और कितने लोगो की बलि लेगा सरकार का डा. आम्बेडकर अस्पताल?



चरोदा की रहने वाली 75 वर्षीय खोरबाहरिन बाई को रायपुर के डीके अस्पताल उर्फ मेकाहारा उर्फ डा. आंबेडकर अस्पताल में भर्ती करने लाया गया था, देर रात हायपरटेंशन का इलाज कराने उसके परिवारजन बड़ी उम्मीदों के साथ लेकर आये थे लेकिन महिला ने इलाज के अभाव में बरामदे में दम तोड़ दिया चूंकि यहां के मेडीसिन विभाग ने यह कहते हुए भर्ती करने से मना कर दिया कि भर्ती के लायक नहीं है.इसके बाद महिला व उसका पति दिनभर अस्पताल में भटकते रहे,रात 9 बजे के आसपास किचन के सामने बरामदे में महिला गश खाकर गिर गई और मौके पर ही मौत हो गई. पहला सवाल यह कि यह अस्पताल किसके लिये बना है? क्यों यहां  मरीजों की उपेक्षा की जाती है? बार बार यहां होने वाली अतिगंभीर घटनाओं को सरकार क्यों नजरअंदाज करती है? पूरे छत्तीसगढ़ और आसपास के राज्यों से आने वाले मरीज इस अस्पताल में बहुत उम्मीदों के साथ पहुंचते हैं कि यहां कम पैसे में उनका इलाज हो जायेगा लेकिन यहां पहुंचने पर न केवल उनकी सारी उम्मीदों पर पानी फिर जाता है बल्कि वे यहां से जाते समय भारी जख्म लेकर जाते हैं. डीके या मेकाहारा उर्फ मेडिकल कालेज हास्पिटल रायपुर अथवा डा. आम्बेडकर छत्तीसगढ़ का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल है इसके प्रतिद्विन्दी के रूप में सेंट्रल गवर्नमेंट ने अपना अस्पताल एम्स टाटीेबंद में खडा कर दिया है जो भी कुछ- कु छ इसी अस्पताल के नक्शेंकदम पर चल रहा है. यहां की अव्यवस्था और रोगियों की भारी तादात को कम करने की दिशा में कोई खास कदम इस अस्पताल के प्रशासन ने अब तक नहीं उठाया है इसी का परिणाम है कि आम्बेड़कर अस्पताल में मरीजो के पहुंचने की बाध्यता हो गई है. सरकार की लापरवाही का नतीजा है कि एक के बाद एक बड़े बड़े हादसे होने के बाद भी डा.आम्बेड़कर अस्पताल के प्रबधंन में किसी प्रकार का कोई परिवर्तन वर्षो से नहीं हुआ है. हादसे होने के बाद भी यहां प्रबधंन के लोग अपनी पहुंच और चापलूसी के कारण टिके हुए हैं. इस अस्पताल के कई जिम्मेदार अधिकारी चिकित्सक सरकार से नजर बचाकर प्रायवेट अस्पताल में अपनी आमद देकर अलग कमाई करते है. रोगियों को अस्पताल से ही अपने इन ठिकानों पर पहुंचने की हिदायत भी दी जाती है. डा.आम्बेडकर अस्पताल में हादसों की एक लम्बी फेहरिस्त है. यह सब इस अस्पताल को चलाने वाली सरकार के आला अफसरों व मंत्रालय सभी की जानकारी में हैं किन्तु किस तरह नजर अंदाज किया जाता है यह इसी से पता चलता है कि यहां हुए अधिकांश हादसों में किसी प्रकार की कार्रवाही बड़े अफसरों पर नहीं हुई मसलन एम आरआई के लिये ले जा रहे एक मरीज के ऊपर मशीन गिर गई,उसे दिल्ली रिफर किया गया, दिल्ली में पन्द्रह दिन तक उपचार चला लेकिन रायपुर के इस अस्पताल में मौजूद किसी बड़े अधिकारी को इस बड़ी दुर्घटना के लिए किसी प्रकार जिम्मेदार नहीं ठहराया गया न ही करोड़ों रूपये के मशीन के ध्वस्त होने पर उसके लिये किसी पर एक्शन लिया गया. सरकारी  संपत्ति को नुकसान करने वाला यह शायद विश्व का पहला अस्पताल बन गया है.अस्पताल के जच्चाखाने से कोई भी दूसरे का बच्चा चोरी कर ले जा सकता है सुरक्षा के सारे उपाय यहां ध्वस्त है. रात में डाक्टर सो जाते हैं मरीज तड़पता रहता है किसी की कोई सुनवाई नहीं होती.आये दिन किसी न किसी मुद्देे को लेकर होने वाली हड़ताल ने इस अस्पताल की छवि को बिगाडक र रखा है-हड़ताल से होने वाली तकलीफो का खामियाजा मरीजों व उनके परिवार को भुगतना पड़ता है.अस्पताल में सरकार दवाई सप्लाई की जाती है ताकि गरीब मरीजों के परविारों पर बोझ़ न पड़े लेकिन दवाइयां अस्पताल में मौजूद रहने के बाद भी उन्हें दवाई बाहर से मंगवाने मजबूर किया जाता है. मरीजों को परोसा जाने वाला खाना बस नाम का है गुणवत्ता की कोई गारंटी नहीं, इस व्यवस्था को देखने वाला भी कोई नहीं.मरीज परिवार खुद अपने रिश्तेदारों पर लाद कर ले जाते हैं चूंकि यहां स्टेचर का इंतजाम नहीं के बराबर है. स्टेचर  मौजूद भी हो तो यह वार्डबाय की दवा पर निर्भर रहता है. चिकित्सक भगवान की तरह अस्पताल में प्रकट होते हैं वैसे उनके आने का कोई निश्चित समय नहीं है.कहने को अस्पताल पहुंचते ही सामने लिखा है मैं आई हेल्प यू लिखा है लेकिन हेल्प करने वाले अपनी बातो में मस्त रहते हैं-क्या ऐसे हालात में भी सरकार इस अस्पताल के प्रबधंन में आमूलचूल परिवर्तन नहीं करना चाहेगी?




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