न्याय में देर है अंधेर नहीं...देरी अब चुभने लगी है!

घिनौने और क्रूर अपराधों से हमारा इतिहास भरा पड़ा है. इसमें दो मत नहीं कि देश के कानून ने क्रूरतम अपराधों में लिप्त लोगों को बख्शा भी नहीं किन्तु न्याय प्राप्ति में देर अब भी एक समस्या बनी हुई है इसके पीछे मौजूद कारण बताने की जरूरत नहीं. न्यायधीशों की कमी और ज्यादा मामले इसके पीछे एक कारण रहा है. अब धीरे धीरे इस समस्या का समाधान जरूर हो रहा है किन्तु अभी भी अपराध की गति में कोई कमी न आना चिंता का विषय है शायद इसके पीछे एक कारण यह भी है कि हमारा कानून अन्य देशों की बनस्बत कुछ रहम दिल है इसका फायदा उठाकर अपराधी जघन्य अपराध करने से भी नहीं चूकते. बीते वर्षो में कुछेक ऐसे मामले हुए जो मानवता को शर्र्मसार करने वाली थी जिसमें से अधिकांश में आरोपियों को सख्त से सख्त सजा भी मिली. कुछ को तो फांसी पर भी लटकाया गया लेकिन इसके बाद भी अपराधों का ग्राफ कम न होना चिंता का विषय है. इंडियन नेवी के अधिकारी के दो बच्चों गीता चोपड़ा साढ़े16 वर्ष और संजय चोपड़ा 14 वर्ष का 28 अगस्त 1978 को अपहरण और बलात्कार के बाद हत्या हुई- दो अपराधी बिल्ला और रंगा पकड़े गये मुकदमा चला तथा करीब चार साल बाद 31 जनवरी 1982 को दोनों अपराधियों को फांसी पर लटका दिया गया. उपहार सिनेमा में 13 जून 1997 को आग लगी, आग में जलकर 59 लोग मारे गये. मुकदमें का फैसला हुआ 19 अगस्त 2014 को, अंसल बंधुओं पर तीस- तीस लाख रूपये का जुर्माना हुआ और दोनों को रिहा कर दिया गया. 11 जनवरी 2007 को निठारी में सुरेन्द्रसिंह पंधेंर और कोहली नामक दो वहशियों को सत्रह बच्चों की हत्या के मामले में पकड़ा गया मुकदमा चला 24 जुलाई 2017 को दोनो को फांसी की सजा सुनाई गई.अभी भी इनके अन्य मामलों पर मुकदमा चल रहा है. दिल्ली में विश्व को हिला देने वाले निर्भया बलात्कार हत्याकांड 17 दिसंबर 2016 को हुआ. दिल दहला देने वाले इस रेप एंड मर्डर के मुलजिम फांसी की सजा पाने के बाद भी जेल में हैं.9 अक्टूबर 2013 को अठारह साल पहले तंदूर कांड हुआ .दिल्ली यूथ कांग्रेस के प्रेसीडेंट सुशील शर्मा ने अपनी पत्नी नैना साहनी की हत्या कर शव के टुकड़े टुकड़े कर एक रेस्टोरेंट के तंदूर में जलाने की कोशिश की -फांसी की सजा को कोर्ट ने उम्र कैद में तब्दील कर दिया. जसिका लाल,प्रियदर्शिनी मटॅटू जैसे कई और भी ऐसे वीभत्स कांड है जो या तो कोर्ट में लम्बे समय तक चले और मुलजिम सजा पाकर मारे गये या जेल मे पड़े- पड़े सड़ रहे हैं.आसाराम बापू पूरा नाम आसूमल थाउमल हरपलानी अथवा आसूमल सिरूमलानी यह नाम है उस यौन शौषण के आरोप में 2013 के दशक से जेल में बंद हैं. जिसके खिलाफ अभी भी मामला चल रहा है.जमानत की कई अर्जियां लगी.संगीन आरोपी को किसी कोर्ट से जमानत नहीं हुई मुकदमा अभी भी चल रहा है. अब सवाल यहां डेरा सच्चा सौदा के गुरमीत राम रहीम का है जिसे साध्वियों से रेप के मामले में 20 साल कैद की सजा सुना दी गईजिसमें कोर्ट को15 साल लग गए अदालत के लिए इस मामले में फैसले तक पहुंचना कितना कठिन रहा होगा और न्याय आने में इतनी देर क्यों लगाती हैं, इस सवाल पर कइ कारणों से चर्चा होती रही है लेकिन इस क्रम में एक बड़ी समस्या की अनदेखी हो जाती है कि अपराध के तमाम मामलों में आरोपी चाहे कोई भी हो, अभियोजन पक्ष हमेशा सरकार ही होती है, ऐसे में अगर सरकारी तंत्र ही अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाने में हीला-हवाली करता रहे तो अदालत समय से किसी ठोस फैसले तक कैसे पहुंच सकती है? प्राथमिकी दर्ज होने से लेकर मामले की जांच करने, बयान लेने, सबूत जुटाने और आरोप पत्र दायर करने तक मीलों लंबे रास्ते में सरकारी तंत्र अपनी इच्छा या अनिच्छा से कदम-कदम पर रोड़े अटकाता दिखता है खासकर प्रभावशाली और ताकतवर आरोपियों के खिलाफ चल रहे मामलों में तो समय काटना ही उसका लक्ष्य लगने लगता है उदाहरण के लिए, यौन शोषण के ही मामले में अंदर हुए आसाराम बापू का मामला लें तो इसमें एक ही खास बात है कि वह छुट्टा नहीं घूम रहा. मुम्बई बम ब्लास्ट के आरोपियों को सजा देेने में चौबीस साल लग गये इस ब्लास्ट में 257 लोग मारे गये थे तथा सात सौ लोग घायल हो गये थे.मुम्बई में आतंकी हमले के सारे आरोपी में से सिर्फ एक अब्दुल कसाब बचा उसे फांसी दे दी गई. युवा पीढ़ी को अब तक की कई घटनाओं के बारे में नहीं मालूम. सरकारी जांच प्रक्रिया चींटी की रफ्तार से क्यों चलती है? असल में आज के हालात में जरूरत त्वरित न्याय देने की है यह काम सरकार के प्रयास के बगैर नहीं हो सकता. तत्काल कोर्ट में चालान पेश हो, मुकदमें लड़े और सजा भी मुलजिम को तत्काल मिले ताकि दूसरे ऐसा करने वालो को भी यह संदेश जाये.  

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