मैरिटल रेप: केन्द्र की दलील मे दम तो है...

मैरिटल रेप: केन्द्र की दलील मे दम तो है...

केंद्र सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट में मैरिटल रेप या वैवाहिक बलात्कार को अपराध करार देने के लिए दायर की गई याचिका के खिलाफ़ कहा कि इससे विवाह की संस्था अस्थिर हो सकती है. केन्द्र की दलील में दम है. सरकार ने कहा है कि मैरिटल रेप को अपराध नहीं करार दिया जा सकता है, ऐसा करने से विवाह की संस्था अस्थिर हो सकती है तथा पतियों को सताने के लिए पत्नी के पास ये एक आसान औजार हो सकता है.भारतीय दंड विधान या आईपीसी की धारा 375 के तहत कोई व्यक्ति अगर किसी महिला के साथ अगर इन छह परिस्थितियों में यौन संबन्ध बनाता है तो कहा जाएगा कि रेप किया गया.1. महिला की इच्छा के विरुद्ध 2. महिला की मर्जी के बिना 3. महिला की मर्जी से, लेकिन ये सहमति उसे मौत या नुक़सान पहुंचाने या उसके किसी करीबी व्यक्ति के साथ ऐसा करने का डर दिखाकर हासिल की गई हो.
4. महिला की सहमति से, लेकिन महिला ने ये सहमति उस व्यक्ति की ब्याहता होने के भ्रम में दी हो.
5. महिला की मर्जी से, लेकिन ये सहमति देते वक्त महिला की मानसिक स्थिति ठीक नहीं हो या फिर उस पर किसी नशीले पदार्थ का प्रभाव हो और लड़की कंसेट देने के नतीजों को समझने की स्थिति में न हो.
6. महिला की उम्र अगर 16 साल से कम हो तो उसकी मर्जी से या उसकी सहमति के बिना किया गया सेक्स. पत्नी अगर 15 साल से कम की हो तो पति का उसके साथ सेक्स करना रेप नहीं है.आईपीसी रेप की परिभाषा तो तय करता है लेकिन उसमें वैवाहिक बलात्कार या मैरिटल रेप का कोई जिक्र नहीं है.
धारा 376 रेप के लिए सजा का प्रावधान करता है और आईपीसी की इस धारा में पत्नी से रेप करने वाले पति के लिए सजा का प्रावधान है बर्शते पत्नी 12 साल से कम की हो.घर की चारदीवारी के भीतर महिलाओं के यौन शोषण के लिए 2005 में घरेलू हिंसा क़ानून लाया गया था.ये क़ानून महिलाओं को घर में यौन शोषण से संरक्षण देता है. इसमें घर के भीतर यौन शोषण को परिभाषित किया गया है. हाल ही केंद्र सरकार की ओर से अदालत में पेश किए गए हलफनामे में कहा गया कि पति और पत्नी के बीच यौन संबंध का कोई विशिष्ट सबूत नहीं हो सकता. खंडपीठ के समक्ष पेश  हलफनामे में कहा  गया है कि इसे पूरी तरह सुनिश्चित करना होगा कि वैवाहिक दुष्कर्म परिघटना न बने, क्योंकि यह पतियों को परेशान करने वाला हथियार बन सकता है और विवाह संस्था को ढहा सकता है.केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा है कि अगर पति द्वारा पत्नी के साथ किए जाने वाले सभी यौन संबंधों को वैवाहिक दुष्कर्म की तरह माना जाने लगेगा तो वैवाहिक दुष्कर्म का फैसला सिर्फ और सिर्फ पत्नी के बयान पर निर्भर होकर रह जाएगा. सवाल यह है कि ऐसी परिस्थिति में अदालत किन सबूतों को आधार बनाएगी, क्योंकि पति और पत्नी के बीच यौन संबंध का कोई अंतिम सबूत नहीं हो सकता. किसी भी कानून में वैवाहिक दुष्कर्म को परिभाषित नहीं किया गया है, जबकि दुष्कर्म भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 375 में परिभाषित है और वैवाहिक दुष्कर्म को परिभाषित करना समाज में वृहत सहमति की मांग करता है. हम यह भी कह सकते है ंकिं दुनिया के अन्य देशों, खासकर पश्चिमी देशों द्वारा वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने का यह मतलब भी नहीं है कि भारत को अनिवार्य रूप से उनका अंधानुकरण करना चाहिए.भारतीय परिस्थिति के अनुसार केंद्र के इस तर्क में दम है कि वह वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित नहीं कर सकती, क्योंकि अशिक्षा, महिलाओं की अधिकांश आबादी का वित्तीय रूप से आत्मनिर्भर न होना, समाज की मानसिकता, विभिन्न राज्यों की संस्कृति में अत्यधिक विविधता का होना और गरीबी के कारण भारत की अपनी खास समस्याएं हैं.इस मुद्दे पर अभी पांच सितंबर को अदालत में फिर विचार होना है. केन्द्र का पक्ष पेश होने के बाद अदालत क्या फैसला करता है यह आगे आने वाले समय में पता चलेगा.

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