गई, इस हमले को दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा आतंकी हमला माना गया है.चौदह साल पहले 11 सितंबर 2001 को पूरी दुनिया ने आतंक का वो मंजर देखा जिसे देखकर इंसानियत खौफजदा हो गई. अमरीका के मशहूर शहर न्यूयार्क पर आतंकियों ने इस तरह हमला किया कि हर कोई हैरान रह गया. विमान के सहारे दुनिया की एक आलीशान इमारत वल्ड ट्रेड सेंटर पलभर में जमीदोज कर दी गई. हजारों लोग मौत के मुंह में समा गए.दूसरा बड़ा हमला भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई में 26 नवंबर, 2008 को हुआ जब आतंकियों ने कई जगह हमले किए. कई बेगुनाहों की जान ले ली. कई लोगों को बंधक भी बनाया जिसमें विदेशी पर्यटक भी शामिल थे. पूरा देश सन्न रह गया था. 24 घंटे की कड़ी मशक्कत के बाद सुरक्षा बलों ने जान पर खेल कर आतंकियों को मार गिराया और एक आतंकी कसाब को जिंदा...

इतिहास को इतिहास के पन्नों पर ही रहने दो, देश की सोचो!

इतिहास पुरूषों को इतिहास में ही रहने दीजिये,देश की सोचिये- परिवार के किसी के भी गुजरने का गम पूरे परिवार व सगे संबन्धी को रहता है और यह  देश का महान व्यक्ति रहा तो यह दायरा ओर बढ़ जाता है लेकिन ईश्चर ने हम मनुष्यों को इतनी शक्ति तो दी है कि हम कुछ दिनों में ही उनके जाने के गम को भूलक र अपने काम में जुट जाये. हर मृतात्मा की याद तो बहुत आती है लेकिन सिर्फ उसे ही याद करके हमारा बाकी जीवन तो नहीं चल सकता. कुछ दिनों से देश में इतिहास के पन्नों को खोजकरआत्माओं को डिस्टर्ब करने का खेल शुरू हुआ है जो किसी के लिये राजनीतिक रोटी पकाने का साधन बन गया तो किसी के लिये अपने को खोने और उनकी आत्मा की शंाति के लिये सकल कर्म करने का! क्या कुछ ऐसा ही कर्नाटक में नहीं हो रहा जहां इतिहास पुरूषों को इतिहास के पन्नों से निकालकर सड़क पर हल्ला मचाने के लिये ला खड़ा किया गया है? कर्नाटक में कांग्रेस का राज है, यहां पिछले कुछ महीनों से जो कुछ हो रहा है वह किसी भी सभ्य व्यक्ति के गले नहीं उतर रहा. इतने दिनों बाद अचानक एक मृत महापुरूष को अचानक उनकी जयंती मनाने का सपना किसने देखा और यह क्यों साकार करने की ठा...

बिहार चुनाव भविष्य में देश की राजनीति को नये मोड़ पर ले जायेगा?

अब कोई लाख कितना भी कहे मगर यह तो मानना ही पड़ेगा कि नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी का ग्राफ तेजी से गिरा है.बिहार के चुनाव में इतनी बड़ी पराजय होगी इसकी कल्पना नहीं की थी-चुनाव से पूर्व जो सर्वेक्षण महागठबंधन के पक्ष में आये उसकी संभावना मतगणना के शुरूआती रूझान में जरूर धूमिल होते नजर आई लेकिन जल्द ही यह साफ हो गया कि मोदी लहर बिहार में खत्म हो चुकी है.इन नतीजों के पूर्व शनिवार को त्रिवेन्द्रम के स्थानीय चुनाव में भाजपा को मिली सफलता ने उन्हे जरूर इस बात की उम्मीद दिलाई थी कि बिहार भी उनके हाथ में होगा. दिल्ली में हार का बदला लेने पूरी तरह कमर कसकर भाजपा ने बिहार में अपना दाव खेला था किन्तु उसे सफलता नहीं मिली.असल में भाजपा की सबसे बड़ी गलती तो यह रही कि बिहार में उसने लालू प्रसाद और नीतिश कुमार की ताकत को कम आंका और पूरे विश्वास के साथ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्रतीष्ठा को ही दांव पर लगा दिया. प्रधानमंत्री देश का प्रधानमंत्री न होकर उन्हें पार्टी का प्रधानमंत्री बना दिया गया. अकेले अमित शाह को प्रचार अभियान की बागडौर सौंप दी जाती और कुछ अन्य स्टार प्रचारकों के हाथ मेंं य...

फास्ट ट्रेक ने अपनी सार्थकता सिद्ध की,अभी भी देश में हजारों मुकदमें विचाराधीन!

फास्ट ट्रेक ने अपनी सार्थकता सिद्ध की,अभी भी देश में हजारों मुकदमें विचाराधीन! 26 मार्च 1972 को चन्द्रपुर महाराष्ट्र की सोलह साल की एक दलित लड़की से दो पुलिस वालों ने रेप किया. 'मथुरा रेप कांडÓ से कुख्यात यह मामला सेशन कोर्ट से हाईकोर्ट फिर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचकर पीडि़ता को न्याय मिलने में सोलह साल लग गये.यह तो न्याय में देरी की बात हुई किन्तु कहावत हैं न 'न्याय में देर है अंधेर नहींÓ-यह अब हमारी न्यायपालिका ने दिखाना शुरू कर दिया है. 16 दिसंबर को दिल्ली में 23 साल की फिजियोथेरोपी विषय की एक मेडिकल छात्रा से बस में गेंग रेप हुआ.सभी आरोपी पकड़े गये तथा उन्हें एक साल के अंदर दस सितंबर 2013 को मौत की सजा सुनाई गई- इस मामले ने देश में रेप के खिलाफ ऐसा माहौल बनाया कि सरकार को इसके लिये न्यायिक आयोग बिठाना पड़ा और आयोग को अस्सी हजार सुझाव देशभर से मिले-कानून में कुछ संशोधन भी हुआ कि न्तु रेपिस्टों को इससे कोई भय नहीं हुआ. दिल्ली रेप कांड के मुल्जिमों में से एक नाबालिग को तीन साल की सजा हुई जबकि बाकी में एक की मौत हो गई तथा शेष करीब चार को फांसी पर लटकाने का फैसला हुआ लेकिन इ...

फ्रीडम ऑफ स्पीच का दुरूपयोग करने वालों को सरकार का करारा जवाब!

यह पहला अवसर है जब मोदी सरकार ने फ्रीडम ऑफ स्पीच का दुरूपयोग करने वाले किसी बड़े शख्स को लपेटे में लेकर देश को एक संदेश देने का प्रयास किया है कि इस स्वतंत्रता का मतलब यह नहीं कि कोई किसी के खिलाफ कुछ भी बोलेे और सरकार यूं ही हाथ पर हाथ धरे बैठै रहे.-होम मिनिस्ट्री ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दायर करके कहा है कि फ्र ीडम ऑफ स्पीच के नाम पर लोगों को किसी भी समुदाय के खिलाफ नफरत फैलाने की मंजूरी नहीं दी जानी चाहिए. इससे अशांति फैलेगी और दंगे होंगे. सरकार का यह रुख बीजेपी नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी के उस पिटीशन पर आया है, जिसमें उन्होंने हेट स्पीच से जुड़े आईपीसी के सेक्शन 153, 153,153क, 295, 295, 298 और 505 की संवैधानिक वैधता पर सवाल उठाए थे. केंद्र ने स्वामी के खिलाफ हेट स्पीच के मामले में केस चलाए जाने को भी सही ठहराया है.सरकार का यह रूख उस समय सामने आया है जब देश में इस मुद्दे पर बहस छिड़ी हुई है. हैट स्पीच और इनटोलेंट बहस का प्रमुख मुद्दा है ऐसे समय सरकार का रूख साफ होने से सुप्रीम कोर्ट में हलफनामें के रूप में पेश होने के बाद उन लोगों के मुंह पर लगाम लग सकती है जो इस मामले को लेक...

नन्ही रेप पीडि़ता की नन्हीें बच्ची के जीवन में खुशी ऐसे लौटायेगा हाई कोर्ट!

नन्ही रेप पीडि़ता की नन्हीें बच्ची के जीवन में खुशी ऐसे लौटायेगा हाई कोर्ट! हम इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जस्टिस शाबिबुल हसनेन और न्यायमूर्ति डी के उपाध्याय के उस एैतिहासिक फैसले का स्वागत करते हैं जिसमें उन्होंने एक ऐसी बच्ची को जीने की राह दिखाई है जो एक तेरह साल की बच्ची से रेप के बाद पैदा हुई. न्यायमूर्तियों ने अपने फैसले में यूपी सरकार को आदेश दिया है कि वो विक्टिम के नाम 10 लाख रुपए की एफडी कराए. सरकार विक्टिम की बेटी की देखभाल करे. इसके अलावा, विक्टिम के एडल्ट होने के बाद उसकी नौकरी का भी इंतजाम करें. सवाल यह भी पैदा हुआ है कि क्या इससे समाज को कोई संदेश जायेगा और व्यवस्था में कुछ सुधार होगा? इस फैसले के तुरन्त बाद थाने में रेप पीडि़ता के पिता ने रिपोर्ट लिखाई है कि रेपिस्टों ने उनकी दूसरी बेटियों से भी रेप की धमकी दी है-कोर्ट के फैसले के बाद अब समाज और पुलिस दोनों का दायित्व और बढ़ गया है कि वह अपने बेटियों की हैवानों से रक्षा कैसे करें. रेप पीडि़ता का यह मामला अबार्शन की मांग को लेकर  सात सितंबर को हाईकोर्ट पहुंचा था,उस समय मेडिकल जांच कराने की सलाह दी गई. ...

असहिष्णुता क्यों सर चढ़कर बोल रही है! क्यों अचानक ऐसे हालात पैदा हुए?

अंग्रेजी के शब्द इनटोलेरेन्ट को हिन्दी में कहते हैं असहिष्णु अर्थात असहनशीनता या न बर्दाश्त करने वाला.यह नेताओं के साथ साथ उन सैकड़ों लोगों की जुबान पर भी है जो देश में असहिष्णुता के कारण गुस्से में हैं इनमे कलाकार भी हैं,इतिहासवेत्ता भी है समाजसेवी भी, वैज्ञानिक भी और फिल्मकार भी और आगे आने वाले समय में और भी कई लोग जुड जाये तो आश्चर्य नहीं. आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?अगर साफ तौर पर आम आदमी की भाषा में कहेे तो यह सब कुछ पैदा हो रहा है कुछ लोगों की असहिष्णुता के कारण- वैसे इसके कई उदाहरण है कि न्तु जब जनप्रतिनिधियों व ब्यूरोक्रेटस में सहिष्णुता नहीं रह जाती तो इसका व्यापक असर समाज पर होता है एक उदाहरण से स्पष्ट है-मध्यप्रदेश की एक मंत्री है कुसुम मेहदले, वे प्रदेश में समाज कल्याण व बाल विकास विभाग सम्भालती है-स्वाभाविक है विभाग के अनुरूप उन्हें संवेधनशील व पोलाइट होना चाहिये लेकिन वे क्या संवैधनशील अथवा पोलाइट हैं? नहीं, चूंकि उन्होनें सड़क पर भीख मांगते बच्चे को अपने समीप पाकर उसे लात मारकर दूर कर दिया.उसका कसूर बस इतना था कि उसने कहा दीदी मुझे एक रूपया दे दो. वह तो भड़की उनके सुरक्ष...

मुद्दे की बात को किनारे कर फिजूल की बातों पर यह कैसा शोर?

कांग्रेस के कुशासन से त्रस्त जनता ने बड़ी उम्मीदों के साथ नई सरकार बनाने की भूमिका निभाई थी? क्या वह जनता के विश्वास पर खरा उतर रही है? वास्तविकता कुछ यही कह रही है कि जनता को दिये वायदे सब खोखले निकल रहे हैं और सरकार जनता को किये गये वायदों से पीछे हट गई है, सरकार ने जो सपने दिखाये थे वह कोरी कल्पना बनकर रह गये हैं.सरकार स्वयं  आइने के सामने आये तो उसे सारी चीजे साफ दिखाई देगी कि वह अपने  वायदों से कितनी दूर चली गई है. देश में नाराजगी और अस्तिरता का माहौल निर्मित हो रहा है.विपक्ष तो अपना काम इस मामले में हवा देने का कर ही रहा है किन्तु सरकार के अपने लोगों की तरफ से भी जो बाते हो रही है वह समाज को एक गलत संदेश दे रही है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बड़े मुद्दों पर देर तक चुप रहते हैं तब तक पानी सर से उतर चुका होता है.देश को इस समय मन की बात नहीं दिल से दिल मिलाने की जरूरत है-सहित्यकार, फिल्मकार, वैज्ञानिक नाराज हैं, भले ही सरकार इसे गंभीरता से नहीं ले रही किन्तु इसे अनदेखा भी तो नहीं किया जा सकता .एक आक्रोश तो आम जनता में भी है- मंहगाई, भ्रष्टाचार तथा कथित अव्यवस्था से लोग प...

फेसबुक और व्हाट्सअप में दुनिया तो जुड़ेगी लेकिन क्या साधू और शैतान भी रहेंगे?

मार्क जकरबर्ग भारत आये और उन्होंने फेस बुक को पूरे विश्व में फैलाने की बात कही. वे चाहते हैं कि एक अरब लोग आन लाइन हो जाये,वे यह भी कह रहे हैं कि भारत के बगैर दुनिया से नहीं जुड़ सकते. जब टीवी पूरे विश्व के बाद भारत में इंट्रोड्यूस हो रही थी तब भारत में परंपरा और संस्कृति की दुहाई देने वालों ने ेकोहराम मचा दिया था-सबसे ज्यादा इसका विरोध यहां हुआ था कि इससे हमारी परंपरा, संस्कृ ति नष्ट हो जायेगी लेकिन धीरे-धीरे यह धारणा बदलती गई और टीवी को सबने अंगीकार किया- अब वही लोग घर में सबसे आधुनिक मंहगी टीवी लेकर मनोरंजन कर रहे हैं. खैर यह तो होना ही था, किसी नई चीज को अंगीकार करने में थोड़ा समय तो लगता ही है लेकिन कुछ बुुराइयां तो सभी लेकर आती है उन्हें दूर करने का प्रयास भी उसी तरह किया जाना चाहिये. इसमें दो मत नहीं कि टीवी ने हमारी संस्कृ ति पर जोरदार हमला किया. कुछ मामले में जहां बदलाव हुआ तो कुछ को बिगाड़कर भी रख दिया. विदेशी और देशी का मिलाजुला मिक्श्चर भी सामने आया लेकिन अब जो मार्क  जकरबर्ग का हमला फेसबुक के रूप में हुआ है उसे यद्यपि भारतीयों ने काफी हद तक झेला है उसे और कितना झेल ...

पैसा कमाने की होड़ में इंसानियत को भी त्यागने लगे कुछ सेवक(?)

पैसा -पैसा और पैसा !इसने इंसान में इतना लालच पैदा कर दिया है कि इसके आगे उसे न दया दिखाई देती है न इंसानियत, जिसके पास है वह कुछ भी कर सकता है कि स्थिति में है और जिसके पास नहीं वह हर ऐसे लोगों के पास बेबस और बेसहारा है, उसके सामने इस मुसीबत से निपटने का सिर्फ एक ही रास्ता दिखाई देता है स्वंय को खत्म कर देना- राजधानी रायपुर से कुछ ही दूर भिलाई और न्यायधानी बिलासपुर से कुछ ही दूर बिल्हा में हुई दो घटनाएं समाज की आंखे खोल देने के लिये काफी है. बिल्हा में एक युवक राजेन्द्र तिवारी को प्राण से इसलिये हाथ धोना पड़ा चूंकि उसके पास एसडीएम द्वारा प्रतिबंधात्मक धारा में जमानत के लिये मांगे गये चालीस हजार रूपये की रिश्वत में देने के लिये पैसा नहीं था. इसका विकल्प उसने उनके दफतर के सामने ही अपने आपको आग के हवाले करने का चुना. दो रोज रायपुर के अस्पताल में इलाज होता रहा और अंतत: उसकी मौत हो गई. इस घटना से जनता का आक्रोश फूटना स्वाभाविक है. एक तरफ सरकार भ्रष्टाचार रोकने के दावे करती है वहीं भ्रष्ट अफसर इतना मांगते हैं कि लोगों के सामने आत्महत्या करने तक की नौबत आ जाती है. सरकार की नौकरी में बैठे ब...

रेप पर अदालतें सख्त,ऐसे लोगों को पशुओं की संज्ञा,बधिया करने की सिफारिश,क्या व्यवस्थापिका भी सोचेगी?

लोग अब कब्र खोदकर भी बलात्कार करने लगे हैंं. मेरठ और गाजियाबाद के बीच तलहटा गांव में एक 26 वर्षीय गर्भवती महिला की दो दिन पुरानी कब्र को खोदकर उसके साथ सामूहिक बलात्कार की घटना ने पूरे यूपी मेंं कानून और व्यवस्था की स्थिति पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है. इधर यूपी के बाराबंकी में रेप की शिकार एक तेरह साल की बच्ची को अनचाहे बच्चे को जन्म देने मजबूर होना पड़ा वहीं देश की राजधानी दिल्ली और देश के अन्य भागों में सिर्फ एक से दो सप्ताह के दौरान नाबालिग बच्चों के साथ रेप की कई घटनाओं ने देश की अदालतों व अच्छी सोच रखने वाले राजनेताओं को भी सोचने विवश कर दिया है कि काननू को अब कैसा रूप दिया जाये कि ऐसे पशुओं पर किस तरह लगाम लगाई जाये? दिल्ली में निर्भया बलात्कार-हत्या कांड के बाद पूरे देश में एक स्वर से यह मांग उठी थी कि ऐसे दरिन्दों के साथ सख्त से सख्त कार्रवाही की जाये,जस्टिस वर्मा आयोग का गठन भी इसी सिलसिले में किया गया लेकिन देश में इस बुराई पर किसी प्रकार से काबू नहीं पाना यही दर्शा रहा है कि कानूून में अब भी कहीं न कहीं कमी है और ऐसे अपराधियों मेेंं किसी प्रकार का खौफ नहीं है.रेप की घटनाए...

'हाथी मेरा साथीÓ नहीं अब छत्तीसगढ़ के जशपुर और कई क्षेत्रों में 'दुश्मनÓ

दो हफते में आधा दर्जन बार हाथी का इंसानों पर हमला! और एक पचास वर्षीय व्यक्ति की परसो कुचलकर हत्या के बाद भी प्रशासन का हाथ पर धरे बैठे रहना उसकी विवशता ही दर्शाता है. सरकार का बेबस वन अमला हेल्प लाइन और कुछ सतर्कता उपायों से गांव के लोगों को सतर्क करने के सिवा कुछ भी कर पाने में असमर्थ हैं. हां लोग रात में ड्रम बजाकर व शोर मचाकर यह कोशिश जरूर करते हैं कि हाथी उनके पास तक न पहुंचे. हाथियों के उत्पात ने कई गांवों की नींद खराब कर दी है.यह सब हो रहा है छत्तीसगढ़ के जशपुर इलाके में! जहां दो सौ गांवों के करीब पांच सौ घरों के लोग हाथियों से परेशान हैं. वे उनकी फसल को नुकसान पहुंचाते हैं घरों को तबाह कर देते हैं तथा सामने इंसान दिखे तो पहले सूण्ड से उठाते हैं, फेंकते हैं और फिर पैरों से कुचलकर मार डालते हैं. इन गांव वालों की रक्षा के लिये न पुलिस वाले हैं ओर न कोई हाथियों के बारे में जानने वाले विशेषज्ञ! सालभर निर्दोषों की हत्या,फसल व संपत्ति को नुकसान का सिलसिला चलता रहा है अभी दो रोज पहले भी ऐसा हुआ जब भारत सरकार द्वारा संरक्षित कोरवा जनजाति पर हथियों का हमला हुआ... पूरा परिवार कहीं जा रह...

किसने किया समाज को विभक्त? क्यों चल रहा है आजाद भारत में दोहरी व्यवस्था का मापदण्ड?

भेद-भाव ,ऊच-नीच, बड़ा-छोटा,अमीर-गरीब, दलित-दबंग और ऐसी कई बुराइयों के चलते हमारा समाज न प्रगति कर पा रहा है और न दुनिया के सामने अपना दम खम कायम कर पा रहा है. हम अपनी ही आंतरिक बुराइयों में उलझे हुए हैं. हमें इसके आगे न कुछ सोचने की फुर्सत है और न ही हम कुछ सोच पा रहे हैं रोज नई-नई बलाओं के चलते निर्वाचित होने वाली सरकार के कुछ लोग (सभी नहीं) यह सोचने विवश है कि वह पहले क्या करें? अपने घर को सुधारे या समाज को सुधारने और विकास में अपना ध्यान लगायें. राजनीति और हमारी सामाजिक व्यवस्था दोनों की ही नकेल ढीली पड़ गई है. हम सोचते थे कि कुछ परिवर्तन आगे आने वाले वर्षों में होगा लेकिन अब उसपर भी पानी फिरते नजर आ रहा है. आखिर हमारी व्यवस्था बिगड़ी कहां से है? ऊपर से या नीचे से? अक्सर हम सारा दोष नीचे को ही देते हैं, चाहे वह सरकारी स्तर पर होने वाली गड़बड़ी हो या सामाजिक स्तर पर होने वाली गड़बड़ी . एक बड़ा घोटाला हुआ तो नीचे का बाबू या चपरासी को बलि का बकरा बनाकर सब कुछ रफा-दफा कर दिया जाता है किन्तु कभी यह नहीं होता कि इसकी जवाब देही तय हो कि आखिर इसके लिये दोषी कौन है? जब हम युद्व लड़ते हैं ...

राजनीति की बिगड़ी लगाम को थामने एनजेएसी के विरूद्ध सुप्रीम कोर्ट का फैसला!

 विवादित बयानों, भ्रष्ट राजनीति, भ्रष्टाचार तथा आपराधिक तत्वों के बढ़ते हौसले और उनको प्राप्त राजनीतिक संरक्षण के तहत हमारी वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था का स्वरूप क्या होगा यह हम नहीं कह सकते लेकिन जो राजनीतिक  माहौल आज दिखाई दे रहा है वह यही संकेत दे रहा है कि कुछ अच्छा नहीं चल रहा. आजादी के बाद से अब तक के वर्षों में तो कम से कम ऐसा कभी नहीं हुआ जो अब हो रहा है. मुंहफ ट और कुछ भी बोलकर विवाद पैदा कर देश की एकता अखंडता और संप्रभुता को खतरे में डालने की प्रवृति हम सबकों सोचने के लिये विवश कर रही है कि हमारा रास्ता कितना कठिन होता जा रहा है. इस संदर्भ में भारत के उपराष्ट्रपति अब्दुल हामिद अंसारी का रायपुर में दिया गया वह बयान भी महत्वपूर्ण है जिसमें उन्होने कहा है कि 'हमें हमारे राजनीतिक, सामाजिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के संवैधानिक तरीकों पर कायम रहना है तथा अपनी स्वतंत्रता का समर्पण किसी महान् व्यक्ति के कहने पर भी नहीं करना है. जिससे वह हमारी संस्थाओं को ही नष्ट करने लगेÓ. अगर हम देश के संविधान की बात करें तो उसे बनाने वालों ने हर व्यक्ति को आजादी कुछ हद से ज्यादा प्रदान ...

खामोश शहर पर फिर डकैतों ने अस्तित्व की छाप छोड़ी दस्युओं की पुलिस को चुनौती!

एक बार फिर राजधानी रायपुर में कठोर अपराधियों ने अपनी मौजूदगी का एहसास दिलाया है. सेल टैक्स कालोनी के भावना नगर मेें डकैतों ने चंद दिनों के भीतर एक और परिवार को शिकार बनाया, इससे पूर्व समता कालोनी में भी डकैत अपना जलवा दिखा चुके हैं जबकि क्रीस्ट सहायता केन्द्र की नन से बलात्कार के आरोपी भी अब तक छुट्टा घूम रहे हैं लेकिन उस समय तो सारा पुलिस महकमा खुशी से झूम रहा था जब एक उद्योगपति को अपहरण के कुछ घंटो बाद ही रिहा करा लिया गया. उस समय बड़े बडे लोगों ने इस पर संज्ञान लिया और पुलिस को ढेर सारी बधाइयां दी, अब क्या हो गया? क्यों पुलिस खामोश है? आज जब भावना नगर की घटना हुई तो शाबाशी देने वालों को सांप क्यों सूंघ गया? दो डकैती कांड और नन बलात्कार कांड की भीषण और रहस्यमय घटना से जहां सारा शहर दुर्घन्धित है जबकि ऐसी अनेक -अनेक अनसुलझी घटनाओं से शहर के थानों के पन्ने भरे पड़े हैं लेकिन पुलिस हैं कि कयास लगाती बैठी है. भावना नगर में डकैती की घटना में सबकुछ ठीक वैसे ही हुआ जैसे समता कालोनी के इन्कम टैक्स वकील अग्रवाल के घर हुआ. कोई फरक नहीं, वहां ग्रिल तोड़कर घुसे और सेल्सटैक्स  कालोनी के भावन...

अंधेरे से उजाले तक का लम्बा सफर,'महुआ वर्षों बाद अब जाकर महका!

                            एक समय था जब राजधानी रायपुर के पश्चिम क्षेत्र में रहने वालों को लोग मजाक उड़ाकर कहते थे कि यह तो गांव से आता है. बात उनकी सही थी आयुर्वेदिक कालेज से टाटीबंध तक जाने में लोगों को डर लगता था चूंकि यहां न स्ट्रीट लाइट थी और न ही कोई रात में आता-जाता था. धीरे धीरे कालोनियों का विकास हुआ. एसबीआई की कालोनी महोबाबाजार में बनी फिर हीरापुर में सर्वोदय कालोनी के नाम से प्रोफेसरों की कालोनी बनी.महोबाबाजार के आसपास पूरे क्षेत्र में धान के खेत व महुुआ के झाड़ हुआ करते थे, इन महुए की महक आज भी पुराने लोगों की नाक में है. इन्हीं महुआ वृक्षों के कारण इस क्षेत्र का नाम महुआ बाजार पड़ा और आज यह महोबाबाजार हो गया.      सुविधाओं के अभाव में जीने वालों को ही सुविधा मिलने पर उसकी खुशी का एहसास होता है. यहां के लोगों ने वर्षों पूर्व इस क्षेत्र में सुविधाओं की मांग करते हुए प्रदर्शन व आंदोलन भी किया. वे चाहते थे कि यहां तक सिटी बसे चले, आमानाका रेलवे क्रासिंग पर ओवर ब्रिज बने, सरोना को भोपाल ...

जूता-चप्पल फेक से कालिख पोत तक का सफर-समय के साथ बदलता रहा,विरोध का तरीका भी!

जूता-चप्पल फेक से कालिख पोत तक का सफर-समय के साथ बदलता रहा,विरोध का तरीका भी! सन् दो हजार आठ से दुनिया में बड़े और नामी नेताओं तथा ख्याति प्राप्त लोगों पर जूता- चप्पल फेकने और अपना ध्यान आकर्षित कराने का एक सिलसिला चला हुआ है.विदेश ही नहीं हमारे देश में भी कई बड़े नेता अब तक ऐसे विरोध प्रदर्शन की चपेट मेंं कई देशों के पूर्व राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और देशों के बड़े नेता इसकी चपेट में आ चुके हैं. सन् 2008 में अमरीका के पूर्व राष्ट्रपति जार्ज डब्लू बुश पर बगदाद में मुत्ताधर अल जैदी नामक व्यक्ति ने उस समय जूता फेका जब राष्ट्रपति बुश प्रधानमंत्री पेलेस में एक पत्रकार वार्ता को सम्बोधित कर रहे थे. 2009 में चीनी प्रधानमंत्री बेन जरिबाओ पर एक 27 वर्षीय जर्मन मार्टिन झोके ने यह कहते हुए जूता फेका कि कैसे हम इनके झूठ को सुने? विदेशों में तो नेल्सल मण्डेला भी इससे नहीं बचे फिर भारत में तो पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, लालकृष्ण आडवाणी,नवीन जिंदल,पी चिदम्बरम जैसी बड़ी हस्तियों के अलावा कर्ई हस्तियां जूता प्रहार झेल चुके हैं जबकि ऐसे कृत्यों के साथ कालिख पोतने की भी घटानाएं लगातार सुर्खिया ...

'तो के बगैर अब कुछ नहीं, यह अब सरकारी मदद और काम का हिस्सा बना!

! मां बव्चे से कहती है -गिलास भर दूध पियोगे 'तोÓ तुम्हे घूमने ले जाएंगे खिलौने लेकर देंगे..यही 'तोÓ अब रोजमर्रे की जिंदगी का 'तोÓ बन गया है-इसका महत्व इतना बढ़ गया है कि अब इसके बगैर कोई काम नहीं होता. काम चाहिये तो पैसा, पैसा कमाना हो तो काम,जमानत चाहिये तो पैसा, शादी करना हो तो दहेज,मरना हो तो लकड़ी या कब्र... और न जाने क्या क्या? सबसे मजेदार बात तो यह कि अब सरकार भी तो-तो करने लगी है.हाल ही सरकार ने एक पहल की उसमें भी उसने तो लगा दिया-यह पहल थी Óयादा से Óयादा लोगों को रोजगार देने की..सरकार ने नियोजकों पर शर्त लगा दी कि अगर आप अपने संस्थान में Óयादा से Óयादा लोगों को रोजगार देंंगे तो आपको इंकम टैक्स में छूट दी जायेगी. यह तो कुछ दिन जारी रहेगा फिर खत्म हो जायेगी. असल में यह सरकार की योजना का हिस्सा है जिसमें उसने घोषणा की थी कि हम Óयादा से Óयादा बेरोजगारों को नौकरी पर लगायेंंगे, सरकार ने  बहुत प्रतीक्षा की लेकिन Óयादा लोग नौकरी पर नहीं लग सके तो फिर एक स्कीम तैयार की गई जिसमें उसने तो लगा दिया- इंक म टैक्स में छूट चाहिये तो Óयादा लोगों को नौकरी पर लगाओं. बहरहाल यह योजना...

विकास की छाया में पल गये कई टैक्स और कंकाल में बदल गया आम आदमी!

डेव्हलपमेंट की छाया में जो टैक्स थोपे जा रहे हैं उसने सामान्यजन के रास्ते को कठिन बना दिया है. वह न कुछ बोल पा रहा है और न कुछ कर पा रहा है जिसके पास पहले से मिल रही तनख्वााह है वह दुविधा में है और जिसके वेतन में बढ़ौत्तरी की गई है वह भी परेशान है.किसान ऋण के बोझ तले दबा है तो आम आदमी मंहगाई और भारी टैक्स के बोझ तले! किसानों ने ऋण को लेकर मौत को चुना तो अब आम आदमी भारी टैक्स और मंहगाई को लेकर फ्रस्टेशन में हैं, उसके सामने परिवार चलाने की समस्या है. केन्द्र की नई सरकार ने तो पिछले एक साल में टैक्स लादा ही है वहीं राज्यों की सरकार और इन राज्य सरकारों के अधिनस्थ काम करने वाली स्वायत्त संस्थाओं ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी है. विकास के नाम पर हमारी जेब से पैसा निकालना जारी है. चाहे वह किसी भी टैक्स के रूप में क्यों न हो. सड़क पर चलो तो टोल टैक्स और घर में बैठों तो स्वच्छता के नाम पर! लेकिन सुविधाएं जो इन टैक्सों के नाम पर कथित रूप से दी जा रही है वह किसी देने वाले को पता ही नहीं चल रही. जबकि वह इन्कम टैक्स भी पटा रहा है,संपत्ति कर भी पटा रहा है और सैकड़ों अन्य कर भी पटा रहा है साथ ही कचरा फ...

सरकार की खामोश जांच प्रणालियां दवा का तो काम करती है,देरी भी उतनी ही!

 विभागीय जांच,सस्पेण्ड, लाइन अटैच, मजिस्ट्रीयल जांच और ज्यादा हुआ तो सीआईडी अथवा सीबीआई या न्यायिक जांच -यह कुछ ऐसी प्रक्रियाएं हैं जिन्हें सरकारी तौर पर दवा के रूप में उपयोग किया जाता है. इनमें से कुछ ऐसी है जिनका असर कभी दिखाई ही नहीं देता अर्थात जांच रिपोर्ट कब आती है और क्या निर्णय होता है यह किसी को मालूम नहीं होता. सरकार की यह सब प्रक्रियाएं कुछ को छोड़कर तब अपनाई जाती है जब कोई सीरियस घटना होती है और जनता इसको लेकर उद्वेलित होती है. मोटे तौर पर कहा जाये तो इन प्रक्रियाओं में से बहुतों का संबन्ध सरकार की कार्यप्रणाली से जुड़ा है. कुछ जांच के आदेश मजबूरन दिये जाते हैं जब जनता उस घटना को लेकर आक्र ोश में आ जाती है गुस्से में मारपीट की नौबत आती है पथराव, आगजनी और बड़ी हिंसा की वारदात होती है. कुछ कर्मचारियों द्वारा कथित तौर पर गलतियां करने और सरकारी कामकाज में ढिलाई करने आदि पर होती है जिसमें विभागीय जांच या सस्पेण्ड जैसी कार्रवाही होती है. अमूमन सारी जांच प्रक्रियाओं में कई दिनों तक की देरी संभावित है लेकिन जांच का आदेश या आयोग बिठाकर सरकार उस समय होने वाली घटना के सरदर्द से...

छत्तीसगढ़ में बुनियादी शिक्षा को यूं बिगाडऩे का ठेका किसने दिया?

एक समय ऐसा था जब छत्तीसगढ़ के रायपुर में स्थापित रविशंकर विश्वविद्यालय ने अपने घपले-घोटाले जिसमें रद्दी कांड,फर्जी डिग्री कांड, अंकसूची कांड आदि के चलते अपनी साख खो दी थी-यहां तक कि इस विश्वविद्यालय से डिग्री लेकर निकलने वाले छात्रों को कहीं नौकरी पर लगाने से पहले भी लोग दस बार सोचते थे- इस स्थिति से निजात पाने में विश्वविद्यालय को वर्षों लग गये. अब ले देकर यह विश्वविद्यालय अपनी साख पुन: कायम करने में ज्यों त्यों सफल हुआ है, तभी छत्तीसगढ़ की बुनियादी शिक्षा पर प्रश्र चिन्ह लगता नजर आ रहा है- यहां कि शिक्षा, शिक्षक और संपूर्ण व्यवस्था को सम्हालने वाले प्राय: सभी इस समय न केवल संदेह के दायरे में हैं बल्कि उनपर गंभीर आरोप भी है. ऐसे में सवाल यह उठता है कि बुनियादी शिक्षा की जड़े ही जब मजबूत नहीं हो पा रही है तो क्या यहां कि उच्च शिक्षा और अन्य शिक्षा से जुड़ी संस्थाएं विश्व की बात छोड़े अपने देश में ही अपना अस्तित्व जमा सकेंगी?. मध्यप्रदेश में हुए व्यापमं घोटाले के तो तार यहां से जुड़े होने के कुछ-कुछ प्रमाण मिले हैं अब दुष्कर्म मामले में जेल में बंद आसाराम बापू के कथित दिव्य पुस्तकों ...

रक्त ऐसे बह रहा जैसे नदी बह रही हो, किस-किस पर रोयें?

 रक्त ऐसे बह रहा जैसे  नदी बह रही हो,  किस-किस पर रोयें?  मांस खाने वाले प्राणी का पूरा जीवन ही मारकाट से भरा रहता है, किसी निर्जीव की हत्या करते समय उसे जरा भी  ज्ञान नहीं रहता कि वह क्या कर रहा है, उसे सिर्फ चिंता रहती है कि अपना पेट कैसे भरा जाये? जन्मजात मांसभक्षी होने से उसे इस बात की चिंता नहीं कि कौन कैसा है और उसके मरने से उसे क्या मिलने वाला ? लेकिन क्या मनुष्य भी जंगली जानवरों की तरह है?-उसे तो बनाने वाले ने इतनी सोचने की शक्ति दी है कि वह अच्छा बुरा क्या है बखूबी समझ सकता है. वह क्यों जानवरों की तरह हरकत करता है-मानते हैं कुछ लोगों को जानवरों का मांस खाने की जन्मजात आदत है किन्तु ऐसा भी तो मत करों कि उस प्राणी का अस्तित्व ही इस संसार से मिट जाये! अपने स्वार्थ और अपनी खुशी के लिये मनुष्य ने जानवरों का तो वध किया है और उनके अस्तित्व को ही खतरे में डाल दिया मगर अब वह इसे लेकर या अन्य दूसरे बहानों के बल पर अपने ही जैसे और अपने खून का भी वध करने पर उतर आया है. कहीं कोई कुछ बहाना बनाता है तो कहीं कुछ. विश्व  का एक पूरा भाग आतंकवाद के उन्माद में ड...

और अब हूँन ने भी लिख डाली पुस्तक

...और अब हून ने भी लिख डाली पुस्तक-ऐसा दावा किया कि सब सोचने हुए मजबूर! रिटायर होनेे के बाद प्राय: कुछ लोगों को पुस्तक लिखने का शौक आ जाता है लिखवाने और छपवाने दोनों के लिये उनके पास लोगों की कोई कमी नहीं रहती और वे उसका भरपूर फायदा भी उठाते हैं. यूं तो उनकी आत्मकथा से किसी  को कोई लेना देना नहीं होता लेकिन जब ऐसे लोग किसी स्वर्गीय प्रसिद्व लोगों का नाम और उनके जीवन में घटित घटनाचक्र का खुलासा करते हैं तो स्वयं तो चर्चा में आ जाते हैं दूसरों को भी खुलकर बोलने का मौका देते हैं. अब कोई मृत व्यक्ति अपना स्पष्टीकरण देने आनेे वाला तो नहीं तो फिर क्यों न ऐसी कुछ बातों की कल्पना की जाये जो 'शायदÓ की श्रेणी में आती हो.  हाल के वर्षों में जीवनी लिखने वालों की बाढ़ सी आ गई है. इनमें से उस समय के लोग भी हैं जो स्व.जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी के जीते जी उनके खिलाफ मुंह खोलने की भी हिमाकत नहीं करत थेे. जहां तक नेताजी सुभाषचंद बोस की जीवनी का सवाल है उनकी मृत्यु को लेकर बहुत सी भ्रांतियां है यह बाते आज भी सामने आये तो बात समझ में आती है लेकिन इंदिरा और नेहरू के समय के लोग तो अब भी...

डेढ़ सौ साल पहले बना लाउड़स्पीकर अब इंसान का दुश्मन बना!

लाउडस्पीकर की आवाज से लोगों को इतनी नफरत हो गई है कि जोर से बोलने वालों को भी अब लोग लाउडस्पीकर का नाम देने लगे हैं. आज की दुनिया में लोग लाउडस्पीकर पर प्रतिबंध नहीं चाहते बल्कि इसके  उत्पादन पर ही प्रतिबंध चाहते हैं.यद्यपि सुप्रीम कोर्ट ने आस्था स्थलों पर लाउडस्पीकरों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने से मना किया है लेकिन लोगों को तो समझना चाहिये कि यह आम लोगों के लिये कितना अनुपयोगी व हानिकारक है. अब तो लाउडस्पीकर लोगों की जान के दुश्मन बनने लगे हैं.ऐसे में क्या लाउडस्पीकर का उपयोग जारी रखना उचित है? आस्था केन्द्रो में सदैव शाङ्क्षत होनी चाहिये चूंकि यह उस परमात्मा का वासस्थल है जिसने दुनिया को बनाया है अगर वहीं आप अशांति फैलाओगे तो फिर इसका मतलब तो यही है कि आपको उन्हीं पर विश्वास नहीं है, बहरहाल आज हालात यह हो गये हैं कि लाउडस्पीकर आज नफरत फैलाने का भी एक जरिया बन गया है. हर पांचवी हिंसा की घटना नफरत की लाउडस्पीकर से निकल रही है. अब देश में लाउडस्पीकर का बड़ा भाई डीजे भी सड़क पर उतर आया है जो लोगों की धड़कनों पर सीधा प्रहार करता है कई लोगों की धड़कने इसकी आवाज से बंद हो जाती है. देश...

करोड़ों का एम्स क्या अंचल की आशाओं,आकाक्षांओं पर खरा उतर रहा! यहां क्या हो रहा है?

करोड़ों रूपये खर्च कर रायपुर में बनाया गया अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान  संस्थान 'एम्सÓ क्या छत्तीसगढ़ के लोगों की आशाओं के अनुरूप खरा उतर रहा है? या आंतरिक गुटबाजी, अव्यवस्था और अनुशासनहीनता जैसी बुराइयों में फंसता जा रहा है? एक सौ बीस एकड़ से ज्यादा क्षेत्र में फैले इस ख्याति प्राप्त अस्पताल का विवाद शुरू से इसके साथ रहा है. एम्स बनाने की घोषणा के बाद कई वर्षों तक न इसके लिये बजट स्वीकृत किया गया और न ही कोई संज्ञान लिया गया. ले देकर कार्य शुरू हुआ तो फंड का रोना रोते हुए कई बार निर्माण कार्य में विलंब हुआ और कोई न कोई अड़ंगा आता रहा. आखिर दो साल पहले इसका उद्घाटन हुआ तो बस कुछ ही तरह की चिकित्साएं यहां सुलभ हुई. अब तो आलम यह है कि अस्पताल बनाने वाली कंपनी आगे का निर्माण कार्य बीच में ही छोड़कर चली गई. बताया जा रहा है कि कंपनी का पेमेन्ट नहीं दिया गया है ऐसे में उसके लिये आगे का काम जारी रखना मुश्किल है वह अपना बोरिया बिस्तर बांधकर रायपुर से चला गया. स्थानीय अस्पताल प्रबंधन का यद्यपि इस मामले में हस्तक्षेप नहीं है लेकिन कंपनी द्वारा फिनिश्ंिाग कार्य व अन्य जो कार्य उसे करना था उसे...

उम्र कैद की सजा पर से संदेह खत्म! क्या फांसी की सजा पर भी सुको सज्ञान लेगी?

याकूब मेनन को फांसी  से पहले व बाद से यह बहस का विषय है कि फांसी दी जानी चाहिये या नहीं अभी भी इसपर बहस जारी है लेकिन इस बीच उम्र कैद का मामला भी सुर्खियों में है कि आखिर उम्र कैद होती है, तो कितने साल की? यह माना जाता रहा है कि उम्र कैद का मतलब है- चौदह साल जेल लेकिन अब यह स्पष्ट हो गया है कि उम्र कैद चौदह साल नहीं बल्कि ताउम्र है याने अपराधी की जब तक जिंदगी है तब तक उसे जेल में ही काटनी होगी. छत्तीसगढ के धीरज कुमार, शैलेन्द्र और तीन दोषियों के मामले में याचिका पर सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति टीएस ठाकुर और वी गोपाला गोवड़ा की बेंच ने समाज के एक वर्ग द्वारा फांसी की सजा के विरूद्व अभियान पर टिप्पणी करते हुए कहा की यह वर्ग चाहता है कि फांसी को खत्म कर उसकी जगह आजीवन कारावास की सजा दी जाये तथा स्पष्ट किया कि उम्र कैद का मतलब उम्र कैद होता है न कि चौदह साल. अपराधी जिसे उम्र कैद हुई है उसे अपनी पूरी उम्र सलाखों के पीछे बितानी होगी. इससे यह तो संकेत मिलता है कि भविष्य में फांसी को खत्म करने पर भी विचार किया जा सकता है. सर्वोच्च अदालत ने अब तक उम्र कैद के संबन...

सड़क से..लेकर बस,ट्रेेन और प्लेन तक मौत का पीछा...आखिर कौन है इन सबके लिये जिम्मेदार?

सबसे पहले राजधानी के छेरी-खेड़ी इलाके से लगी उस बुरी खबर का जिसमें तीन छात्रों की मौत हो गई. दो अन्य भी गंभीर रूप से घायल हुए हैं. राजधानी में फैशन डिजाइनिंग की पढ़ाई करने वाले 10 दोस्त बर्थडे मनाने दो कारों में सवार होकर नया रायपुर जा रहे थे. दोनों कारों के बीच रेस होने लगी, रेस के दौरान दोनों का बैलेंस बिगड़ा और आपस में टकरा गये. हादसे में  कार में सवार तीन छात्रों  की मौत हो गई जबकि दो युवक गंभीर रूप से घायल हैं. इस दर्दनाक हादसे में टाटीबंद रायपुर की  किरण पनेज सहित उसकी क्लास मेट अनिशा सरलिया व सिद्वार्थ अब इस दुनिया में नहीं रहे-सभी को हार्दिक श्रद्वांजलि. रायपुर की खबर चौका देने वाली है जबकि हंसी खुशी परिवार को लेकर ट्रेन, बस या हवाई जहाज से सफर करने वालों की जिंदगी का भी अब कोई भरोसा नहीं रहा.कभी सपने में भी नहीं आता कि हम जिस सफर पर जा रहे हैं  यह हमारी आखिरी यात्रा हो सकती है, किन्तु हो जाती है. यह मौत कभी एक्सीडेंट के रूप में तो कभी डकैती, लूट, छेड़छाड़ या अन्य किसी तरह से होती है. प्लेन में सफर करने वाले चंद मिनटों या घंटो में अपने गंतव्य पर पहुंच गये...