तो फिर ईव्ही एम को बंद कर बैलेट फिर से लाना चाहिये!

 तो फिर ईव्ही एम को बंद कर बैलेट फिर से लाना चाहिये!

15 मार्च 2017   |  एंटोनी जोसफ


उत्तर प्रदेश के चुनावी माहौल में सभी पार्टी और नेताओं ने एक-दूसरे को नीचा दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी.सभी ने एक-दूसरे पर पर्याप्त तंज कसे और अपने आप को सर्वश्रेष्ठ दिखाने की पुरजोर कोशिश की.चुनाव परिणाम आये तो इतना अप्रत्याशित की कई के होश उड गये तो कई फूले नहीं समाये. आखिर यूपी में ऐसा क्या था कि पूरे देश की नजर इस चुनाव पर लगी थी.असल में लोग यहां के परिणाम को नोटबंदी का असर और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का भविष्य देखने लगे थे, शायद यही कारण था कि प्रधानमंत्री स्वंय इस चुनाव में ऐसे उतरे जैसे खुद चुनाव लड़ रहे हो. मोदी की जनसभाओं में भारी भीड़ की मौजूदगी तो यही संदेश दे रही थी कि उत्तरप्रदेश की जनता परिवर्तन चाहती है लेकिन ऐसा कहीं दिखा नहीं कि सारे रिकार्ड तोड़ दे. समाजवादी पार्टी परिवार में दो फाड़ हुई तो पार्टी भी फट गई. मुलायम- शिवापाल की जोड़ी बनी तो अमरसिंह किनारे हुए और राग भी बदल गये. अखिलेश पार्टी के सर्र्वेे सर्वा बन गयें और उनका कांग्र्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से तालमेल बैठा. दानों नेद मिलकर प्रचार भी किया. बड़ी- बड़ी रैलियों में भीड़ इतनी ज्यादा थी कि कोई कह नहीं सकता था कि पाार्टी गठबंधन के बावजूद इस बुरी तरह से हारेगी.असल में देखा जाये तो पूरे यूपी में अखिलेश-कांग्रेस,बहुजन समाज पार्टी या भाजपा तीनों में से कोई एक के सत्ता में आने की स्थिति थी लेकिन जो हुआ वह सबके सामने हैं. हम वर्षो से यह देखते आये हैं कि प्राय: चुनावों में पांच वर्षो तक चलने वाली सरकारों के काम या उसके परफोर्मेंस को देखकर जनता वोट देती है हालाकि जनता या मतदताओं में भूलने की आदत भी कूट कूटकर भरी है. राजनीति क पार्टियां भी यह भली भांति जानती है उसी आधार पर वह अपने नकारात्मक रवैये को किनारें कर अपने अच्छे कार्यो को सामने लाकर रिझाने की कोशिश करती है. यह काम अखिलेश सरकार ने भली भांति किया अपने शासनकाल के दौरान अखिलेश शुरूआती दौर में लेपटाप बांटकर या सड़को का विकास कर चुपचाप बैठ गये इस दौरान कई बार मुलायम ने उन्हें चेताया भी किन्तु अपने प्रदेश में महिलाओं पर अत्याचार, बढ़ती हुई सांप्रदायिकता अैर दलितों व अन्य वर्ग के लोगों पर अत्याचार के मामलों में उनका रवैया सदैव उदासीन रहा जबकि विपक्षी पार्टियोंं ने विशेषकर भाजपा इस मामले में पूर्ण गंभीर रही तो उसका फायदा चुनाव में उठाया भी! जनता का एक बहुत बड़़ा वर्ग अब शिक्षित और समझदार हो चुकी है. महज बयानबाजी और टीका-टिप्पणी से वह भ्रमित होने वाली नहीं है.जनता भी जानती है किसका काम बोलता है तभी नतीजा अप्रत्याशित रहा. प्रधानमंत्री के नोटबंदी का निर्णय जिसदिन हुआ उसकी घोषणा के दिन तोदजनता ने इसे खूब सराहा लेकिन इसका इम्पलीमेंटेंशन जिस ढंग से होना चाहिये था वह नहीं हुआ जनता ने कुछ दिन कठिनाइयां झेली लेकिन इसका यह मतलब भी नहीं है कि जो कदम उठाया वह कारगर साबित नहीं हुआ, आगे आये परिणाम ने भ्रष्टाचारियों की पोल खोल दी अरबों का छिपा धन बाहर आ गया. जनता यही चाहती थी. पाकिस्तान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक भी अच्छा कदम था जनता की इच्छा को सरकार ने पूरा किया. मोदी की लोकप्रियता उत्तर प्रदेश में भाजपा की रिकार्ड तोड़ जीत का सबसे बड़ा फैक्टर तो रहा लेकिन विपक्ष का आश्चर्य करना और धांधली का आरोप लगाना भी स्वाभाविक है. मायावती ने गंभीर आरोप लगाया कि ईवीएम मशीन में गड़बड़ी कर भाजपा ने विजय हासिल की. इस संबन्ध में चुनाव के बाद एक वीडियों भी सोशल मीडिया में जारी हुआ जिसमें बताया गया है कि कैसे एक बार बटन दबाने से वोट पांच या दस में बदल जाता है. हालाकि इन बातो का अब कोई मतलब नहीं है- पांच राज्यों के चुनावी नतीजे भाजपा की लोकप्रियता बता रही हैं और सभी दलों को इसे सहृदयता से स्वीकार करना चाहिए मगर यदि ईवीएम में किसी तरह की गड़बड़ी की गई है तो यह लोकतंत्र की निर्मम हत्या है. वैसे ईवीएम पर 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी सवाल उठे थे. ईवीएम में गड़बड़ी का आरोप स्वंय भाजपा भी लगा चुकी है.ऐसे में जरूरी है कि तमाम शंकाओं को निर्मूल साबित करते हुए ईवीएम से चुनाव कराना कुछ समय के लिये तो बंद ही कर देना चाहिए. अब फिर से मतपत्रों से चुनाव होने चाहिए, क्योंकि वर्तमान चुनाव नतीजे जनाधार कम, ईवीएम का कमाल ज्यादा नजर आते हैं. इन नतीजों के बाद संभव है कि ईवीएम पर प्रतिबंध लगाने की मांग जोर पकडऩे लग हालाकि इलेक्शन कमीशन ने दिल्ली नगर निगम के चुनाव में इस मांग को नकार दिया. अंत में एक बात हमारी मीडिया के लिये भी कि उसे अब चुनाव की भविष्यवाणियां कर जनता को बर्गलाने का काम छोड़ देना चाहिये. चुनाव परिणामों ने दिखा दिया कि मीडिया बिरादरी जनता की नब्ज बिल्कुल नहीं पकड़ पाई. कोई भी खबरनवीस उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में नरेंद्र मोदी व भाजपा की सुनामी को नहीं देख सका. इससे ऐसा लगता है कि कुछ अपवादों को छोड़कर शेष पत्रकारों को जमीनी हकीकत का अंदाजा नहीं रह गया है.असल में, पत्रकार अब लोगों के बीच जाने से बचने लगे हैं, जिस कारण मीडिया की विश्वसनीयता ही खतरे में पड़ गई है।                                                         

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