पैसे के खेल ने सामाजिक व्यवस्था की चूले हिलाना शुरू कर दिया!
ृजिनके पास पैसा है उन्हें जेल नहीं हो सकती-आज के हालात में आम लोग कुछ ऐसा ही महसूस करते हैं- लेकिन यह हम नहीं उपहार अग्रिकांड में अन्य उनसठ लोगों के साथ अपने दो बेटों को गवा चुकी मां की आवाज है जो अठारह साल बाद इस अग्रिकांड पर अंसल बंधुओं को दिये फैसले के बाद सामने आई है. अंसल बंधुओं को सुप्रीम कोर्ट ने पांच माह कैद की सजा के बाद तीस-तीस करोड़ रुपये जुर्माना चुकाने का आदेश देकर यह कहते हुए छोड़ दिया कि पांच माह की सजा पर्याप्त है. बहरहाल एक तरफ इस फै सले के बाद उक्त मां की आवाज गूंजी है, दूसरी तरफ देश में पैसे का खेल किस तरह समाज और व्यवस्था पर हावी है यह हर कोई जानता है. पिछले दिनों आस्था के न्द्रों में बरसने वाले पैसे पर टिप्पणी कर बता चुके हैं कि देश की संपत्ति किस तरह कुछ लोगों के हाथ में केन्द्रित होकर रह गई है. दूसरी ओर आजादी के बाद पैदा हुए चंद लोगों ने अपनी संपत्ति का किस ढंग से विस्तार किया है यह मध्यप्रदेश में व्यापमं घोटाला, छत्तीसगढ़ में नान घोटाला जैसे मामलों से साफ है. मध्यप्रदेश में एग्रीकल्चर डिपार्टमेंट से रिटायर्ड डायरेक्टर डीएन शर्मा के निवास पर एसीबी छापा भी कम चौंकाने वाला नहीं है, इस व्यक्ति ने तीस साल नौकरी की जिसकी एवज में उसके पास तीस लाख रुपये होने चाहिये था लेकिन उसके पास जो संपत्ति का आंकलन हुआ वह करोड़ों रुपये का है, इसमें तीन बंगला, तीन लग्जरी गाडिय़ां ऐसा कुल मिलाकर पांच करोड़़ रुपये से ज्यादा की संपत्ति है. जनता के माल को अपनी पैतृक संपत्ति समझकर पान की तरह चबाने वाला यह पहला अफसर नहीं है ऐसे सैकड़ों अब तक प्रकाश में आ चुके हैं लेकिन सरकार की तरफ से क्या एहतियाती कदम अपने इन भ्रष्ट कर्मचारियों और अन्य भ्रष्ट तंत्र के प्रति उठाया जा रहा है यह कहीं स्पष्ट नहीं हो पा रहा. एक तरह से जानबूझकर छूट दी जा रही है, दूसरी तरफ आम लोगों पर जबर्दस्त टैक्स लगाकर उन्हें नंगा किया जा रहा है वहीं सरकार के अपने कर्मचारियों और कतिपय ऐसे लोगों जिन्होंने आम जनता का पैसा लूटा है वे भी सफेदपोश की तरह से समाज में मौजूद हैं जिनपर किसी प्रकार का फंदा नहीं कसा जा रहा. अपराधियों को भी खुली छूट है. राजधानी रायपुर में कई ऐसे मामले सामने आये हैं जिनमें आरोपी कई लोगों को ठगकर करोड़पति बन बैठे. दुर्ग में तो हद ही कर दी जहां पांच सौ लोगों से पच्चीस करोड़ रुपये की ठगी हुई है. आम आदमी जो पसीना बहाकर पैसा कमाता है उससे उसका पेट नहीं भरता लेकिन वे जो गलत तरीके से पैसा कमाते हैं उनका लगभग हर जगह बोलबाला है. क्यों है यह विभिन्नता?
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