क्यों बन गये हैं भारत के लिए रोहिग्या सिरदर्द?
एक सरदर्द हमारे ऊपर उस इंटेलिजेंस रिपोर्ट के बाद और बढ़ गया जिसमें कहा गया है कि भारत-म्यांमार बॉर्डर पर कड़ी सुरक्षा के बीच रोहिंग्या मुसलमान पेशेवर तस्करों की मदद से समुद्र के रास्ते देश में घुसपैठ कर सकते हैं. रोहिंग्या मुसलमान स्थानीय एजेंसियों द्वारा उत्पीडऩ और स्थानीय बौद्ध आबादी के साथ उनके विवाद के बाद 2012 से म्यांमार भाग रहे हैं.यहां तक तो ठीक है किन्तु आतंकवादी संगठन इसका फायदा उठाने की कोशिश में लगे हैं. बंगलादेश शरणार्थियों को झेल चुके भारत के लिये और शरणार्थियों को झेल पाना कठिन ही नहीं सभव भी नहीं है. यूं ही आबादी का बोझ हमारी अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहा है वहीं आंतकवादी गतिविधियों को हम न केवल सीमा पर झेल रहे हैं बल्कि यह हमारी एक आंतरिक समस्या भी बनी हुई है.आज की स्थिति यह है कि 40 हजार रोहिंग्या असम, वेस्ट बंगाल, जम्मू, यूपी और दिल्ली के कैंप में रह रहे हैं.जबकि रोहिंग्या बंगाल जैसे क्षेत्रों से घुसपैठ करने की हर संभव कोशिश में लगे हैें. इसमें यह पहचानना कठिन है कि कौन सही शरणार्थी है और कौन आंतक के खेमे से आकर शामिल हुआ है अत: हमें क्या किसी भी दूसरे देश को भी इसे ह्यूम्रेटिरियन ग्राउण्ड पर देखना कठिन र्हैं हां पडौसी पाकिस्तान इसका जरूर फायदा उठा सकता है और कर भी रहा होगा. भारत विरोधी तत्व ऐसे मामलों को हवा देने और इसका फायदा उठाने की कोशश में है. पेशेवर तस्कर समुद्र के रास्ते म्यांमार से बंग्लादेश आते हैं.रोहिंग्या परिवारों को यह तस्कर बड़ी नाव और हाई स्पीड राफ्ट्स की मदद से भगाने की कोशिश में लगे हैं. इंटेलीजेंस इसकी पुष्टि करता है कि इस्लामिक स्टेट के सपोटर्स अपने मंूसबे को पूरा करने सक्रिय हैं. केंद्र सरकार 40 हजार अवैध तरीके से रह रहे रोहिंग्याओं के निर्वासन की व्यवस्था का रही है वहीं आईएसआईएस, जमात उद दावा जैसे संगठनों अपने आतंकियों को रोहिंग्या कैंप के जरिये घुसपैठ कराई है.इन आतंकियों का मकसद रोहिंग्या कैंप के भोले और मासूम लड़कों को जिहादी बनाना हैं. म्यामांर में रोहिंग्या का आका मुल मुजाहिदीन नाम का आतंकी संगठन है जिसे हरकत उल जिहाद इस्लामी अराकन और अरकन रोहिंग्या सलवेशन आर्मी की शाखा माना जाता है. रोहिग्या मुसलमानों की कहानी भी बड़ी पेचीदा है.जून 2012 में बर्मा के रखाइन प्रांत में रोहिंग्या मुसलमानों ने एक बौद्ध युवती से बलात्कार किया- स्थानीय बौद्धों ने इसका विरोध किया तो रोहिंग्या मुसलमानों ने संगठित होकर बौद्धों पर हमला बोल दिया, इसके विरोध में बौद्धों ने भी संगठित होकर रोहिंग्या मुसलमानों पर हमला कर दिया इस संघर्ष में लगभग 200 लोग मारे गए जिनमें रोहिंग्या मुसलमानों की संख्या अधिक थी तबसे दोनों समुदायों के बीच हिंसा का जो क्रम आरम्भ हुआ, वह आज तक नहीं थमा। रोहिंग्या मुसलमानों ने नावों में बैठकर थाइलैण्ड की ओर पलायन किया किंतु थाइलैण्ड ने इन नावों को अपने देश के तटों पर नहीं रुकने दिया इसके बाद रोहिंग्या मुसलमानों की नावें इण्डोनेशिया की ओर गईं और वहाँ की सरकार ने रोहिंग्या मुसलमानों को शरण दी. रोहिंग्या मुसलमानों ने बर्मा में रोहिंग्या रक्षा सेना का निर्माण करके अक्टूबर 2016 में बर्मा के 9 पुलिस वालों की हत्या कर दी तथा कई पुलिस चौकियों पर हमले किए,इसके बाद से बर्मा की पुलिस रोहिंग्या मुसलमानों को बेरहमी से मारने लगी और उनके घर जलाने लगी इस कारण बर्मा से रोहिंग्या मुसलमानों के पलायन का नया सिलसिला आरम्भ हुआ वर्तमान में लगभग 20 हजार रोहिंग्या मुसलमान बर्मा तथा बांग्लादेश की सीमा पर स्थित नाफ नदी के तट पर डेरा डाले हुए हैं, वे भूख से तड़प रहे हैं तथा उन्हें जलीय क्षेत्रों में रह रहे सांप भी बड़ी संख्या में काट रहे हैं.इस शरणार्थियों की भीड़ में कई हट्टे खट्टे लोगों को भी देखा जा सकता है बाकी अधिकतर बीमार हैं तथा तेजी से मौत के मुंह में जा रहे हैं.बहुतो नेे भागकर बांग्लादेश में शरण ली किंतु भुखमरी तथा जनसंख्या विस्फोट से संत्रस्त बांग्लादेश रोहिंग्या मुसलमानों का भार उठाने की स्थिति में नहीं है, इसलिए इन्हें वहाँ भोजन, पानी रोजगार कुछ भी प्राप्त नहीं हुआ और हजारों रोहिंग्या मुसलमानों ने भारत की राह पकड़ी. भारत का पूर्वी क्षेत्र पहले से ही बांग्लादेश से आए मुस्लिम शरणार्थियों से भरा हुआ है, अत: भारत नई मुस्लिम शरणार्थी प्रजा को स्वीकार करने की स्थिति में नहीं है. इसी बीच भारत में भी कम्युनिस्ट विचारधारा तथा मानवाधिकारों की पैरवी करने वाले संगठनों से जुड़े बुद्धिजीवियों के धड़ों ने भारत सरकार पर दबाव बनाना आरम्भ कर दिया है कि रोहिंग्या मुसलमानों को भारत स्वीकार करे. आखिर यह कैसे हो सकता है और इस मांग का क्या तुक?
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