हममें असंवैधनहीनता कितनी घर कर गइ्र्र है हम किसी खास घटना पर रिएक्ट ही नहीं करते, मूक दर्शक बने सब देखते हैं और मूक ही बने रहते हैं.वास्तविकता यही है कि हमारे आसपास कोई भी बड़ी से बड़ी घटनाहो जाये, हम ऐसा शो करते हैं कि हमने कुछ न देखा ,न सुना-हां- बनते जरूर हैं कि अरें! हमें तो पता ही नहीं चला.फिल्मों ने इस मामले में जरूर जारूकता दिखाई है,कई फिल्मे ऐसी घटनाओं पर बनी है लेकिन समाज अब तक ऐसी घटनाओं पर रिएक्ट करने लायक नहीं हो पाया, चाहे वह सड़क पर कोई व्यक्ति किसी के वार से कराह रहा हो या किसी महिला के साथ सरे आम छेड़छाड़ की जा रही हो या कोई किसी को लूटकर भाग रहा हो-अथवा कोई ट्रेन में किसी असहाय के साथ दुव्र्यवहार कर रहा हो-हम इतना साहस भी नहीं कर पाते कि ऐसे विरोधी ताकतो का मुकाबला करें.हमारे समाज व कानून ने मनुष्य को कुछ ऐसा बना दिया कि वह चाहते हुए भी किसी प्रकार का एक्शन नहीं ले पाता. यू पी, बिहार हो या देश का अन्य कोई भी भाग, इस प्रकार की निष्क्रियता से समाज भरा पड़ा है. लोगों में इतनी हिम्मत भी नहीं रह जाती कि अपने या अपने सगे संबन्धी पर हुए अन्याय का प्रतिर...