किसने किया समाज को विभक्त? क्यों चल रहा है आजाद भारत में दोहरी व्यवस्था का मापदण्ड?



भेद-भाव ,ऊच-नीच, बड़ा-छोटा,अमीर-गरीब, दलित-दबंग और ऐसी कई बुराइयों के चलते हमारा समाज न प्रगति कर पा रहा है और न दुनिया के सामने अपना दम खम कायम कर पा रहा है. हम अपनी ही आंतरिक बुराइयों में उलझे हुए हैं. हमें इसके आगे न कुछ सोचने की फुर्सत है और न ही हम कुछ सोच पा रहे हैं रोज नई-नई बलाओं के चलते निर्वाचित होने वाली सरकार के कुछ लोग (सभी नहीं) यह सोचने विवश है कि वह पहले क्या करें? अपने घर को सुधारे या समाज को सुधारने और विकास में अपना ध्यान लगायें. राजनीति और हमारी सामाजिक व्यवस्था दोनों की ही नकेल ढीली पड़ गई है. हम सोचते थे कि कुछ परिवर्तन आगे आने वाले वर्षों में होगा लेकिन अब उसपर भी पानी फिरते नजर आ रहा है. आखिर हमारी व्यवस्था बिगड़ी कहां से है? ऊपर से या नीचे से? अक्सर हम सारा दोष नीचे को ही देते हैं, चाहे वह सरकारी स्तर पर होने वाली गड़बड़ी हो या सामाजिक स्तर पर होने वाली गड़बड़ी . एक बड़ा घोटाला हुआ तो नीचे का बाबू या चपरासी को बलि का बकरा बनाकर सब कुछ रफा-दफा कर दिया जाता है किन्तु कभी यह नहीं होता कि इसकी जवाब देही तय हो कि आखिर इसके लिये दोषी कौन है? जब हम युद्व लड़ते हैं तो उसमें विजयी होने का श्रेय उसके कमाण्डर को देते हैं-अगर हार गये तो उसकी जिम्मेदारी से भी कमाण्डर बच नहीं सकता-क्यों नहीं यह पद्धति हर क्षेत्र में अपनाई जाती. हमारा समाज आज कितने भेदभावपूर्ण वातावरण में चल रहा है वह ऊपर से ही शुरू होता है-हर तरफ भेदभाव चाहे वह सरकारी नौकरी हो चाहे निजी अथवा संपूर्ण व्यवस्था,जिसके नियम कायदे ही टेढ़े-मेढ़ेे रास्तों को पार करते हुए निकलता है जिसमें हमारी चुनावी व्यवस्था भी शामिल है अब इन लाइनों को गौर कीजिये कैसी कैसी विभिन्नताओं से हम रूबरू हो रहे हैं:-नेता चाहे तो दो सीट से एक साथ चुनाव लड़ सकता है लेकिन हम आम लोग जो उन्हें चुनकर विधानसभा या लोकसभा में भेजते हैं दो जगहों पर वोट नहीं डाल
सकते. आप या हम अगर जेल में बंद हो तो हमको वोट डालने का अधिकार नहीं है लेकिन नेता जेल में रहते हुए भी चुनाव लड़ सकता है. हममें और उनमें कितना फर्क कर दिया गया है? अगर हम कभी जेल गये थे तो जिंदगी भर के लिये भूल जाइये कि किसी सरकारी नौकरी में लग पायेंगे अर्थात हमारा पूरा कैरियर खराब! इधर नेता चाहे जितनी बार भी चोरी, लूट,डकैती बलात्कार-हत्या के मामले में जेल गया हो वह प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति जो चाहे बन सकता है.इसी प्रकार बैंक में नौकरी पाने के लिये आपको ग्रेजुएट होना जरूरी है लेकिन नेता चाहे अंगूठा छाप क्यों न हो वह भारत का फायनेंस मिनिस्टर बन सकता है.आपको सेना या पुलिस में मामूली सिपाही की नौकरी पाने के लिये डिग्री के साथ दस किलोमीटर दौड़कर दिखाना होगा लेकिन नेता यदि अनपढ़,और लूला लंगड़ा हो तो भी वह आर्मी नेवी और एयर फोर्स का चीफ बन सकता है, देश का शिक्षा मंत्री भी बन सकता हैं और जिस नेता पर हजारों केस चल रहा हो वह पुलिस डिपार्टमेंट का चीफ यानी गृह मंत्री बन सकता है? नेता और जनता के बीच ऐसा विभेद किसने किया? क्यों हमारा सिस्टम गड़बड़ा रहा है?क्या इनके पीछे यह सारे तथ्य भी विद्यमान नहीं है?

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

ANTONY JOSEPH'S FAMILY INDX

बैठक के बाद फिर बैठक लेकिन नतीजा शून्‍य

गरीबी हटाने का लक्ष्य अभी कोसो दूर!