रष्ट्रीय महागठबंधन कितना कारगर साबित होगा?क्या विचारधाराओं का संगम होगा?



बिहार में महागठबंधन को जीत क्या मिली राष्ट्रव्यापी महागबंधन बनाने की चर्चाओं का दौर चल पड़ा. यहां तक कि राष्ट्रीय स्तर पर भी इसके बारे में सोच शरू हो गई.अगले आने वाले विधानसभा चुनावों में तो संंभव हैं एक बार फिर महागठबंधन सामने आये साथ हीं राष्ट्रीय स्तर पर भी महागठबंधन कर चुनाव लडऩे की तैयारी चल रही है इसके लिये  प्रधानमंत्री प्रत्याशी की चर्चा भी शुरू हो गई हैै. लेकिन क्या पूरा देश चुनाव के मामले में दिल्ल्ी या बिहार हो सकता है?और होगा तो भी क्या इस प्रकार के दल जिनकी विचारधाराएं अलग-अलग हैं? वे कितने दिन एक साथ रह सकेंगे? या यह गठबंधन सिर्फ भाजपा और नरेन्द्र मोदी को सत्ता विहीन करने के लिये बनाया जायेगा? कई ऐसे सवाल हैं जो आगे आने वाले समय में उठेंगे बहरहाल इस समय जो माहौल चल रहा है वह बिहार चुनाव में महागठबंधन जिसमें राजद, जदयू कांग्रेस शामिल हैं की भारी विजय को लेकर है.चुनाव से पूर्व उत्तर प्रदेश में महागठबंधन करने की तैयारी शुरू हुई थी, उसमें कांग्रेस को छोड़कर और बहुत से पार्टियों के नेता एकत्रित हुए . इस पहल के बाद ही बिहार में महागठबंधन अस्तित्व में आया जिसमें जदयू, राजद कांग्रेस के अलावा मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी भी शामिल थी जो बाद में अलग होकर अपने बलबूते पर ही बिहार में चुनाव लड़ी. अब महागठबंधन की भारी सफलता से उसमें शामिल दलों का उत्साह पूरे देश पर अपना  सिक्का जमाने का हो गया है. नीतीश कुमार को हीरो बनाकर प्रस्तुत किया जा रहा है जो अभी से कांगे्रस को रास नहीं आ रहा. दूसरी ओर कम्युनिस्ट पार्टी के सीताराम येचुरी ने भी कह दिया कि प्रधानमंत्री का प्रस्तुतीकरण अभी से नहीं किया जा सकता. गठबंधनों का बड़ा दौर सन् सत्तर अस्सी के दशक में जेपी आंदोलन के साथ शुरू हुआ था एनडीए का कई दलों के समावेश के साथ जन्म हुआ उसके पश्चात यूपीए का गठन हुआ. परिस्थितिया आज भी वैसी ही है.इधर पटना का ऐतिहासिक गांधी मैदान शुक्रवार 20 नवंबर को एक बार फिर राजनीतिक घटना का गवाह बना। मौका तो वैसे नीतीश कुमार के नेतृत्व में महागठबंधन की सरकार काशपथग्रहण समारोह था लेकिन यह समारोह साफ तौर पर दो हिस्सों में बंटा हुआ दिखाई दिया। मंच पर जहां संवैधानिक दायित्वों का निर्वाह कराया जा रहा था वहीं मंच के सामने वीआईपी गैलरी में गजब राजनीतिक नजारा दिखाई दे रहा था। राहुल गांधी,ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, सुखबीर बादल और शिवसेना के नेता गिले-शिकवे भुलाकर दिल खोलकर मिलते नजर आए। राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव, उनकी पत्नी व बिहार की पूर्व सीएम राबड़ी देवी, पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा, एनसीपी प्रमुख शरद पवार, नेशनल काफ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला, लोकसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खडग़े, हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह, कर्नाटक के सीएम सिद्धरमैया,असम के सीएम तरुण गोगोई, सिक्किम के सीएम पीके चामलिंग, मणिपुर के सीएम इबोबी सिंह, अरुणाचल प्रदेश के सीएम नबाम टुकी, राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद, सीपीआईएम नेता सीताराम येचुरी, सीपीआई नेता डी. राजा, डीएमके नेता स्टालिन, शिव सेना नेता रामदास कदम व सुभाष देसाई, रालोद नेता अजित सिंह, जदयू अध्यक्ष शरद यादव, पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार, बीबीएम नेता डॉ प्रकाश अम्बेदकर, सांसद राज बब्बर की उपस्थिति ने यह तो बता दिया कि आगे चलकर देश की कढ़ाई में बहुत बड़ी खिचड़ी पकने वाली है.हालाकि इस मिलन में सब ठीक चला लेकिन नीतीश कुमार को अगले आम चुनाव के लिए प्रधानमंत्री उम्मीद्वार प्रोजेक्ट करने की क्षेत्रीय दलों की गंभीरता से कांग्रेस के अंदर खलबली मच गई नीतीश की उम्मीद्वारी को कांग्रेस
हाईकमान फिलहाल पचाने के मूड में नहीं है पार्टी के शीर्ष नेतृत्व का कहना है कि जदयू समेत क्षेत्रीय दलों का रूख चाहे जो हो मगर पार्टी इसे भाव देने के मूड में नहीं है। वहीं बिहार चुनाव के बाद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी प्रधानमंत्री के खिलाफ और आक्रामक हो गए हैं. महागठबंधन अगर बनता भी है तो उसमें कांग्रस का समावेश होगा यह कहना इसलिये भी संभव नहीं है कि महागठबंधन अगर बना भी तो कांग्रेस गांधी खानदान के सिवा किसी दूसरे को प्रधानमंत्री के रूप में देखना नहीं चाहेगी इधर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी  के खिलाफ राहुल की ताबड़तोड़ बल्लेबाजी को लेकर कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व का कहना है कि 2019 में राहुल को प्रधानमंत्री पद के लिए उम्मीद्वार के तौर पर पेश कर सकती है.प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर पार्टियां उनके विदेश  दौरों, वायदा पूरा नहीं करने और मंहगाई-आर्थिक नीति को लेकर प्रहार कर रहे हैं वहीं सबसे बड़ा मुद्दा इस समय यह बन रहा है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 18 महीनो में 30 देशो का दौरा कर चुके है इससे देश को क्या मिला? आलोचक सवाल कर रहे हैं कि बार-बार विदेश दौरों की जरूरत क्यों? वे यह भी कहते हें कि प्रधानमंत्री को देश में रहकर घरेलू समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए। भाजपा व एनडीए की सारी उम्मीदें चुनाव में नरेन्द्र मोदी और अमितशाह पर रही हैं. दिल्लाी और बिहार चुनाव में यह मिथ्या टूट गया अब यूपी में भी अमित शाह की चमक फीकी पडऩे लगी है.बिहार चुनाव में करारी हार के बाद पुराने नेताओं की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए उत्तर प्रदेश में अभी से भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की राजनीतिक समझ और काबिलियत पर सवाल उठाएं जाने लगे हैं। पार्टी के भीतर पुरानी गुटबाजी नए जोर के साथ सिर उठा रही है जिसका असर और बढ़ सकता है. अगर ऐसा ही चलता रहा तो दो साल बाद उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव के टिकट बांटने के वक्त तक सिरफुटौवल का नजारा होगा.बीते लोकसभा चुनाव से ऐन पहले अमित शाह को उत्तर प्रदेश का पार्टी प्रभारी बनाया गया था. राज्य में आम चुनावों में मिली शानदार जीत को अमित शाह के नेतृत्व और सांगठनिक क्षमता का करिश्मा बताकर प्रचारित किया गया था. भाजपा में शत्रुधन सिन्हा ,आरपी सिंह जैसे बहुत से नेता हैं जो पार्टी के लिये सरदर्द बने हुए हैं अपने बयानों से पार्टी को मुसीबत में डालने वालों की भी कमी नहीं है यह सब महागठबंधन को लाभ पहुंचायेगा.लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी की भारी जीत के बाद से अब का हाल देखा जाये तो सब कुछ ठीक नहीं चल रहा-बिहार में बहुत पहले जदयू ने भाजपा का साथ छोड़ दिया था जबकि पंजाब में अकाली दल और महाराष्ट्र में शिवसेना और भाजपा के बीच भी कुछ ठीक नहीं चल रहा. भाजपा अकेले पड़ती जा रही है इस दौर में महागठबंधन आगे चलकर बनता है तो यह उसके लिये फायदेमंद साबित होगा लेकिन इस बीच अगर नरेन्द्र मोदी ने कोई करिश्मा कर दिया तो यह इस पहल में बे्रक लग सकता है.राष्ट्रीय महगठबंधन से पूर्व कुछ राज्यों में महागठबंधन बन सकते हैं जिसके बाद ही राष्ट्रीय स्तर पर महागठबंधन का भविष्य तय हो पायेगा!





   

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