सेंट्रल कर्मचारियों की तो नैया पार हो गई लेकिन बाकी का क्या?
सेंट्रल कर्मचारियों की तो नैया पार हो गई लेकिन बाकी का क्या?
सेंट्रल कैबिनेट ने बुधवार को केन्द्र सरकार के कर्मचारियों के लिये सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को मंजूरी दे दी. बढ़ा हुआ वेतन 1 जनवरी 2016 से लागू होगा,इस वृद्धि के ऐलान के बाद 50 लाख सरकारी कर्मचारी और 58 लाख पेंशनधारियों के हाथों में ज्यादा पैसा आएगा, इस बढौत्तरी से सरकारी खजाने पर करीब एक लाख करोड़ से ज्यादा का भार पड़ेगा. इस वेतन वृद्धि से रीयल एस्टेट सेक्टर और ऑटोमोबाइल सेक्टर में उछाल आएगा. आरबीआई ने अप्रैल में कहा था कि अगर आयोग की रिपोर्ट को ऐसे ही लागू किया गया तो 1.5 फीसदी महंगाई बढ़ जाएगी याने आम वर्ग पर बोझ और बढ़ जायेगा. इससे पहले सातवें वेतन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में सरकारी कर्माचारियों की बेसिक सैलरी में 14.27 फीसदी बढ़ोत्तरी की सिफारिश की थी, साथ ही आयोग ने एंट्री लेवल सैलरी 7,000 रुपये प्रति महीने से बढाकर 18,000 रुपये प्रति महीने करने का प्रस्ताव सरकार के सामने रखा है. सरकारी कर्मचारियों को 6 महीने का एरियर भी मिलेगा.पेंशन बोगियो को इससे भारी फायदा होगा. सेंट्रल के कर्मचारी भाग्यशाली है कि उनके वेतन भत्तो का ख्याल रखने के लिये के न्द्र में बैठी सरकार है लेकिन उन लाखों बेरोजगारों व अन्य संगठित मजदूरो तथा डेलीवेजेस पर काम करने वालों का क्या होगा जो भटक रहे हैं तथा जिनके वेतन में बढौत्तरी करने के बारे में पूछने वाला कोई माई बाप नहीं है. सरकार को उम्मीद है कि उसके कर्मचारियों की वेतन वृद्वि का लाभ उन्हें उन्हीं के पैसे से वापस मिलेगा अर्थात वेतन बढऩे के बाद उनसे इंकम टैक्स के रूप मे और ज्यादा पैसा वसूला जायेगा. कर्मचारी बहुत पैसा मकान खरीदने और आटोमोबाइल में लगायेंगे याने मंहगी कारे खरीदेंगे. इससे सरकार को लाभ ही होगा.सातवें वेतन आयोग की सिफारिशेां को लागू करने से जहां बहुत से कर्मचारी खुश हैं तो कई नाराज भी रेलवे कर्मचारियों ने तो वेतन वृद्वि की सिफारिश में उनकी मनमर्जी नहीं चलने के कारण हड़ताल पर जाने का ऐलान तक कर दिया है. कर्मचारियों का कहना है कि उन्होंने प्रारंभिंक सेलरी अटठारह हजार रूपये से बढ़ाकर छब्बीस हजार रूपये करने की मांग की थी लेकिन उसे स्वीकार नहीं किया गया. सेन्ट्रल कर्मचारियों के वेतन में वृद्वि के बाद अब राज्यों से भी यह मांग उठने लगेगी कि उन्हेें भी सातवें वेतन आयोग के तहत वेतन का भुगतान किया जाये याने सरकार ने एक तरफ आयोग की सिफारिशों को तुरन्त लागू कर कर्मचारियों को खुश किया तो दूसरी तरफ एक नई समस्या को भी मोल ले लिया.सरकार ने एक तरफ कर्मचारियों को वेतन के मामले में खुश करने की कोशिश की है लेकिन परफोरमेंस और टारगेट को लेकर अब कर्मचारियों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है.कर्मचारियों को यह पहले ही कह दिया गया है कि उन्हें अब अपना परफोरमेन्स और एफीशयन्सी दिखाना होगा साथ ही अपने दिये लक्ष्य या टारगेट को भी पूरा करना होगा वरना उन्हें नौकरी छोड़कर घर बैठना पड़ेगा-कहने का तात्पर्य अच्छे दिनों का सपना है तो दूसरी तरफ खाई भी है. रेलवे की तरफ डिफें स भी खुश नहीं है जबकि अन्य सुरक्षा बलों में भी वेतन विभिन्नता को लेकर नाराजी है.सरकारी कर्मचारियों के वेतन में बढौत्तरी के बाद अब नेताओं की बारी है-यह तो जल्द हो जाता लेकिन पीएम के विरोध के चलते यह रूक गया किन्तु सेलरी बढ़ाने की मांग करने वाले माननीय चुप नहीं बैठने वाले. देश में वेतन विसंगती वर्षो से बनी हुई है.सेंट्रल स्टेट व प्रायवेट में एक ही तरह की नौकरी करने वालों के वेतन व भत्तों में काफी विभिन्नता है यही नहीं सुविधाओं में भी काफी फरक है. कुछ ऐसा भी होना चाहिये कि सार्वजनिक क्षेत्र व प्रायवेट क्षेत्र में एक तरह का काम करने वाला भी उतना ही वेतन, भत्ता प्रोवीडेंट फंड,ग्रेच्युटी, पेंशन, बीमा छुटटी आदि प्राप्त कर सके जितना दूसरे कर्मचारी प्राप्त करते हैं.नौकरशाहों का एक बड़ा हिस्सा आठ घंटे भी मुश्किल से काम करता है. पुलिस से लेकर कई महकमे के लोग 14-15 घंटे काम करते हैं.सरकार से बाहर के लोग सरकार की साइज़ को लेकर बहुत चिन्तित रहते हैं, वे इतना ही भारी बोझ हैं तो उनको क्यों नहीं हटा दिया जाता? वेतन बढौत्तरी पर सवाल यह भी उठ रहा है कि तमाम सरकारी विभागों में लोग ठेके पर रखे जा रहे हैं,ठेके के टीचर तमाम राज्यों में लाठी खा रहे हैं. क्या इनका भी वेतन बढ़ रहा है...? कर्मचारियों का विभाजन आज देश में हो चुका है. सरकारी सेक्टर,सार्वजनिक सेक्टर, प्रायवेट के रूप में कर्मचारी बंट चुके हैं. सरकारी सेक्टर का कर्मचारी शहनशाह है,ज्यादा पैसे पाता है, गाडिय़ां बंगले सब है लेकिन प्राइवेट सेक्टर में किसी चपरासी, बाबू या नर्स को जो मिलता है, उससे कई गुना ज़्यादा सरकार अपने चपरासी,ड्र्रायवर,बाबू नर्स को दे रही है. प्राइवेट वालों की नौकरी की शर्ते भी दमतोडृ है. उन्हें क्यों कम वेतन दिया जा रहा है? उनके काम का समय क्यों तय नहीं है उन्हें पीएफ , पेश्ंान मंहगाई भत्ता जैसी सुविधांए ैक्यों नहीं दी जा रही?
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