प्रकृति केे कोप के आगे भी कई सवाल-जिसका जवाब तो किसी न किसी को देना ही होगा!
मांग को लेकर सड़कों पर उतरने से अगर समस्या हल हो जाती है तो हम कहेंगे कि रोज लोग सड़कों पर आये और अपनी मांग रखे. प्रकृति के कोप के आगे सब बेबस हैं तो सरकार की तैयारियों के अभाव ने भी तो लोगों को कहीं का नहीं छोड़ा. प्रकृति की मार झेल रहे किसान परेशान है उसकी फसल तबाह हो चुकी है. बारिश इस बार कम हुई.जहां पानी खूब गिरा वहां के पानी को सम्हालकर फसल व पीने के लिये रखने की जिम्मेदारी सरकार की थी उसका निर्वहन सही ढंग से नहीं किया. सितंबर का महीना आधा चला गया अब बारिश की गुंजाइश कम है लेकिन लोगों को ढाढस बंधाने के लिये हमारा मौसम विभाग कह रहा है कि अभी बारिश होगी, कितना सही कितना गलत वे ही जाने क्योंकि उनकी भविष्यवाणियां अक्सर उलटी ही निकलती है याने पानी गिरेगा तो सूखा पड़ता है बहरहाल संपूर्ण छत्तीसगढ़ इस समय सूखे की चपेट में है इतना ही नहीं जलप्रबंधन सही नहीं होने के कारण इस बार गर्मी के दिनों में गंभीर पेयजल संकट पैदा हो जाये तो आश्चर्य नहीं. जमीन के भीतर अभी पर्याप्त पानी इकट्ठा नहीं हो सका है. पानी की एक- एक बूंद अब महत्वपूर्ण हो गई है. इसमें दो मत नहीं कि संपूर्ण छत्तीसगढ़ सूखे की चपेट में है लेकिन क्या इसकों लेकर सड़क पर उतरने, नारेबाजी, प्रदर्शन करने से समस्या का समाधान हो जायेगा? इसमें दो मत नहीं कि किसान इस समय मुसीबत में है और आगे आने वाले दिनो में आम नागरिक भी इसी तरह पीने के पानी और निस्तारी के लिये परेशान होंगें लेकिन इसको लेकर की जाने वाली राजनीति का औचित्य क्या है?जिस मांग का कोई समाधान नहीं उसके लिये सड़कों पर जाम लगा देने से क्या समस्या का निदान हो जायेगा? हर कोई यह मानता है कि बांधों में पानी उस समय सही ढंग से एकत्रित नहीं हो सका जब अच्छी बारिश हो रही थी समय से पन्द्रह दिन बाद बारिश हुई थी लेकिन जब आई तो अच्छी बारिश हुई इस दौैरान भारी मात्रा में पानी बह गया इसकी जिम्मेदारी सरकार के जलप्रबंधन विभाग की थी जवाब उनसे लेने की जिम्मेदारी सरकार की है लेकिन सड़को पर नारे लगाने चक्का जाम करने से इस समस्या का निदान निकल सकेगा? हां सारी मांग किसान के भविष्य पर होनी चाहिये जिसके सामने पहाड़ टूटकर गिर पड़ा है- हम क्यों नहीं पानी संचित करने की योजनाओं का पालन करते? सरकार की रिचार्जिगं योजना कहां हैं? नये बांध बनाने, वर्तमान बांधों की क्षमता बढ़ाने पर विचार क्यों नहीं किया जाता? कहां गई लाखों करोड़ो रूपये खर्च कर तैयार की गई टार बांध योजना?क्यों सरकार एक नदी से दूसरे को जोडऩे की योजनाओं पर तेजी से अमल करती ?आज की स्थिति में एक राज्य सूखे की चपेट में है तो दूसरे राज्य में बाढ़ की स्थिति है. अगर एक दूसरे से नदियों को जोडऩे की योजना पर अमल हो जाता तो क्या देश में ऐसी स्थिति निर्मित होती?-क्या लोगों को राजनीति करने के लिये सड़क पर उतरना पड़ता? इस हालात के लिये सरकार- विपक्ष दोनों जिम्मेदार है. जो भी सत्ता में आता है वह पुराने वादो को भूल जाता है, भुगतना पड़ता है आम लोगों को, जो सडक पर निकलकर नेताओं की हां मेंं हां मिलाती है, नारे लगाती है उपद्रव करती है.इसकी आड़ में नेता अपना स्वार्थ पूरा कर फिर सत्ता में काबिज हो जाते हैं. प्रकृति के नियम से लेकर सबमें राजनीति जो घुस गई है!
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