समान अधिकार के वादे धरे रह गये, व्यक्तिगत धनकुबेरों के चलतेे आम वर्ग को उठने का मौका नहीं मिल रहा!
समान अधिकार के वादे धरे रह गये,
व्यक्तिगत धनकुबेरों के चलतेे आम
वर्ग को उठने का मौका नहीं मिल रहा!
एक तरफ देश में हद पार अमीरी है तो दूसरी तरफ हद से Óयादा गरीबी!- क्या यह सोचने का विषय नहीं कि हद पार गरीब की किस्मत क्या उसके जीवनभर साथ रहेगी या उसमें कोई बदलाव आयेगा? ताजा उदाहरण उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के रेहुआ लालगंज में धर्मराज सरोज का है जो अपने दो बेटों के एक साथ आईआईटी की प्रवेश परीक्षा पास करने के बाद भी परेशान हंै क्योंकि अब उनको आगे इन ब"ाों को पढ़ाने के लिये, यहां तक कि फीस जमा करने के लिये तक पैसे नहीं है. आगे आईआईटी में दाखिले के लिए एक लाख रुपये की जरूरत है, लेकिन उनके लिए यह दूर की कौड़ी है क्योंकि वह मात्र उतना ही कमा पाते हैं जिससे परिवार का पेट भर सके. धर्मराज गुजरात में सूरत के एक मिल में काम करता है. दो शिफ्टों में काम करके भी 12 हजार रुपये महीना कमाते हैं. उनके परिवार में सात लोग हैं. यह अकेले धर्मराज की कहानी नहीं है, देश में ऐसे करोड़ों लोग हैं जो न केवल अपना पेट भरने के साथ ब"ाों के अ'छे भविष्य के लिये यूं ही परेशान हैं. न केवल ब"ाों की पढ़ाई, उनके स्वास्थ्य, रहने के लिये छत और ऐसी ही ढेर सारी समस्याओं से ग्रसित है- दूसरी ओर एक ऐसा भी समुदाय है जिन्हें अपने व परिवार के लिये ऐशोआराम के ढेर सारे साधन उपलब्ध हैं, वे बैठे-बैठे दुनिया की हर चाही गई वस्तु को अपने हाथ में कर सकते हैं, जहां जाना है वहां करोड़ों रुपए की महंगी कार लेकर घूम सकते हैं और भी सब कुछ। भारत को स्वतंत्रता दिलाने और देश की आजादी के लिये लड़ने, मर मिटने के लिये इसी पीड़ी के लोगों के पुरखे किसी न किसी रूप में शामिल रहे हैं, चाहे वह जुलूस में साथ देने या नारे लगाने या पोस्टर बनाने अथवा डंडे खाने का ही काम क्यों न हो लेकि न आजादी के बाद जो कुछ वादे सरकारों ने किये वह सब दरकिनार रख दिये गये, यहां तक कि संविधान में लिखे समान अधिकार के वादे को भी नहीं निभाया बल्कि कुछ लोग सिर्फ अड़सठ साल की आजादी में इतने अमीर हो गये कि देश को अंगे्रजों की तरह चलाने की ताकत रखने लगे? इतनी अकूत संपत्ति के मालिक कुछ मुट्टीभर लोग कैसे बन गये यह अपने आप में सोचने का विषय है, बहरहाल देश में एक धर्मराज और उनका परिवार नहीं है बल्कि पूरा देश का अधिकांश भाग इसी तरह के हालात से गुजर रहा है. इस वर्ग को पूरी तरह सरकारें अनदेखा करती रही है. धर्मराज मिल में काम करता है, बारह हजार रुपये वेतन है, ऐसे ही कई चपरासी, बाबू और अन्य अधिकारी भी हंै जिनकी जिंदगी इतनी कम तनख्वाह से नहीं चलती इसके लिये जरूरी है कि वह कहीं न कहीं से अतिरिक्त कमाई करें लेकिन यह अतिरिक्त कमाई भी हर आदमी के वश का काम नहीं, जो चतुर है वह आगे बढ़ रहा है, देश को लूट रहा है, परिवार और पुरखों को खुशहाल बना रहा है जिन्हें इसकी खुली छूट है? अब हालात यह है कि देश की सामाजिक व्यवस्था को खुशहाल बनाने के लिये भारी फेरबदल किया जाये. जो भी जहां भी संपति काले या सफेद धन के रूप में जहां भी जमा कर रखा हो उसे सरकार सामने करवाये और उसमें जो सही संपत्ति है वह संबन्धित के हवाले करें तथा बाकी का उपयोग देश के विकास और ऐसे कार्यों में लगायें जिससे धर्मराज जैसे लोगों के ब"ो आगे पड़ सके व उन्हें भी देश मे सम्मानपूर्वक रहने का मौका मिले. इस कार्य को करने में आस्था के नाम पर समाज को लूटने वालों को भी नहीं छोड़ना चाहिये, उनके पास तो करोड़ों की कार खरीदने की क्षमता रखने वालों से भी Óयादा की संपत्ति का अनुमान है. जब इंदिरा गांधी एक झटके में राजा महाराजाओं के प्रीविपर्स खत्म कर सकती है तो वर्तमान प्रधानमंत्री नरेन्द मोदी तो इतनी ताकत रखते हैं कि वे ऐसे कई जनहितकारी निर्णय ले सकते हैं.
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