पुलिस यूं कब तक अपराध को 'तराजू पर तौलकर देखती रहेगी?


पुलिस यूं कब तक अपराध
को 'तराजू पर
तौलकर देखती रहेगी?
पुलिस अपने लोगों की रक्षा नहीं कर सकती तो आम लोगों की क्या करेगी? सरेआम किसी पुलिस वाले को पीट दे और हमारी बहादुर पुलिस (?) फरियादी से एप्लिकेशन मांगे कि -''भैया तुम लिखकर दे दो तब हम उसपर कार्रवाई कर सकेंगे!, ऐसे में यही कहा जा सकेगा कि अपराधियों को खुली छूट है! इधर एक नन बलात्कार से पीड़ित है, उसे जितनी यातना बलात्कारियों ने दी उससे कई गुना ज्यादा यातना अब पुलिस और मीडिया दे रही है. हम यहां पंडरी नन  दुष्कर्म कांड और भिलाई की घटना जिसमें ओवरटेक करने वाले युवकों और पुलिस की भिड़त के बाद मारपीट होने की घटना पर पुलिस के रवैये पर सवाल उठा रहे हैं कि क्या पुलिस की व्यवस्था अपराध को तौलकर देखती है कि अपराध का स्तर कितना ऊंचा है? क्या उसी स्तर के आधार पर कार्रवाई होती है? नन बलात्कार की घटना के बहत्तर घंटे बाद भी पुलिस इस बात का सुराग तक हासिल नहीं कर सकी कि आखिर यह घटना कैसे, क्यों घटी और इसमें कौन लोग शामिल रहे होंगे? क्या यह स्थिति किसी मंत्री या वरिष्ठ अधिकारियों के साथ परिवार वालों पर घटित होती तो भी ऐसा ही होता? पुलिस के अपराध अन्वेषण का स्तर कितना गिर गया है इसका अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि अपराधियों को शिकंजे में लेेने उसके पास कोई भी आधुनिक तकनीक मौजूद नहीं है. प्रशिक्षित कुत्ते भी कुछ नहीं कर पा रहे. नन मामले में अपराधियों की गिरेबान पर हाथ डालने की जगह उसका पूरा ध्यान उस पीड़िता के बयान पर लगा हुआ है. जितनी पीड़ा उसे इस घटना के समय नहीं हुई होगी उससे कुछ ज्यादा उसे अब पुलिस और मीडिया के सवालों से हो रहा होगा. इस घटना के बाद से पुलिस की जांच का जो दायरा है वह सीमित होकर रह गया है- सिर्फ और सिर्फ पीड़िता के बयान तक ही! अपराधी छुट्टा घूम रहे हैं, मौज कर रहे हैं. प्रशासन बयानबाजी कर चुप हो गया तथा पुलिस पीड़िता के बयान में उलझकर रह गई. उसे कम से कम यह तो पता करना ही चाहिये था कि इस अस्पताल की आंतरिक व्यवस्था में भी कहीं कोई खोट तो नहीं है? विलेन कहीं अंदर तो नहीं छिपा है? बहरहाल पुलिस का अन्वेषण आगे क्या रंग लाता है, यह अभी देखना बाकी है. अगर रायपुर पुलिस इसे हल नहीं कर पा रही तो मामला सीबीआई के सुपुर्द करने पर भी विचार करना चाहिये. इधर भिलाई में दो बड़े पुलिस अधिकारियों की पिटाई के बाद जो स्थिति बनी है वह अपने आप में यह ही दिखा रही है कि अपराध आज हर जगह हावी है, अपराधी पुलिस से कोई खौफ नहीं करती. पुलिस के अपने लोग ही पिट जाते हैं और महकमा खामोश हाथ पर हाथ धरे रहता है. ऐसा पहली बार नहीं अनेक बार हुआ है, शायद यही कारण है कि अपराधियों को पुलिस से न कोई खौफ है और न कानून की वे परवाह करते हैं.

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