अमीर-गरीब की खाई कौन पैदा कर रहा? कूड़े में खाना डालना और कूड़े से खाने की प्रवृति कब खत्म होगी?




एक नेता छगन भुजबल की संपत्ति 2563 करोड़ और ऐसे छुपे रूस्तम नेताओं की कितनी? एक अधिकारी आलोक अग्रवाल की संपत्ति सौ करोड़! अन्य अधिकारी कितना दबाये बैठे हैं? धनपतियों का एक अलग ही साम्राज्य बन गया है हमारे देश में! ऐसे लोगों की तिजोरियों को टटोला जाये तो स्वर्गिक आनंद में जीवन जीने वाले कई मानवप्राणी मिल जायेंगे जिन्होंने राष्ट्र और इस राष्ट्र की गरीब जनता की जेब में डकैती डालकर अपने व अपने परिवार के जीवन को न केवल सुखद बनाया बल्कि वैभव को भी खरीद लिया है. महाराष्ट्र के एक मंत्री के पास से जब 2563 करोड़ रुपये की संपत्ति का पता लग सकता है तो जांच करने वाली एजेंसियां तो समझ गई होंगी कि देश में छिपे धन का रहस्य क्या है? हिमाचल में वर्षों पूर्व ऐसे ही एक मंत्री के घर पर छापा पड़ा तो उनकी दीवारों से भी नोटों की गड्डियां निकली थी. अधिकारी और नेता दोनों मिलकर किस प्रकार देश को चूना लगा रहे हैं यह भी कई बार साबित हो चुका है. अकेले छत्तीसगढ़ में एक आलोक अग्रवाल नहीं बल्कि डीके दीवान, बीडी वैष्णव, अशोक कुमार नगपुरे, राजेश कुमार गुप्ता जैसे कई लोग हैं जिन्होंने देश की आजादी के बाद के वर्षों में पैदा होकर चंद समय की सरकारी नौकरी में राष्ट्रीय संपत्ति का बहुत सा हिस्सा दबा दिया. एक तरफ देश का माटी पुत्र है, जमीन से जुड़ा मेहनतकश वर्कर है, सरकार की बाबूगिरी और साहबों को पानी पिलाकर जिंदगी गुजार देने वाला चपरासी है तो दूसरी तरफ ऐसे लोग हैं जिनके पास जादू की छड़ी है जिससे वे अपने व अपने खानदान को वर्षों तक बिना कुछ किये जीने का साधन मुहैया करा रहे हैं. क्या यह व्यवस्था देश के उन ईमानदार लोगों को सोचने के लिये विवश नहीं कर रही कि उन्होंने क्या जुर्म किया जो इन भ्रष्टाचारियों की तरह विलासिता की जिंदगी नहीं जी पा रहे? हमारा संविधान कहता है कि यहां रहने वाला हर व्यक्ति समान है किन्तु क्या ऐसा है? किसी के पास इतना धन है कि उसे रखने की जगह नहीं है तो किसी के पास सिर छिपाने की भी जगह नहीं है. देश में ऐसे लोग भी हैं जिनके पास इतना खाना है कि वह उसका एक छोटा हिस्सा खाकर शेष कूड़ेदान में फेंक देते हैं और एक वर्ग ऐसा भी है जो इन लोगों के फेंके हुए खाने को कूड़े में से निकालकर खाता है? समाजवाद  का ढकोसला अब खत्म होना चाहिये. समाज दो भागों में बंट चुका है-एक तरफ गरीब है तो दूसरी तरफ अकूत संपत्ति के मालिक. दोनों के बीच सेतु बनाने की सारी कोशिशें विफल हो चुकी है. वोट की राजनीति में भ्रष्टाचार, जमाखोरी, कालाबाजारी में कमाया हुआ धन अब लोगों पर हावी हो चुका है. ऐसे लोगों को जब तक ईमानदार सरकार बिल से बाहर निकालकर अदालतों में पेश नहीं करेगी तब तक उस कूड़ेदान से निकला खाना खाने वालों और बिना छत के रहने वालों का उद्धार नहीं हो पायेगा. सरकार की कोशिशें जारी है किन्तु सरकार को यह भी सोचना चाहिये कि क्या छगन भुजबल या चंद अधिकारी ही इस तरह की काली कमाई लेकर ऐशोआराम की जिंदगी जी रहे हैं? ऐसे ढेरों लोग हैं जिनके पास देश की अकूत निधि जमा है, अगर यह सब पैसा बाहर आ जाये तो हमें न किसी बाहरी देश से अनाज मंगाना पड़ेगा और न ही हमें अपने विकास के लिये किसी पर निर्भर रहना होगा. आज सरकार की कार्रवाई सिर्फ उसी पर है जिसका पता लग गया या जिससे बदला लेना है असल में ऐसे लोगों पर तो कार्रवाई हो ही नहीं रही जो अरबों रुपये दबाकर बैठे हुए हैं इनमें कई आस्था के केन्द्र भी हैं जिनके पास अकूत संपत्ति है अगर यह सब बाहर निकल जाये तो देश का जीवन स्तर विश्व में एक नंबर पर हो जाये!

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