बेमकसद हो रही लड़ाई को क्यों देश में पनपने दिया जा रहा? मदद कहां से मिल रहा?



इनामी नक्सलियों के आत्मसमर्पण के लाख सरकारी दावों के बावजूद कारखानों में आग लग रही है तो यात्री बसों को भी आग के  हवाले किया जा रहा है. लोगों के सर कलम करने में भी कोई रहम नहीं किया जा रहा है लेकिन एक बड़ी घटना होने के बाद कड़ी कार्रवाही करने, नक्सलवाद का नामोनिशान मिटाने का दावा करने वाली सरकार उस समय खामोश रहती है जब नक्सलवादी राष्ट्रीय संपत्ति को नुकसान पहुंचाने वाली बड़ी-बड़ी घटनाओं को अंजाम देते हैं. पिछली बार नक्सलवादियों ने चार जवानों का अपहरण कर उनकों मौत के घाट उतार दिया था- श्रद्वांजलि अर्पित करने के अलावा सरकारी तौर पर कुछ नहीं किया जाना यही दर्शाता है कि कतिपय मामलों में नक्सलवाद को पनपने देने में  सरकार का भी कहीं न कहीं अप्रत्यक्ष हाथ है. सोमवार को नक्सलियों ने लोहा कारखाने को आग के हवाले कर दिया वहां खड़ी कई कीमती गाडिय़ों को भी आग से जलाकर राख कर दिया . सवाल यह उठता है कि आखिर कब तक यह सब बर्दाश्त किया जायेगा? जब यह संगठन सरकार द्वारा प्रतिबंधित है तब इसको क्यों इस ढंग से पनपने दिया जा रहा? हिंसा और खून खराबेे का हमारे संविधान में कोई जगह नहीं है फिर देश के ग्यारह से ज्यादा राज्यों में कैसे तेजी से यह आंदोलन बढ़ता जा रहा है? यह सब तभी हो सकता है जब किसी न किसी बड़े का संरक्षण हो. सरकार पहले यह पता लगाये कि जंगलों में छिपे नक्सलियों तक गोला बारूद और राशन पानी तथा कपड़े आदि सारे सामान कौन पहुंचा रहा है अगर यह हमारे देश के भीतर से ही है तो यह इतना गंभीर नहीं हो सकता लेकिन अगर किसी बाहरी देश से मदद प्राप्त कर नक्सली उछल रहे हैं तो यह अत्यंन्त गंभीर मामला है जिससे और कड़ाई से निपटा जाना चाहिये. हम बीहड़ में छिपे मोस्ट वान्टेड वीरप्पन को खत्म कर सकते हैं म्यामार में भारत पर हमला करने वाले आतंकवादियों का नाश कर सकते हैं  लेकिन वर्षों से सिर दर्द बने नक्सलियों से मुकाबला करने और इस समस्या का सदा-सदा के लिये खात्मा करने में क्या तकलीफ है? सरकार कुछ न कुछ तो करें आखिर जनता का पैसा कब तक सिर्फ नक्सलियों के पीछे  भागने पर खर्च होता रहेगा? अगर बात से समस्या का हल नहीं होता तो बुलेट से हल करो.यह भी तो समझ में नहीं आता कि आखिर नक्सली क्या चाहते हैं? यह आम आदमी पूछता है कि इन्हें सरकारी,सार्वजनिक या निजी संपत्ति नष्ट करने में क्या मजा आता है? वे क्यों निर्दोष लोगों का सिर कलम करते हैं. आतकंवादियों और इनमें क्या फर्क है? दोनों ही तो एक जैसा व्यवहार कर रहे हैं फिर इनसे भी आतंकवादियों की तरह निपटने में क्यों देरी की जा रही?

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