नन्ही रेप पीडि़ता की नन्हीें बच्ची के जीवन में खुशी ऐसे लौटायेगा हाई कोर्ट!


नन्ही रेप पीडि़ता की नन्हीें
बच्ची के जीवन में खुशी
ऐसे लौटायेगा हाई कोर्ट!
हम इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति जस्टिस शाबिबुल हसनेन और न्यायमूर्ति डी के उपाध्याय के उस एैतिहासिक फैसले का स्वागत करते हैं जिसमें उन्होंने एक ऐसी बच्ची को जीने की राह दिखाई है जो एक तेरह साल की बच्ची से रेप के बाद पैदा हुई. न्यायमूर्तियों ने अपने फैसले में यूपी सरकार को आदेश दिया है कि वो विक्टिम के नाम 10 लाख रुपए की एफडी कराए. सरकार विक्टिम की बेटी की देखभाल करे. इसके अलावा, विक्टिम के एडल्ट होने के बाद उसकी नौकरी का भी इंतजाम करें. सवाल यह भी पैदा हुआ है कि क्या इससे समाज को कोई संदेश जायेगा और व्यवस्था में कुछ सुधार होगा? इस फैसले के तुरन्त बाद थाने में रेप पीडि़ता के पिता ने रिपोर्ट लिखाई है कि रेपिस्टों ने उनकी दूसरी बेटियों से भी रेप की धमकी दी है-कोर्ट के फैसले के बाद अब समाज और पुलिस दोनों का दायित्व और बढ़ गया है कि वह अपने बेटियों की हैवानों से रक्षा कैसे करें. रेप पीडि़ता का यह मामला अबार्शन की मांग को लेकर  सात सितंबर को हाईकोर्ट पहुंचा था,उस समय मेडिकल जांच कराने की सलाह दी गई. जांच के बाद डॉक्टरों की टीम ने यह कहकर इजाजत देने से मना कर दिया कि प्रेग्नेंसी साढ़े सात महीने की हो चुकी है. लड़की ने 26 अक्टूबर को क्वीन मेरी हॉस्पिटल में बच्ची को जन्म दिया.बहरहाल  कोर्ट का फैसला इतना महत्वूपूर्ण और ऐतिहासिक है कि इससे पीडि़तों को तो कुछ हद तक राहत व न्याय मिलेगा लेकिन जो दाग उनके शरीर में लग जाता है उसे मिटाने में समाज कितनी बड़ी भूमिका अदा करेगा यह एक यक्ष प्रश्न की तरह अब भी मौजूद है.चूंकि रेप पीडि़ता को जिंदगीभर के लिये इस कष्ट को झेलना अनिवार्य हो जाता है जिसमें से कई पीडि़ताएं तो ऐसी होती है कि जो इसे सहन नहीं कर पाती और अपना जीवन ही खत्म कर देती है. ऐसे में दुष्टों के लिये कानून को और कड़ा करने की जरूरत है जैसा कि मद्रास उच्च न्यायालय ने हाल ही में कहा है कि नाबालिगों से दुष्टाचार करने वालों को नपुंसक बना दिया जाना चाहिये जबकि सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा है कि नाबालिगों से दुराचार करने वाले लोग पशु हैं. इन दोनों फैसलों पर गौर कर सरकार को ऐसा कानून बनाना चाहिये कि कोई रेप जैसी हैवानियत का विचार ही न कर सके और अगर करता है तो उसकी कठोर सजा भुगतने के लिये भी तैयार रहे. बहरहाल रेप पीडि़त बच्ची के बच्चे मामले मेंं जो फैसला आया है उसमें गौर करने वाली बात है कि अब इस मामले में सरकार को विक्टिम के फ्यूचर के लिए पूर्व में पीडि़ता को दिए गए 3 लाख रुपए के अलावा 10 लाख की एफडी भी करानी होगी. विक्टिम के 21 साल होने पर उसे यह रकम सौंप दी जायेगी. विक्टिम की नवजात बच्ची का मेडिकल चेकअप करने के बाद चाइल्ड वेलफेयर कमेटी को अडॉप्शन के लिए सौंप दिया जाएगा.विक्टिम की पढ़ाई के लिए राज्य सरकार कस्तूरबा गांधी विद्यालय में बिना किसी टेस्ट के एडमिशन दे. पढ़ाई से लेकर हर जरूरत की चीज मुफ्त में मुहैया कराई जाएगी. इस दौरान खाने और रहने की व्यवस्था भी राज्य सरकार को करना होगा. एक गंभीर बात उच्च अदालत ने कही है कि बच्चा चाहे रेप से ही क्यों न पैदा हुआ हो उसे अपने बायोलॉजिकल पिता की संपत्ति में अधिकार है लेकिन इस मामले में अभी आरोपी की संपत्ति में बच्ची को अधिकार के बारे में आदेश नहीं दिया गया है क्योंकि इससे कई कानूनी पेचीदगियां पैदा हो जाएगी चूंकि आरोपी को दोषी भी करार नहीं दिया गया है.संभावना है कि आगे आने वाले वर्षों में कानून में कुछ ऐसे संशोधन हो सकते हैं जो देश से इस बुराई को सदा के लिये खत्म करने में अहम भूमिका अदा करें.

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