सरकारी खजाने को चूना-विभागीय जांच का ढोंग कब तक? नौकरी से क्यों नहीं हटाये जाते!
एक आम आदमी जब खर्च करता है तो सोच समझकर करता है कि कहीं आगे उसको परेशानी तो न हो जाये लेकिन क्या हमारी निर्वाचित सरकारे ऐसा कर रही है? शायद नहींं! ऐसा इसलिये भी कि उसको यह पैसा खर्च करने में दर्द नहीं होता! चूंकि यह पैसा उस साधारण आदमी की जेब काटकर प्राप्त होता है जो दिनरात मेहनत करता है.भारत जैसे गरीब देश में आम आदमी पैदा होने के बाद से लेकर अपना जीवन समाप्त होते तक इतना टैक्स पटा चुका होता है कि उसकी आने वाली पीढ़ी बिना टैक्स पटाये रह सकती है लेकिन सरकार के अनाप शनाप खर्चों ने उसकी जिंदगी को जहां टैक्स और मंहगाई के बोझ से लाद दिया वहीं भ्रष्टाचरण के चलते उसे इतनी परेशानी में डाल दिया है कि उसकी कमर ही टेढ़ी हो गई है.वैसे बहुत से उदाहरण है इसके किन्तु ताजा उदाहरण हाल के उस वाक्ये का लें जिसमें सरकार के एक विभाग ने अपने विभाग की वेबसाइट तैयार करने के लिये जनता की जेब पर ऐसा डाका डाला कि सबके होश उड़ गये.वेबसाइट के लिये नब्बे लाख रूपये निकाले गये जबकि इस पर खर्च करीब दो लाख के आसपास आता है. जनता किससे पूछे कि यह किसने किया और ऐसा करने वालों को नौकरी से निकाला गया? जब चोर को कोई नौकरी नहीं देता तो सरकार और जनता का पैसा चुराने वालों को क्यों नौकारी पर रखा जाता है?क्या हमारे देश में पढ़े लिखे योग्य और ईमानदार लोगों की कमी है? प्राय: ऐसे मामलों की विभागीय जांच कमेटी बनाकर इतिश्री कर दी जाती है जिसका निष्क र्ष कभी आता ही नहीं! यह सरकारी विभागों का फैशन हो गया है, किसी में कोई खौफ नहीं जब तक भ्रष्टाचारियों की नौकरी
घपले घोटालों के तुरन्त बाद खत्म नहीं कर दी जाती तब तक यह सिलसिला यूं ही चलता रहेगा. आज स्थिति यह है कि सरकार की दो करोड़ की योजना लालफीताशाही और भ्रष्टाचार के मिश्रण से बीस करोड़ रूपये की बन जाती है.स्वाभाविक है कि भारी गोलमाल होता है. कुछ ऐसी योजनाएं भी हैं जो निर्धारित समय में पूरी नहीं होती साथ ही उसकी क्वालिटी इतनी खराब होती है कि वह जनता के उपयोग के लायक नहीं रह पाती.इन्हें तोडफ़ ोड़ कर फिर बनाया जाता है. इस पर फिर जनता का पैसा निकाला जाता है. यह एक सिलसिला सा चल पड़ा है. हममें से कोई भी ऐसा नहीं होगा जो विकास नहीं चाहता किन्तु विकास के नाम पर हमारी जेब भी तो मत काटो.आप सेवा ठीक से दे नहीं रहे हर सेवा पर चौदह प्रतिशत टैक्स वसूल कर रहे हैं. मनोरंजन कर,एक्साइज डयूटी,स्वच्छता कर और न जाने ऐसे कितने करों से हमें लाद दिया गया है-ऊपर से रेल किराया, बिजली किराया, टेलीफोन किराया सब पर बजट के बाद भी पिछले डोर से एंट्री की जा रही. दूसरी ओर सरकार के खुद कुछ लोग घोटाला कर आम आदमी का पैसा अपने घरो में ठूस रहे हैं उस पर बोलने वाला कोई नहीं? अब फिर माननीयों के वेतनमान में बढ़ौत्तरी की चर्चा चल रही है इसके लिये भी किसी न किसी मद पर टैक्स लगाकर हमारे जेब से ही पैसा कटेगा. आखिर कब तक सामान्य वर्ग इस आजाद देश में इस प्रकार की सरकारी मनमानी और अव्यवस्था को बर्दाश्त करता रहेगा?
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