पाक है कि मानता नहीं, हम कब तक झेलते रहेंगे उसके जुल्मों को?




यह बात किसी की समझ में नहीं आ रही कि पाक आखिर चाहता क्या है? उधर पाक प्रधानमंत्री हमारे प्रधानमंत्री से बात करते हैं या विदेश यात्रा पर निकलते हैं तो इधर सीमा पर  गोलियां चलने लगती है. ऐसा लगता है कि पाक शांत बैठना जानता ही नहीं- या तो पाक हुक्मरानों का उसके फौज पर कोई नियंत्रण नहीं है या वह हमें ललकारना चाहता है, या छेड़कर युद्ध जैसे हालात पैदा करना चाहता है. एक बात यह भी स्पष्ट हो रही है कि पाक में उग्रवादी संगठनों ने सत्ता को अपने हाथ में ले रखा है, वह वहां की सत्ता को हमसे दोस्ती करने की इजाजत नहीं देता- पाक में आतंकवादियों के जमघट का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि सीमा पर फायरिंग के दौरान ही आतंकवादियों ने लाहौर में गृहमंत्री के घर हमला बोलकर उनकी हत्या कर दी जबकि इस हमले में करीब बारह लोगों की मौत हो गई. इधर पुंछ जिले मेेंं नियंत्रण रेखा पर आठ दिनों से ज्यादा समय सेे जारी गोलीबारी तो यही दर्शा रही है कि पाक के हुक्मरान बातचीत का झांसा देकर सीमा पर युद्ध के हालात पैदा करने में लगे हैं. सीमा पर गोलीबारी में इस बार पाक सेना ने सिविलियन को अपना निशाना बनाया है. एक महिला और एक बच्चा सहित छह लोगों की गोलीबारी में मौत से यह साबित हो गया है कि पाक दहशत का वातावरण पैदा करने में लगा है. अब यह बात भी समझ में नहीं आती कि आखिर ऐसा क्यों होता है कि पाक प्रधानमंत्री जब भी भारत से दोस्ती का हाथ बढ़ाते हैं तो सीमा पर गोली चलने लगती है, कभी नमस्ते करने पर तो कभी स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं देने पर तो कभी द्विपक्षीय वार्ता शुरू करने पर- यह सब क्या पाक का कोड वर्ड है कि हम ऐसा करें तो तुम ऐसा करो- वाह रे पड़ोसी, अच्छा धर्म निभा रहे हो तुम. अब सोचने का वक्त नहीं है, पाक को उसकी हर हरकत पर मुंहतोड़ जवाब देने की जरूरत है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी तरफ से पूरा प्रयास अब तक कर लिया है, अब पाक को और मौका देने की जरूरत नहीं. पुंछ, बालकोट, हमीरपुर, शौजिया, मंडी को कब तक यूं ही संवेदनशील क्षेत्र बनाये रखेंगे? नियंत्रण रेखा पर मौजूद इन गांवों के लोग पिछले छह दिनों से जारी फायरिंग से दहशत में हैं. कभी किसी को गोली लग जाती है तो किसी की मौत हो जाती है. पन्द्रह दिनों में अड़तीस बार पाक की तरफ से फायरिंग हो चुकी है. रक्षा मंत्री ने कहा है कि हम दबने वाले नहीं- ठीक है हम दबने वाले नहीं, लेकिन कब तक हम इस पड़ोसी को अपनी मर्जी पर चलने का मौका देते रहेंगे?

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