डोकाला विवाद के बाद क्या सब कुछ ठीक!
डोकाला विवाद के बाद क्या सब कुछ ठीक!
यह एक अच्छी खबर इस सप्ताह के शुरू में मिली कि चीन और भारत के बीच डोकाल मामले पर तनाव खत्म हो गया है ओैर दोनों देशों की सेनाओं ने पीछे हटने का निर्णय लिया है. दोनों देश खासतौर से एशिया व अफ्रीका में अपने ढांचेगत संपर्क को बढ़ाने में जुटे हैं. सवाल यह है कि ऐसे कदमों को क्या हम हमेशा एक-दूसरे के खिलाफ ही देखेंगे? डोका ला विवाद सुलझाने में चीन ने जैसा रवैया दिखाया है और पड़ोसी देशों से जुड़े हमारे संबंध व हितों को लेकर अपनी थोड़ी परिपक्वता का परिचय दिया है, उससे भरोसा होता है कि भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय वार्ता आगे बढ़ सकती है. इस सप्ताह की शुरूआत में जब भारतीय विदेश मंत्रालय की तरफ से यह बयान आया कि डोका ला से भारत व चीन, दोनों देशों की सेनाएं लौट रही हैं, तो उसके चंद घंटों पहले ही यह खबर भी आई थी कि गुरमीत राम रहीम के बहाने डोका ला विवाद को लेकर चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने भारत पर तंज कसा है. ग्लोबल टाइम्स का रुख यही बता रहा था कि चीन अंत तक भारत पर अपनी सेना वापस लौटाने का दबाव बनाता रहा, मगर भारत ने भी अपनी स्थिति साफ कर दी थी कि लौटेंगी, तो दोनों देशों की सेनाएं साथ लौटेंगी. इस हिसाब से देखें, तो डोका ला विवाद का कूटनीतिक समाधान निकलना एक उल्लेखनीय घटना है. किन्तु चीन के पुराने सारे रिकार्ड खराब है वह आगे कुछ करता है और पीछे कुछ. उसका इतिहास इतना खराब हो चुका है कि उसपर किसी तरह से विश्वास किया नहीं जा सकता. हाल ही समझौते के बाद का रूख भी उसका साफ नहीं था. फिलहाल इसके तमाम तरह के गुणा-भाग किए जाएंगे, मगर इतना साफ है कि अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिना किसी विवाद के चीन की अपनी आगामी यात्रा कर सकेंगे,जो ब्रिक्स सम्मेलन को लेकर होने जा रही है.इस समाधान का दूसरा पहलू हमारे लंबी अवधि के हितों पर, मध्यम अवधि के और तात्कालिक हितों पर पडऩे वाला असर है, जो इस बात पर निर्भर करता है कि किस तरह का कूटनीतिक समाधान डोका ला का निकाला गया है? फिलहाल तो बातचीत तात्कालिक नजरिये से ही हुई होगी, पर इसे हमें दीर्घावधि की ओर ले जाने का प्रयास करना होगा. मौजूदा परिस्थिति में उपयुक्त नजरिया यही होना चाहिए कि प्रधानमंत्री की चीन की आगामी यात्रा में उन तमाम मसलों पर भी द्विपक्षीय बातचीत हो, जिन पर पिछले दो-तीन महीनों में डोका ला विवाद के कारण चर्चा नहीं हो पाई जिसमें उत्तर कोरिया का अपने मिसाइल विकास कार्यक्रमों को गति देना, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा हाल ही में घोषित अपनी अफगान व एशिया नीति, पाकिस्तान का रवैया आदि. अभी पाकिस्तान भारत को तो आंखें दिखा ही रहा है, अमेरिका को भी घुड़की दे रहा है कि चीन व रूस उसके साथ हैं और इस्लामिक मुल्कों में भी उसका खासा प्रभाव बड़ा है. इस तथ्य से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि यह समझौता भी ब्रिक्स सम्मेलन की सफलता तक ही सीमित हो. उसकी मंशा यह हो कि येन-केन-प्रकारेण ब्रिक्स सम्मेलन को सफल बनाया जाए. उसे यह डर सता रहा हो कि जिस तरह 'वन बेल्ट वन रोडÓ बैठक से भारत ने खुद को किनारे कर लिया था, कहीं वह कहानी फिर से ब्रिक्स में न दोहराई जाए, ऐसे में यह हमारे लिये भी जरूरी है कि हम जल्दी ही डोका ला पर एक दीर्घावधि नीति की ओर बढ़े. अगर चीन फिर से डोका ला विवाद खड़ा करता है, तो हम उससे किस तरह से निपटेंगे अब इसपर भी ध्यान लगाने की जरूरत है. सीमा पर इन्फ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने की ओर जोर देना होगा. वैसे यह काम बहुत उस समय से ही शुरू कर दिया जाना चाहिये था जब चीन ने सन् 62 में हम पर हमला किया और हमें पराजय का मुंह देखना पड़ा. मगर अब भी कुद नहीं बिगड़ा है. अपनी सीमा पर विकास-कार्यों को लेकर अब भी अगर हम सक्रिय होते हैं, तो बात बन सकती है. इसे इस तरह भी समझ सकते हैं कि जिस तरह पाकिस्तान ने हमारे खिलाफ आतंकवाद को बढ़ावा देकर हमारे लोकतंत्र को थोड़ा आक्रामक बना दिया है, उसी तरह डोका ला विवाद से सबक लेकर हम सीमा पर ढांचे को बेहतर बनाने की ओर तेजी से आगे बढ़े और अपने तमाम पड़ोसी देशों के साथ द्विपक्षीय रिश्तों में गरमाहट लाएं।
यह एक अच्छी खबर इस सप्ताह के शुरू में मिली कि चीन और भारत के बीच डोकाल मामले पर तनाव खत्म हो गया है ओैर दोनों देशों की सेनाओं ने पीछे हटने का निर्णय लिया है. दोनों देश खासतौर से एशिया व अफ्रीका में अपने ढांचेगत संपर्क को बढ़ाने में जुटे हैं. सवाल यह है कि ऐसे कदमों को क्या हम हमेशा एक-दूसरे के खिलाफ ही देखेंगे? डोका ला विवाद सुलझाने में चीन ने जैसा रवैया दिखाया है और पड़ोसी देशों से जुड़े हमारे संबंध व हितों को लेकर अपनी थोड़ी परिपक्वता का परिचय दिया है, उससे भरोसा होता है कि भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय वार्ता आगे बढ़ सकती है. इस सप्ताह की शुरूआत में जब भारतीय विदेश मंत्रालय की तरफ से यह बयान आया कि डोका ला से भारत व चीन, दोनों देशों की सेनाएं लौट रही हैं, तो उसके चंद घंटों पहले ही यह खबर भी आई थी कि गुरमीत राम रहीम के बहाने डोका ला विवाद को लेकर चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने भारत पर तंज कसा है. ग्लोबल टाइम्स का रुख यही बता रहा था कि चीन अंत तक भारत पर अपनी सेना वापस लौटाने का दबाव बनाता रहा, मगर भारत ने भी अपनी स्थिति साफ कर दी थी कि लौटेंगी, तो दोनों देशों की सेनाएं साथ लौटेंगी. इस हिसाब से देखें, तो डोका ला विवाद का कूटनीतिक समाधान निकलना एक उल्लेखनीय घटना है. किन्तु चीन के पुराने सारे रिकार्ड खराब है वह आगे कुछ करता है और पीछे कुछ. उसका इतिहास इतना खराब हो चुका है कि उसपर किसी तरह से विश्वास किया नहीं जा सकता. हाल ही समझौते के बाद का रूख भी उसका साफ नहीं था. फिलहाल इसके तमाम तरह के गुणा-भाग किए जाएंगे, मगर इतना साफ है कि अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिना किसी विवाद के चीन की अपनी आगामी यात्रा कर सकेंगे,जो ब्रिक्स सम्मेलन को लेकर होने जा रही है.इस समाधान का दूसरा पहलू हमारे लंबी अवधि के हितों पर, मध्यम अवधि के और तात्कालिक हितों पर पडऩे वाला असर है, जो इस बात पर निर्भर करता है कि किस तरह का कूटनीतिक समाधान डोका ला का निकाला गया है? फिलहाल तो बातचीत तात्कालिक नजरिये से ही हुई होगी, पर इसे हमें दीर्घावधि की ओर ले जाने का प्रयास करना होगा. मौजूदा परिस्थिति में उपयुक्त नजरिया यही होना चाहिए कि प्रधानमंत्री की चीन की आगामी यात्रा में उन तमाम मसलों पर भी द्विपक्षीय बातचीत हो, जिन पर पिछले दो-तीन महीनों में डोका ला विवाद के कारण चर्चा नहीं हो पाई जिसमें उत्तर कोरिया का अपने मिसाइल विकास कार्यक्रमों को गति देना, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा हाल ही में घोषित अपनी अफगान व एशिया नीति, पाकिस्तान का रवैया आदि. अभी पाकिस्तान भारत को तो आंखें दिखा ही रहा है, अमेरिका को भी घुड़की दे रहा है कि चीन व रूस उसके साथ हैं और इस्लामिक मुल्कों में भी उसका खासा प्रभाव बड़ा है. इस तथ्य से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि यह समझौता भी ब्रिक्स सम्मेलन की सफलता तक ही सीमित हो. उसकी मंशा यह हो कि येन-केन-प्रकारेण ब्रिक्स सम्मेलन को सफल बनाया जाए. उसे यह डर सता रहा हो कि जिस तरह 'वन बेल्ट वन रोडÓ बैठक से भारत ने खुद को किनारे कर लिया था, कहीं वह कहानी फिर से ब्रिक्स में न दोहराई जाए, ऐसे में यह हमारे लिये भी जरूरी है कि हम जल्दी ही डोका ला पर एक दीर्घावधि नीति की ओर बढ़े. अगर चीन फिर से डोका ला विवाद खड़ा करता है, तो हम उससे किस तरह से निपटेंगे अब इसपर भी ध्यान लगाने की जरूरत है. सीमा पर इन्फ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने की ओर जोर देना होगा. वैसे यह काम बहुत उस समय से ही शुरू कर दिया जाना चाहिये था जब चीन ने सन् 62 में हम पर हमला किया और हमें पराजय का मुंह देखना पड़ा. मगर अब भी कुद नहीं बिगड़ा है. अपनी सीमा पर विकास-कार्यों को लेकर अब भी अगर हम सक्रिय होते हैं, तो बात बन सकती है. इसे इस तरह भी समझ सकते हैं कि जिस तरह पाकिस्तान ने हमारे खिलाफ आतंकवाद को बढ़ावा देकर हमारे लोकतंत्र को थोड़ा आक्रामक बना दिया है, उसी तरह डोका ला विवाद से सबक लेकर हम सीमा पर ढांचे को बेहतर बनाने की ओर तेजी से आगे बढ़े और अपने तमाम पड़ोसी देशों के साथ द्विपक्षीय रिश्तों में गरमाहट लाएं।
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