साहब मस्त,चपरासी सुस्त जेल की हवा गरीब को, नियम में यह भेदभाव क्यों?
नियम-कानून सभी के लिए समान क्यों नहीं है? बड़ा-छोटा, बाहुबली, नेता सबके लिये अलग कानून, अलग नियम! क्यों ऐसा होता है कि एक चपरासी अपने साहब के लिए घूस लेता है तो साहब तो बच जाते हैं किन्तु गरीब चपरासी को जेल में ठूंस दिया जाता है? न्याय की आंखों से पट्टी कब हटेगी? छत्तीसगढ़ में रिश्वत के मामले में ट्रेप होने के बाद भारतीय प्रशासनिक सेवा 2012 बैच के अधिकारी को पद से हटाकर मंत्रालय में अटैच कर दिया, कुछ दिन बाद उसे सम्मानजनक कुर्सी भी प्रदान कर दी जायेगी, जबकि जो चपरासी कथित रुप से उनके कहने पर घूस लेता था उसे तत्काल जेल में ठूंस दिया. साहब का तो कुछ नहीं जाता, अब इस चपरासी पर आश्रित परिवार के सामने ढेरों मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ेगा. कुछ कमाई उसने जमा की है तो सही वरना उसका परिवार उसकी जमानत के लिए वकील तक नहीं जुटा पायेगा. पाक-साफ ईमानदार छवि और न्याय की बात करने वाले बहुत से माननीय लोग हमारे समाज में मौजूद हैं-क्या उन्हें हमारी व्यवस्था के इस प्रकार के गुण-दोष नजर नहीं आते? यह पहला उदाहरण नहीं है- देशभर में "अपराध" के मामले में यही व्यवस्था चली आ रही है. एक गरीब या मध्यम वर्ग का व्यक्ति कोई भी अपराध करता है तो उसे पुलिस स्टेशन में प्रताडि़त करने से लेकर जेल पहुंचाने तक कोई कसर नहीं छोड़ी जाती, जबकि आप देखते ही हैं अगर कोई पहुंच वाला प्रभावी या बड़ा अधिकारी जुर्म करता है तो उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने से लेकर उसकी गिरफ्तारी तक पूरा वक्त दिया जाता है ताकि वह कैसे भी बच निकले, यहां तक कि सत्तारुढ़ और विपक्षी दल भी अपने ऐसे चहेते लोगों के समर्थन में उतर जाते हैं अगर देश को छोड़ छत्तीसगढ़ की बात करें तो पिछले वर्षों में ऐेसे कई बड़े-बड़े घोटाले सामने आये जिसमें बड़ी-बड़ी मछलियां शामिल रहीं, सभी को दरकिनार कर छोटी मछलियों को जाल में फांस दिया गया- क्यों ऐसा किया जाता है? क्या आम लोग यह चाल नहीं समझते? रोजमर्रे की बात करें तो हमारे सामने कुछ घटनाएं तो ऐसी है जिसे देख या सुनकर ही लोग समझ जाते हंै कि इसमें कौन दोषी है? फिर उसे संरक्षण देने, बचाने वाले दौड़ पड़ते हैं जैसे उसपर कार्रवाही हो गई तो दुनिया पलट जायेगी या दुनिया का अस्तित्व ही मिट जायेगा! चाहे यह देश की अस्मिता का सवाल हो या किसी महिला की इज्जत को सरेआम तार-तार करने की घटना हो, ऐसे क्रूर और दुष्ट अपराधियों को बचाकर निकालने तक लोग दौड़ पड़ते हैं. व्यवस्था जिस ढंग से तुला में डोल रही है उस पर तत्काल कोई कठोर कदम उठाने की जरुरत है वरना एक दिन ऐसा आयेगा जब दुष्ट, भ्रष्टाचारी, बेईमान, ठहाके मारकर हंसेगा और आम इंसान रोता रहेगा. मध्यप्रदेश के पूर्व राज्यपाल के.एम. चांडी ने एक भ्रष्ट अधिकारी के मर्सी पिटीशन को यह कहते हुए रिजेक्ट कर दिया था कि ''जब नियम बनाने वाले ही अपराध में लिप्त हो जायेंगे तो नियम का संरक्षण कौन करेगा?"
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