अराजकता की श्रेणी तो आ ही चुकी, सम्हाल सको तो सम्हालों!
रायपुर दिनांक 2 फरवरी 2011 अराजकता की श्रेणी तो आ ही चुकी, सम्हाल सको तो सम्हालों! लोकतंत्र, अराजकता, बाद में तानाशाही- हमने राजनीति में यही पड़ा था। लोकतंत्र जब असफल होता है तो अराजकता आती है और उसके बाद तानाशाही। क्या देश में ऐसी स्थिति का निर्माण हो रहा है? अगर भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त के हालिया बयान का विश£ेषण करें तो कुछ ऐसा ही प्रतीत होता है। उन्होंने देश में चुनाव सुधारों की तत्काल आवश्यकता महसूस की है। मुख्य चुनाव आयुक्त के अनुसार चुनाव सुधार की प्रक्रिया पिछले बीस सालो से लंबित है। सवाल यह उठता है कि लोकतंत्र की दुहाई देकर सत्ता में काबिज होने वाले राजनीतिक दलों ने इस महत्वपूर्ण मुद्दे को इतने वर्षो तक क्यों अनदेखा किया? देश में चहुं ओर जिस प्रकार का वातावरण निर्मित हुआ है चाहे वह भ्रष्टाचार हो, मंहगाई या अपराध-क्या उसे अराजकता की संज्ञा नहीं दी जा सकती। सबसे बड़ी बात तो यह कि निर्वाचित सरकार लोकताङ्क्षत्रक व्यवस्था में इस स्थिति को निपटाने में पूर्ण असफल साबित हुई है ओर पटरी से उतर चुकी व्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने में एक तरह से विफल साबित हुई है। लोकतांत्रिक व्यवस्था क...