फास्ट ट्रेक ने अपनी सार्थकता सिद्ध की,अभी भी देश में हजारों मुकदमें विचाराधीन!
फास्ट ट्रेक ने अपनी सार्थकता
सिद्ध की,अभी भी देश में
हजारों मुकदमें विचाराधीन!
26 मार्च 1972 को चन्द्रपुर महाराष्ट्र की सोलह साल की एक दलित लड़की से दो पुलिस वालों ने रेप किया. 'मथुरा रेप कांडÓ से कुख्यात यह मामला सेशन कोर्ट से हाईकोर्ट फिर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचकर पीडि़ता को न्याय मिलने में सोलह साल लग गये.यह तो न्याय में देरी की बात हुई किन्तु कहावत हैं न 'न्याय में देर है अंधेर नहींÓ-यह अब हमारी न्यायपालिका ने दिखाना शुरू कर दिया है. 16 दिसंबर को दिल्ली में 23 साल की फिजियोथेरोपी विषय की एक मेडिकल छात्रा से बस में गेंग रेप हुआ.सभी आरोपी पकड़े गये तथा उन्हें एक साल के अंदर दस सितंबर 2013 को मौत की सजा सुनाई गई- इस मामले ने देश में रेप के खिलाफ ऐसा माहौल बनाया कि सरकार को इसके लिये न्यायिक आयोग बिठाना पड़ा और आयोग को अस्सी हजार सुझाव देशभर से मिले-कानून में कुछ संशोधन भी हुआ कि न्तु रेपिस्टों को इससे कोई भय नहीं हुआ. दिल्ली रेप कांड के मुल्जिमों में से एक नाबालिग को तीन साल की सजा हुई जबकि बाकी में एक की मौत हो गई तथा शेष करीब चार को फांसी पर लटकाने का फैसला हुआ लेकिन इन्हें आज तक फांसी नहीं हुई.दिल्ली के ही उबेर रेप कांड ने निश्चित रूप से देश में जल्द फैसला देने का इतिहास बनाया है.11 महीने के भीतर दोषी को सज़ा सुना दी! इससे यह भी साबित हुआ है कि देश की न्याय व्यवस्था में देरी जरूर है अंधेर नहीं. पीडि़त को न्याय दिलाने के मामले में न्यायालय को पुलिस का सहयोग जरूरी है अगर वह इसमें पिछड़ गई तो पीडि़त को भी उसका खामियाजा भुगतना पड़ता है. दिल्ली के दोनों मामलो में पुलिस की भूमिका भी काबिले तारीफ है.निहायत भ्रष्ट, सुस्त और लापरवाह समझी जाने वाली दिल्ली पुलिस की एक टोली ने 19 दिन के भीतर उबेर रेप कांड के अपराधी को गिरफ़्तार किया, उससे पूछताछ की, मुक़दमा चलाने के लिए ज़रूरी सबूत और 28 गवाह जुटाये तथा 19 दिन के रिकार्ड वक्त में जांच पूरी करके अदालत में आरोपपत्र दाखिल कर दिया. वाकई में क़माल था यह! इस मामले से 'फास्ट ट्रैक कोर्टÓ का सपना भी पहली बार साकार हुआ.इस फैसले के बाद अब ये सबक़ तो लिया ही जा सकता है कि निचली अदालतों में भारी तादाद में फास्ट ट्रैक अदालतों का जाल तब तक बिछाया जाता रहे जब तक कि हमारी न्यायपालिका हर एक मामले का निपटारा उबेर रेप कांड की तरह निपटाने लायक न बन जाए. क़ानून का राज तब तक हो ही नहीं सकता, जब तक अदालती इंसाफ़ की प्रक्रिया निष्कलंक नहीं हो जाती. आज हमारी अदालतों में 3.15 करोड़ मुक़दमे विचाराधीन हैं. देश में कऱीब 16 हज़ार जज,12
लाख रजिस्टर्ड वकील हैं, इस समय हर एक लाख व्यक्ति पर एक जज है जबकि विधि आयोग की सिफ़ारिश के अनुसार कम से कम पांच जज प्रति लाख तो होना ही चाहिए. देश में 12 लाख से ज़्यादा रजिस्टर्ड वकील हैं. 950 से ज़्यादा लॉ स्कूल में कऱीब पाँच लाख विद्यार्थी वकालत की पढ़ाई करने के बाद भी अदालतों में वकालत करने के लिए बमुश्किल 60-65 हज़ार नये वकील ही हर साल जुड़ते हैं.देश का सर्वोच्च न्यायालय 1950 में आठ जजों से बना था आज इसमें तीस पद हैं और 66 हजार मुकदमें विचाराधीन है. 65 साल में चालीस हजार मामलों का निपटारा सुप्रीम कोर्ट से हुआ है.
फास्ट ट्रेक ने अपनी सार्थकता
सिद्ध की,अभी भी देश में
हजारों मुकदमें विचाराधीन!
26 मार्च 1972 को चन्द्रपुर महाराष्ट्र की सोलह साल की एक दलित लड़की से दो पुलिस वालों ने रेप किया. 'मथुरा रेप कांडÓ से कुख्यात यह मामला सेशन कोर्ट से हाईकोर्ट फिर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचकर पीडि़ता को न्याय मिलने में सोलह साल लग गये.यह तो न्याय में देरी की बात हुई किन्तु कहावत हैं न 'न्याय में देर है अंधेर नहींÓ-यह अब हमारी न्यायपालिका ने दिखाना शुरू कर दिया है. 16 दिसंबर को दिल्ली में 23 साल की फिजियोथेरोपी विषय की एक मेडिकल छात्रा से बस में गेंग रेप हुआ.सभी आरोपी पकड़े गये तथा उन्हें एक साल के अंदर दस सितंबर 2013 को मौत की सजा सुनाई गई- इस मामले ने देश में रेप के खिलाफ ऐसा माहौल बनाया कि सरकार को इसके लिये न्यायिक आयोग बिठाना पड़ा और आयोग को अस्सी हजार सुझाव देशभर से मिले-कानून में कुछ संशोधन भी हुआ कि न्तु रेपिस्टों को इससे कोई भय नहीं हुआ. दिल्ली रेप कांड के मुल्जिमों में से एक नाबालिग को तीन साल की सजा हुई जबकि बाकी में एक की मौत हो गई तथा शेष करीब चार को फांसी पर लटकाने का फैसला हुआ लेकिन इन्हें आज तक फांसी नहीं हुई.दिल्ली के ही उबेर रेप कांड ने निश्चित रूप से देश में जल्द फैसला देने का इतिहास बनाया है.11 महीने के भीतर दोषी को सज़ा सुना दी! इससे यह भी साबित हुआ है कि देश की न्याय व्यवस्था में देरी जरूर है अंधेर नहीं. पीडि़त को न्याय दिलाने के मामले में न्यायालय को पुलिस का सहयोग जरूरी है अगर वह इसमें पिछड़ गई तो पीडि़त को भी उसका खामियाजा भुगतना पड़ता है. दिल्ली के दोनों मामलो में पुलिस की भूमिका भी काबिले तारीफ है.निहायत भ्रष्ट, सुस्त और लापरवाह समझी जाने वाली दिल्ली पुलिस की एक टोली ने 19 दिन के भीतर उबेर रेप कांड के अपराधी को गिरफ़्तार किया, उससे पूछताछ की, मुक़दमा चलाने के लिए ज़रूरी सबूत और 28 गवाह जुटाये तथा 19 दिन के रिकार्ड वक्त में जांच पूरी करके अदालत में आरोपपत्र दाखिल कर दिया. वाकई में क़माल था यह! इस मामले से 'फास्ट ट्रैक कोर्टÓ का सपना भी पहली बार साकार हुआ.इस फैसले के बाद अब ये सबक़ तो लिया ही जा सकता है कि निचली अदालतों में भारी तादाद में फास्ट ट्रैक अदालतों का जाल तब तक बिछाया जाता रहे जब तक कि हमारी न्यायपालिका हर एक मामले का निपटारा उबेर रेप कांड की तरह निपटाने लायक न बन जाए. क़ानून का राज तब तक हो ही नहीं सकता, जब तक अदालती इंसाफ़ की प्रक्रिया निष्कलंक नहीं हो जाती. आज हमारी अदालतों में 3.15 करोड़ मुक़दमे विचाराधीन हैं. देश में कऱीब 16 हज़ार जज,12
लाख रजिस्टर्ड वकील हैं, इस समय हर एक लाख व्यक्ति पर एक जज है जबकि विधि आयोग की सिफ़ारिश के अनुसार कम से कम पांच जज प्रति लाख तो होना ही चाहिए. देश में 12 लाख से ज़्यादा रजिस्टर्ड वकील हैं. 950 से ज़्यादा लॉ स्कूल में कऱीब पाँच लाख विद्यार्थी वकालत की पढ़ाई करने के बाद भी अदालतों में वकालत करने के लिए बमुश्किल 60-65 हज़ार नये वकील ही हर साल जुड़ते हैं.देश का सर्वोच्च न्यायालय 1950 में आठ जजों से बना था आज इसमें तीस पद हैं और 66 हजार मुकदमें विचाराधीन है. 65 साल में चालीस हजार मामलों का निपटारा सुप्रीम कोर्ट से हुआ है.
26 मार्च 1972 को चन्द्रपुर महाराष्ट्र की सोलह साल की एक दलित लड़की से दो पुलिस वालों ने रेप किया. 'मथुरा रेप कांडÓ से कुख्यात यह मामला सेशन कोर्ट से हाईकोर्ट फिर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचकर पीडि़ता को न्याय मिलने में सोलह साल लग गये.यह तो न्याय में देरी की बात हुई किन्तु कहावत हैं न 'न्याय में देर है अंधेर नहींÓ-यह अब हमारी न्यायपालिका ने दिखाना शुरू कर दिया है. 16 दिसंबर को दिल्ली में 23 साल की फिजियोथेरोपी विषय की एक मेडिकल छात्रा से बस में गेंग रेप हुआ.सभी आरोपी पकड़े गये तथा उन्हें एक साल के अंदर दस सितंबर 2013 को मौत की सजा सुनाई गई- इस मामले ने देश में रेप के खिलाफ ऐसा माहौल बनाया कि सरकार को इसके लिये न्यायिक आयोग बिठाना पड़ा और आयोग को अस्सी हजार सुझाव देशभर से मिले-कानून में कुछ संशोधन भी हुआ कि न्तु रेपिस्टों को इससे कोई भय नहीं हुआ. दिल्ली रेप कांड के मुल्जिमों में से एक नाबालिग को तीन साल की सजा हुई जबकि बाकी में एक की मौत हो गई तथा शेष करीब चार को फांसी पर लटकाने का फैसला हुआ लेकिन इन्हें आज तक फांसी नहीं हुई.दिल्ली के ही उबेर रेप कांड ने निश्चित रूप से देश में जल्द फैसला देने का इतिहास बनाया है.11 महीने के भीतर दोषी को सज़ा सुना दी! इससे यह भी साबित हुआ है कि देश की न्याय व्यवस्था में देरी जरूर है अंधेर नहीं. पीडि़त को न्याय दिलाने के मामले में न्यायालय को पुलिस का सहयोग जरूरी है अगर वह इसमें पिछड़ गई तो पीडि़त को भी उसका खामियाजा भुगतना पड़ता है. दिल्ली के दोनों मामलो में पुलिस की भूमिका भी काबिले तारीफ है.निहायत भ्रष्ट, सुस्त और लापरवाह समझी जाने वाली दिल्ली पुलिस की एक टोली ने 19 दिन के भीतर उबेर रेप कांड के अपराधी को गिरफ़्तार किया, उससे पूछताछ की, मुक़दमा चलाने के लिए ज़रूरी सबूत और 28 गवाह जुटाये तथा 19 दिन के रिकार्ड वक्त में जांच पूरी करके अदालत में आरोपपत्र दाखिल कर दिया. वाकई में क़माल था यह! इस मामले से 'फास्ट ट्रैक कोर्टÓ का सपना भी पहली बार साकार हुआ.इस फैसले के बाद अब ये सबक़ तो लिया ही जा सकता है कि निचली अदालतों में भारी तादाद में फास्ट ट्रैक अदालतों का जाल तब तक बिछाया जाता रहे जब तक कि हमारी न्यायपालिका हर एक मामले का निपटारा उबेर रेप कांड की तरह निपटाने लायक न बन जाए. क़ानून का राज तब तक हो ही नहीं सकता, जब तक अदालती इंसाफ़ की प्रक्रिया निष्कलंक नहीं हो जाती. आज हमारी अदालतों में 3.15 करोड़ मुक़दमे विचाराधीन हैं. देश में कऱीब 16 हज़ार जज,12 लाख रजिस्टर्ड वकील हैं, इस समय हर एक लाख व्यक्ति पर एक जज है जबकि विधि आयोग की सिफ़ारिश के अनुसार कम से कम पांच जज प्रति लाख तो होना ही चाहिए. देश में 12 लाख से ज़्यादा रजिस्टर्ड वकील हैं. 950 से ज़्यादा लॉ स्कूल में कऱीब पाँच लाख विद्यार्थी वकालत की पढ़ाई करने के बाद भी अदालतों में वकालत करने के लिए बमुश्किल 60-65 हज़ार नये वकील ही हर साल जुड़ते हैं.देश का सर्वोच्च न्यायालय 1950 में आठ जजों से बना था आज इसमें तीस पद हैं और 66 हजार मुकदमें विचाराधीन है. 65 साल में चालीस हजार मामलों का निपटारा सुप्रीम कोर्ट से हुआ है.
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें