यह घिनौना खेल आखिर कब तक! बच्चियां खतरे में!
यह इंसान नहीं राक्षस है और इनकी हैवानियत यूं कब तक चलती रहेगी- यह अपने आप एक यक्ष प्रश्न है.सात साल तक कानूनी जंग लडऩे के बाद दिल्ली में निर्भया के माता पिता को न्याय मिला और अपराधियों को फांसी पर लटकाया गया लेकिन अपराधियो के हौसले में कोई कमी नहीं आई. निर्भया जैसी एक अन्य घटना दिल्ली में ही मंगलवार को हुई जिसने पूरे देश को चौका दिया. पीरागढ़ी पश्चिमी दिल्ली में मंगलवार शाम को बारह साल की यह बच्ची घर में अकेली थी. दुष्कर्म के बाद कैची से गोद अधमरी हालत में छोड़कर अपराधी फरार हो गए.अस्पताल सूत्रों के अनुसार बच्ची की हालत काफी गंभीर है.उसको आईसीयू में रखा गया है,उसके शरीर पर चोट के गहरे निशान हैं. वह बेहोश है और अगले 24 घंटे काफी महत्वपूर्ण हैं.घटना के बाद से सभी राक्षस फरार हैं. देश में कानून की सख्ती और जनता के आक्रोश के बावजूद रेप के मामले नहीं रुके. आंकड़े यही बताते हैं कि इंसानियत को शर्मसार कर देने वाली कठुआ और उन्नाव गैंग रेप की घटनाओं को भुलाया नहीं जा सकता. सख्त कानूनों के बावजूद रेप की वारदातें कम नहीं हो रही हैं. साल 2012 में दिल्ली के चर्चित निर्भया गैंगरेप के बाद लाखों की तादाद में लोग सड़कों पर उतर आये थे. इस खौफनाक मामले के बाद ये जनता के आक्रोश का ही असर था कि वर्मा कमिशन की सिफारिशों के आधार पर सरकार ने नया एंटी रेप लॉ बनाया. इसके लिए आईपीसी और सीआरपीसी में तमाम बदलाव किए गए और इसके तहत सख्त कानून बनाए गए. साथ ही रेप को लेकर कई नए कानूनी प्रावधान भी शामिल किए गए. लेकिन इतनी सख्ती और इतने आक्रोश के बावजूद रेप के मामले नहीं रुके. नेशनल क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो की 2014 की रिपोर्ट के मुताबिक देश में हर एक घंटे में 4 रेप, यानी हर 14 मिनट में 1 रेप हुआ है. दूसरे शब्दों में, साल 2014 में देश भर में कुल 36975 रेप के मामले सामने आए हैं.हैदराबाद में 23 साल की पशु चिकित्सक युवती की गैंगरेप के बाद हत्या के विरोध में पूरा देश एक जुट हुआ लोग दोषियों को तुरंत फांसी देने की मांग करते रहे और वहां अपराधी पुलिस के शिकंजे से भागने की कोशिश करते रहे और एनकाउंटर में मारे गये. इसे देश में सराहा भी गया और कहने वालों ने इसे मानवाधिकार का मामला भी कहा. जांच अभी भी चल रही है वहीं दिल्ली के निर्भया केस में पीडि़त छात्र की मां सात साल कोर्ट के चक्कर काटने के बाद न्याय प्राप्त कर सकी. भारत में न्याय प्रक्रिया लंबी है, लेकिन कुछ देशों में ऐसे जघन्य अपराधों के लिए सजाए मौत ही मिलती है.. भारत में पिछले दो-तीन दशकों में अन्य अपराधों की तुलना में रेप की संख्या में सबसे ज्यादा बढ़ोतरी हुई है और इनसे जुड़े दोषियों को सजा देने के मामले में हम सबसे पीछे रहते है,वहीं दुनिया के दूसरे देशों की बात करें तो कुछ देश ऐसे हैं जहां बलात्कार के दोषियों को 24 घंटों के अंदर सजा ए मौत देती है. उत्तर कोरिया वैसे भी अपराधियों के प्रति दया या सहानुभूति नहीं दिखाता.यहां रेप के लिए केवल एक ही सजा है और वो है मौत. यहां बलात्कारी को सरेआम सिर में कई गोलियां दागी जाती हैं. संयुक्त अरब अमीरत में कई जुर्मों के लिए कुछ अलग-अलग सजाएं हैं, लेकिन बलात्कारी को सीधे मौत की सजा सुनाई जाती है. यूएई के कानून के मुताबित यदि किसी ने सेक्स से जुड़ा अपराध किया है तो उसे सात दिनों के अंदर ही फांसी दे दी जाती है.सऊदी अरब में इस्लामिक कानून शरिया को मान्यता दी गई है.इस देश में किसी भी अपराध के लिए मौत की सजा का ही प्रावधान है. अगर कोई भी शख्स रेप का दोषी पाया जाता है तो अपराधी को फांसी पर टांगने, सिर कलम करने के साथ-साथ उसके यौनांगों को काटने की सजा सुनाई जा सकती है. इराक में बलात्कार करने वालों को मौत की सजा दी जाती है, लेकिन सजा देने का तरीका थोड़ा अलग होता है. रेप के गुनाहार को तब तक पत्थर मारे जाते हैं, जब तक की वो मर न जाए. पोलैंड में बलात्कार के आरोपी को सुअरों से कटवाया जाता है. इंडोनेशिया में बलात्कार करने वालों को नपुंसक बनाने के साथ ही साथ उनमें महिलाओं के हॉर्मोन्स डाल दिए जाते हैं. चीन में मेडिकल जांच की पुष्टि के बाद सीधे मौत की सजा का प्रावधान है. चीन में अब तक रेप की सजा में कई लोगों को मौत के घाट उतारा भी जा चुका है. चीन में इस जुर्म की सजा जल्द से जल्द दे दी जाती है. साफ शब्दों में कहें तो मेडिकल जांच में प्रमाणित होने के बाद मृत्यु दंड मगर कई बार फांसी के बाद पता चलता है कि जिसे सजा दी गई, उसनें कोई गुनाह ही नहीं किया था.तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में रेप और हत्या के मामले में अभियुक्त बनाए गए चार युवकों का कथित पुलिस एनकाउंटर के बाद देश का न्याय तंत्र एक बार फिर सुर्खियों में है.भारत में हर रोज़ औसतन 90 से अधिक रेप के मामले दर्ज किए जाते हैं. इनमें से बहुत ही कम रेप पीडि़त अपने साथ दुष्कर्म करने वाले दोषियों को सज़ा पाते हुए देख पाती हैं.अगर अदालतों में न्याय मिलने की दर देखी जाए तो साल 2002 से 2011 के बीच सभी मामलों में यह लगभग 26 प्रतिशत तक रही थी.हालांकि, साल 2012 के बाद अदालतों में फ़ैसले मिलने की दर में कुछ सुधार देखने को ज़रूर मिला लेकिन इसके बाद साल 2016 में यह दर दोबारा गिरकर 25 प्रतिशत पर आ गई.जिस तरह से अदालतों में मामले साल-दर-साल आगे बढ़ते जाते हैं उससे कई बार पीडि़त और चश्मदीदों को धमकाने और लालच देकर बयान बदलने की संभावनाएं भी बढ़ जाती हैं.यह बात तब और ज़्यादा हो जाती है जब किसी मामले में उच्च पद पर बैठे शख़्स पर या उनके कऱीबियों पर आरोप लगे हों.उदाहरण के लिए स्वघोषित धार्मिक गुरु आसाराम बापू को साल 2018 में अपनी आश्रम की एक युवती के साथ यौन दुर्व्यवहार का दोषी पाया गया था. इससे पहले इस मामले से जुड़े कम से कम नौ चश्मदीदों पर हमले हो चुके थे.भले ही हमें लगता हो कि भारत में रेप के मामलों पर फ़ैसला आने में बहुत साल लग जाते हैं लेकिन दुनिया के दूसरे विकासशील देशों में यह दर भारत से भी कम है.जिन देशों की अदालतों में फ़ैसले देने की दर ऊंची है वहां भी यह चिंता जताई जाती है कि वहां बहुत कम मामले अदालतों तक पहुंचते हैं. यही वजह है कि रेप से जुड़े मामले भी कम रिपोर्ट होते हैं.बलात्कार और यौन हिंसा के मामलों में खऱाब कन्विक्शन रेट के लिए एमनेस्टी इंटरनेशनल ने स्वीडन और उत्तरी यूरोप के अन्य देशों की भी आलोचना की थी. ऐसा तब है जब ये देश लैंगिक समानता के मामले में कई वैश्विक सर्वे में अच्छा प्रदर्शन कर चुके हैं.मगर ध्यान देने लायक बात यह भी है कि हर देश में बलात्कार की परिभाषा, पुलिस के तौर-तरीके और न्यायिक प्रक्रिया भी अलग है.बलात्कार एक प्रवृति है. उसे चिन्हित करने, रोकने और उससे निपटने की दिशा में यदि हम सब एकमत होकर काम करें तो संभवत: इस प्रवृत्ति का नाश कर सकते हैं.
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