रफतार की नई तकनालाजी...लो आ गई बुलेट ट्रेन!

रफतार की नई तकनालाजी...लो आ गई बुलेट ट्रेन!

भारत में इस गुरूवार को जापान और भारत के बीच रफतार की एक नई तकनालाजी का उदय हुआ है. इसमें दो मत नहीं कि जब भी हमारे देश में कुछ इस तरह की तकनालाजी या संस्कृति कदम रखती है तो उसका पहले विरोध होता है जैसा पहले टीवी, कम्पयूटर का हुआ. हाल ही ड्रायवर लेस कार ने ऐसे विरोध को हवा दी. परिवहन मंत्री ने तो यह तक कह दिया कि हम इस कार को भारत की धरती पर कदम रखने नहीं देंगे. इसी कड़ी में अब तेज रफतार से दौडऩे वाली बुलेट ट्रेन भी कई लोगों को रास नहीं आ रही है. इसके पीछे छिपे कुछ कारण भी है जिसपर गौर करने की जरूरत है. भारतीय रेल दुनिया की सबसे बड़ी रेल सेवा होने के बावजूद सुविधाओं, सुरक्षा और किराये के मामले में सदैव आलोचना का शिकार रही है. ऐसे में हाल के कुछ दिनों में आम जनता को लेकर जाने वाली ट्रेनों का बेपटरी होना भी इस नई आधुनिकता को निशाने पर ले रहा है. अहमदाबाद और मुम्बई के बीच चलने वाली बुलेट ट्रेन का फायदा आम जनता को कितना मिलेगा यह अपने आप में प्रश्र है वहीं इसपर खर्च होने वाली राशि पर लगने वाला ब्याज भी किसी को रास नहीं आ रहा है. हम अपने देश में बुलेट ट्रेन की बात करते थे तो हमें यह एक सपना लगता था चूंकि हममें से कई लोग तो कन्याकुमारी से जम्मू तावी तक पहुंचने के लिये ट्रेन में तीन से चार दिन तक कोयले की धूल खाते हुए यात्रा करते रहे हैं किन्तु आज आधुनिकता की दौड़ में विश्व कितने आगे निकल गये है उसका अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि गुरूवार को भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और जापान के प्रधानमंत्री शींजों द्वारा शुरू की गई नई परियोजना भारत जैसे गरीब राष्ट्र में पहुंंच गई.अब यह बात स्पष्ट है कि आज नहीं तो कल हमारे देश में खूब तेज गति से दौडऩे वाली ट्रेनों की घरघराहट सुनाई देगी और लोग उसमें खुशी खुशी यात्रा भी कर सकेंगे- बुलेट ट्रेन परियोजना की आधार शिला रख दी गई है. यह देश की पहली हाई स्पीड रेल होगी इस फास्ट टे्रेन की गति 320 कि.मी. प्रति घंटा होगी.हाई स्पीड रेल लिंक के बीच की कुल दूरी 508 कि.मी. है.गुजराज महाराष्ट्र के लोग तो बुलेट ट्रेने पाकर खुश है लेकिन शेष भारत में ट्रेनों की जो दुर्गति है वह किसी से छिपा नहीं है. इन ट्रेनों की गति जहां 115 किलोमीटर प्रतिघंटा से ज्यादा नहीं है तो इनका रख रखाव सुरक्षा सब भगवान भरोसे है इसलिये बुलेट ट्रेन की इस समय आवश्यकता पर भी सवाल उठाये जा रहे हैं. देश में बिछी पटरियों की हालत में यहां तेज गति की ट्रेन चलाना खतरे से खाली नहीं है वहीं हाल के दिनों में हुई ट्रेन दुर्घटनाओ के बीच इस परियोजना पर उंगली उठना स्वाभाविक है पूछा यह जा रहा है कि क्या इस मंहगे हाथी को पाल सकने की स्थिति में है हम? सरकार का दावा है कि इस इस प्रोजैक्ट के कंस्ट्रक्शन में लगभग 20 हजार लोगों को नौकरी मिलेगी. इनका प्रयोग भविष्य में इसी तरह के प्रोजैक्ट में किया जा सकेगा.कहा यह भी जा रहा है कि भारतीय रेलवे के तकरीबन 3 हजार कर्मचारियों को वर्तमान में जापान में प्रशिक्षित किया जा रहा है, वहीं लगभग 4 हजार लोग हाई स्पीड रेल ट्रेडिंग इंस्टीच्यूट वड़ोदरा में ट्रेनिंग ले रहे हैं. बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट की कॉस्ट 1.20 लाख करोड़ रुपए है, यानी हर किमी पर 236 करोड़ रुपए का खर्च है, ऐसे में कई सवाल भी उठ रहे हैं- क्या देश और मुंबई-अहमदाबाद को इस ट्रेन की जरूरत है? क्या इसकी बजाय एयर ट्रेवल के इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च करना ज्यादा फायदेमंद नहीं होता? . इस परियोजना पर जो बाते निकलकर आ रही है वह भी कम चौकाने वाली नहीं है. बताया जा रहा है कि बुलेट ट्रेन की लागत में 80 नए एम्स बन जाएंगे,एक एम्स को बनाने पर खर्च 1500 करोड़ रुपए आता है.दूसरा यह कहा जा रहा है कि क्या इतनी कॉस्ट में रेलवे का ढर्रा नहीं सुधर जाता?हर किमी पर ट्रेन, ट्रैक और इन्फ्रास्ट्रक्चर की कीमत 236 करोड़ रुपए आएगी. 300 पेंडिंग प्रोजेक्ट के लिए रेलवे को 2 लाख करोड़ रुपए की जरूरत है. बुलेट ट्रेन प्रोजेक्ट की कॉस्ट से रेलवे के 150 पेंडिंग प्रोजेक्ट पूरे हो सकते हैं. दावा यह किया जा रहा है कि यह सौदा घाटेे का नहीं है चूंकि इसमें रेलवे की सिर्फ जमीन लग रही है 1.20 लाख करोड़ की कॉस्ट में से 88 प्रतिशत जापान दे रहा है, वो भी 0.1 प्रतिशत ब्याज की दर पर! इकोनॉमी के लिहाज से देखें तो इस प्रोजेक्ट की तुरंत जरूरत नहीं थी बल्कि आने वाले 10 सालों में इसकी जरूरत जरूर पड़ेगी. अगर जल्द शुरुआत हुई है तो इसमें बुराई भी नहीं है. रेलवे ने यह सोचकर इस प्रोजेक्ट को आकार दिया है कि 2023 तक एक साल में मुंबई-अहमदाबाद के बीच डेढ़ करोड़ लोग ट्रेवल करेंगे। यानी 41 हजार लोग रोजाना इनमें से 36 हजार पैसेंजर्स की जरूरत बुलेट ट्रेन से पूरी होगी. मंहगाई के इस युग में रेलवे की इस सोच पर भी विचार की जरूरत है.

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