गो धन न्याय: पशुपालको के चेहरे खिले
छत्तीसगढ में गाय भैस पालने वालो के लिये एक समस्या
थी उनसे निकलने वाले गोबर की: वे इसे या तो अपनी बाडी में ही फेक दिया करते थे या फिर कंडा या
छेना बनाकर रख देते थे ताकि जरूरत के वक्त इसका उपयोग कर सके लेकिन उनने यह कल्पना
भी नहीं की थी कि गोबर उनकी आमदनी का जरिया बनेगा: गोबर पर योजना बनाते समय कई
लोगो ने यह सोचा होगा कि यह क्या पागलपन है लेकिन इस योजना के साकार होने के बाद
अब लोगों को लगने लगा है कि वास्तव में हम एक अच्छे कदम पर आगे बढे हैं: गोधन
न्याय योजना ने पशुपालकों, किसानों और महिलाओं के लिए अतिरिक्त आमदनी का रास्ता खोल दिया: पशुपालको के सामने सबसे बडी समस्या रहती है जानवरों के इलाज और चारे की इस योजना
से वे इस समस्या से बहुत हद तक निपटने में तो कामयाब हो रहे हैं साथ ही दूध के
साथ अतिरिक्त आमदनी भी प्राप्त् कर रहे हैं: सरकार को चाहिये कि जो पशुपालक डन्हे
गोबर देते हैं उन्हें इस बात के लिये भी प्रेरित करें कि वे अपने गोठानों के साथ साथ मुर्गी पालन, बकरी पालन और संभव हो तो मछली पालन
को भी बढावा दे ताकि आमदनी में और इजाफा हो: किसान सम्रद्व होगा तभी देश खुशहाल
होगा: यह खुशी की बात है कि जनजाति बहुल जशपुर जिले के मनोरा विकासखंड के ग्राम
पंचायत रेमने के गेड़ई गौठान की गांधी स्वसहायता समूह की महिलाएं गोबर से जैविक खाद
का निर्माण कर आत्मनिर्भर बन रही हैं: गोधन न्याय योजना के दिन 20 जुलाई 2020 से ही उनके गौठान में गोबर विक्रय
हेतु पषुपालको की भीड़ उमड़ पडी थी: समूह की महिलाओं ने अब तक 33 से ज्यादा क्विंटल गोबर एकत्रित कर
रिकार्ड बना दिया है: वास्तव में विश्व के लिये यह एक उदाहरण है: छत्तीसगढ राज्य
अब आत्मनिर्भरता की दिशा में आगे बढ रहा है: हम अब लोगों की नजर में पिछडे नहीं
है: एक सम्रद्व और विकासशील राज्य के रूप का प्रयास यहां के लोगो की तरफ हो रहा
है जिसपर दूसरे राज्यों की नजर भी लगी हुई है: हमारे पशुपालकों में से बहुत से अब
भी घरो में लकडी का चूल्हा जलाते हैं सरकार की तरफ से कइयों को उज्वला गैस योजना
के तहत गैस की मदद भी की है लेकिन अब सरकार की तरफ से गोबर गैस योजना को भी महत्व
देने की जरूरत है ताकि रसोई से निकलने वाले कचरे का भी उसमें समावेश कर रसोई गैस
के रूप में उसका उपयोग किया जा सके: गांव गांव में मछली पालन, बकरी पालन का विकास भी इस राज्य को सम्रद्व व आत्मनिर्भर बनाने
में विशिष्ट भूमिका निभा सकता है: गोधन
योजना की तरह शहरों के लिये एक ऐसी योजना बनाने की जरूरत है जो घरों से निकलने
वाले कचरे की समस्या का समाधान कर सके: आज की स्थिति में शहरों से निकलने वाला
कचरा घरों से कलेक्ट कर उसे एक नियत स्थान पर डब कर दिया जाता है: विदेशों में
इसका उपयोग करने की ढेर सारी स्थाई व्यवस्था है इनका अध्ययन कर छत्तीसगढ के
हर गांव ’शहर में ऐसी योजनाएं चलाई जाये तो एक
बडी समस्या का न केवल निवारण होगा बल्कि शहर और गांव साफ सुथरे व आधुनिक नजर
आयेंगे बहरहाल गोधन योजना की प्रगति पर हमें खुश होना चाहिये: पशुपालको का गोबर सरकार खरीद रही है और उसका भुगतान
भी जिला प्रषासन द्वारा किया जा रहा है। इससे न सिर्फ गौठान समिति को लाभ हो रहा
है, बल्कि गांव के समस्त पषुपालकों की भी आमदनी में बढ़ोतरी हो रही है:
यह जैविक खेती की दिशा में भी एक बडा कदम है: प्राकृतिक खाद से फसल की अच्छी
पैदावार होती है:रसायन के ज्यादा उपयोग से आज विश्व जहां बुरी तरह पीडित है हम
राज्य के लोगों को प्राक्रतिक अनाज देने की दिशा में भी आगे बढ चुके है:सरकार ने
हाल ही दावा किया है कि गोधन न्याय योजना के तहत राज्य में
बीते 20 जुलाई से 15 अगस्त तक क्रय गोबर के एवज में कुल 6 करोड़ 17 लाख 60 हजार 200 रूपए का भुगतान किसानों, ग्रामीणों एवं पशुपालकों को मिल रहा
है।: यह अपने आप में एक रिकार्ड है:मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने 20 जुलाई को हरेली पर्व के दिन गोधन
न्याय योजना चालू की थी:
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