महिलाओं की सुरक्षा पर अब कठोर होगा कानून?
महिलाओं की सुरक्षा पर अब कठोर होगा कानून?
21 मार्च 2017 |
भारत भी विश्व की उस सूची में शामिल हैं जहां महिलाएं सुरक्षित नहीं है.
हम चौथे स्थान पर हैं जबकि हमारी परंपरा संस्कृति सब महिलाओं को इज्जत और
आदर देती रही है.भला जिस देश में जहां,नर में राम और नारी में सीता देखने
की संस्कृति रही हो, नदियों को भी माता कहकर पुकारा जाता हो, भगवान के
विभिन्न अवतारों, ऋषि-मुनियों, योगियों-तपस्वियों आदि की क्रीड़ा व
कर्म-स्थली रही हो, महिला सशक्तिकरण के लिए दिन-रात एक कर दिया गया हो,
संसद में भी तेतीस प्रतिशत महिलाओं को बैठाने की तैयारियां चल रही हों,
शीर्ष पदों पर महिलाएं विराजमान हों और हर प्रमुख परीक्षा व क्षेत्र में
लड़कियों का वस्र्चव स्थापित हो रहा हो,वहां देशभर में एक के बाद एक
नाबालिग लडकियों व बेबस महिलाओं के साथ दिल दहलाने वाली शर्मनाक व दरिन्दगी
भरे दुष्कर्म की घटनाओं ने यहां तक सोचने के लिए विवश कर दिया कि आखिर
इसका अंत क्या है?देश में हर 29वें मिनट में एक महिला की अस्मत को लूटा जा
रहा है। हर 77 मिनट में एक लड़की दहेज की आग में झोंकी जा रही है. हर 9वें
मिनट में एक महिला अपने पति या रिश्तेदार की क्रूरता का शिकार हो रही है.
हर 24वें मिनट में किसी न किसी कारण से एक महिला आत्महत्या करने के लिए
मजबूर हो रही है. नैशनल क्राइम ब्यूरो के अनुमानों के अनुसार प्रतिदिन देश
में 50 महिलाओं की इज्जत लूट ली जाती है, 480 महिलाओं को छेडख़ानी का शिकार
होना पड़ता है, 45 प्रतिशत महिलाएं पति की मार मजबूरी में सहती हैं, 19
महिलाएं दहेज की बलि चढ़ जाती हैं, 50 प्रतिशत गर्भवती महिलाएं हिंसा का
शिकार होती हैं और हिंसा का शिकार 74.8 प्रतिशत महिलाएं प्रतिदिन आत्महत्या
का प्रयास करती हैं. पांच राज्यों में चुनाव के दौरान बीजेपी ने
गुंडागर्दी दूर करने और महिलाओं को सुरक्षा देने का वादा किया है. इस बार
तो यह वादा और जोर शोर से किया गया चूंकि चुनाव उसी राज्य में था जहां
कानून और व्यवस्था की स्थिति विशेेेषकर महिलाओं के बारे में सबसे ज्यादा
खराब है. सवाल यह उठ रहा है कि यूपी में चुनाव जीतने के बाद क्या वाकई देश
की बहन-बेटीयों को बीजेपी से सुरक्षा का भरोसा है ? फिलहाल तो कुछ बदलाव
नजऱ नहीं आया. डर लगता है कि घर से निकलने के बाद सही सलामत वापस घर पहुंच
पायेंगी? घटनाएं, शोध, सर्वेक्षण और हालात देश में महिलाओं की स्थिति को
स्वत: बयां कर रहे हैं.विडम्बना और अचरज का विषय तो यह है कि इन सबके
बावजूद समाज का कोई भी वर्ग उतना गंभीर नजर नहीं आ रहा है, जितना कि आना
चाहिए! प्रतिदिन एक से बड़कर एक दरिन्दगी भरी घटनाओं को पड़कर, सुनकर और
देखकर एक सामान्य सी प्रतिक्रिया के बाद सामान्य क्रिया-कलापों में व्यस्त
हो जाना, देश व समाज की निष्क्रियता एवं संवेदनहीनता की पराकाष्ठा को
दर्शाता है,जोकि भावी समाज के लिए सबसे घातक सिद्ध होने वाला है. देश के इस
गंभीर एवं संवेदनशील पर राजनीति
कों के बीच चिरपरिचित रस्साकशी और समाजसेवियों एवं महिला प्रतिनिधियों
द्वारा भी अप्रत्याशित अनर्गल प्रलाप दिल को झकझोरने वाला है. अंत में कुल
मिलाकर कहा जा सकता है कि आखिर देश में ये हो क्या रहा है और ये जो कुछ भी
हो रहा है, वह अच्छा नहीं हो रहा है. इसकी कीमत देश व समाज को भविष्य में
बहुत भारी चुकानी पड़ सकती है।Óप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर बीजेपी
अध्यक्ष अमित शाह तक सभी बड़े नेताओं की मंशा यहीे है कि देश में बहू बेटी
मां सुरक्षित रहे.अब भारी बहुमत उनके साथ है वे देश में महिलाओं बच्चों की
सुरक्षा के लिये ऐसे कड़़े कानून बना सकते हैं जिसे सुनकर ही अपराधियों के
रोंगटे खड़े हो जाये.ऐसे कड़े कानून की बाते भाजपा के वरिष्ठ नेता बीच बीच
में कहते रहे हैं. अगर हमारे कानून में खामियां हैं तो उसे बदलने में
वर्तमान सरकार सक्षम है तो देरी किस बात की?
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