सरकार की खामोश जांच प्रणालियां दवा का तो काम करती है,देरी भी उतनी ही!
विभागीय जांच,सस्पेण्ड, लाइन अटैच, मजिस्ट्रीयल जांच और ज्यादा हुआ तो सीआईडी अथवा सीबीआई या न्यायिक जांच -यह कुछ ऐसी प्रक्रियाएं हैं जिन्हें सरकारी तौर पर दवा के रूप में उपयोग किया जाता है. इनमें से कुछ ऐसी है जिनका असर कभी दिखाई ही नहीं देता अर्थात जांच रिपोर्ट कब आती है और क्या निर्णय होता है यह किसी को मालूम नहीं होता. सरकार की यह सब प्रक्रियाएं कुछ को छोड़कर तब अपनाई जाती है जब कोई सीरियस घटना होती है और जनता इसको लेकर उद्वेलित होती है. मोटे तौर पर कहा जाये तो इन प्रक्रियाओं में से बहुतों का संबन्ध सरकार की कार्यप्रणाली से जुड़ा है. कुछ जांच के आदेश मजबूरन दिये जाते हैं जब जनता उस घटना को लेकर आक्र ोश में आ जाती है गुस्से में मारपीट की नौबत आती है पथराव, आगजनी और बड़ी हिंसा की वारदात होती है. कुछ कर्मचारियों द्वारा कथित तौर पर गलतियां करने और सरकारी कामकाज में ढिलाई करने आदि पर होती है जिसमें विभागीय जांच या सस्पेण्ड जैसी कार्रवाही होती है. अमूमन सारी जांच प्रक्रियाओं में कई दिनों तक की देरी संभावित है लेकिन जांच का आदेश या आयोग बिठाकर सरकार उस समय होने वाली घटना के सरदर्द से बच जाती है या कहे कि उत्तेजित पब्लिक को शांत कर लेती है इसके बाद घटना का क्या हुआ क्या जांच परिणाम निकला इसका न उस समय की आक्रोशित जनता को कोई मतलब रहता है. अब रायपुर के लोधीपारा में बुधवार को हुई घटना को ही ले लीजिये यहां दो लाइनमैन बिजली सुधार के लिये खम्बे पर चढ़े और किसी ने लाइन चालू कर दी. किसी ने क्या सबको मालूम है कि बिजली विभाग के किसी जिम्मेदार व्यक्ति ने ही इसे चालू किया होगा. दोनों लाइनमैन विद्युत झटका
खाकर नीचे गिरे और उनकी मौत हो गई.भीड़ ने आक्रोश में आकर जिम्मेदार एक कर्मी की पिटाई कर दी. पुलिस ने आक्र ोश शांत करने के लिये भीड़ को जांच का आश्वासन दिया तो वे शांत हो गये अब इस मामले में गया किसका? उस परिवार का जिसके भरण पोषण की जिम्मेदारी इन व्यक्तियों के सिर पर था. क्या जांच होगी? रिपोर्ट कब आयेगी और उस परिवार की जिंदगी कैसे कटेगी यह देखने वाला कोई नहीं. प्रशासन को ऐसे मामले में सिर्फ इस बात की फिक्र रहती है कि कैसे भी तत्काल मामले को शांत कर दिया जाये. अक्सर ऐसा ही होता है-भीड़ को शांत करने के लिये सरकार के अस्त्र या कहें ब्रम्हास्त्र काम आते हैं लेकिन इन अस्त्रों की हकीकत यही है कि यह बहुत ही खामोश अस्त्र हैं जिसका कोई फायदा जनता को नहीं होता है कुछ मामलों में ऐसा भी होता है कि नेताओं की श्रद्वाजंली,मुआवजा भी इन लोगों को शांत करने में अहम भूमिका अदा करती है. कुछ नेताओं के पास तो रटे रटाये या पहले से कम्पूयटर में सेव्ड श्रद्वांजलि और मुआवजे के अंक पड़े रहते हैं जिसमें नाम और मुआवजे की राशि कम ज्यादा करनी पड़ती है.
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