जंगली जानवरों को लेकर दो मंत्रालयों में जंग...आखिर क्या है माजरा?



क्या जंगली जानवर वास्तव में आबादी के लिये खतरे बनते जा रहे हैं? केन्द्र में दो मंत्रालयों के बीच इस मुद्दे को लेकर हो रही टकराहट से तो कुछ ऐसा ही आभास होता है लेकिन इन कारणों पर भी विचार किया जाना चाहिये कि जंगल में रहने वाले जानवर गांव व शहर में रहने वालों के लिये क्यों मुसीबत बन रहे हैं? हकीकत हम जो समझते हैं वह यही है कि औद्योगीकरण, आधुनिकीकरण  और विकास के नाम  पर्यावरण को नष्ट कर तेजी से कांक्रीट के जंगलों का विकास कर रहे हैं. क्या यह भी एक कारण नहीं हो सकता? जंगल में कुछ बचा ही नहीं है कि जानवर वहां चैन से रह सके. अवैध शिकार के अलावा जंगल में आग,पानी की समस्या, इंसनी शोर और अन्य कई ऐसे कारणों से जंगली जानवरों का गांव व शहरों की तरफ बढऩा जारी है. आजादी के कुछ वर्षो तक देश में जंगली जानवरो के शिकार पर रोक -टोक नहीं थी .इसके बाद के वर्षो ने जंगली जानवरों के शिकार पर पूर्ण पाबंन्दी लगा दी - यहां तक कि हिंसक जानवरों के साथ- साथ उन छोटे मोटे जानवरों को भी मारने पर पाबन्दी लगाई गई जो इंसानों से भी घुले मिले हैं और जगलों से भागकर कभी भी शहर की तरफ चले आते हैं. शिकार पर पाबंन्धी  इसलिये लगाई गई चूंकि कम होते जानवरों की रक्षा की जा सके. यह कदम उचित भी था. पर्यावरण को बनाये रखने के लिये जंगल-व जगंली जानवर दोनों की आवश्यकता है लेकिन अगर जानवर जनता को नुकसान पहुंचाये तो सरकार को तो उसपर संज्ञान लेना ही पड़ेगा. इस कड़ी में कई जगह ऐसी  स्थिति निर्मित हो गई हैं जहां जंगली जानवरों के कारण लोगों के जानमाल का नुकसान हो रहा है तथा फसल को भी नुकसान पहुंचा हैं ऐसे में केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री जावडेकर ने पिछले साल जून महीनें कहा था कि  किसानों और स्थानीय आबादी को नुकसान पहुंचाने वालीे नीलगाय और जंगली सुअर जैसे जानवरों को मारने के लिए कुछ वक्त तक की इजाजत दी जाएगी.लेकिन इस मुद्दे पर केन्द्र के दो मंत्री जावडेकर और बाल विकास मंत्री मेनका गंाधी आमने सामने आ गये. मेनका गांधी कई सालों से जानवरों के संरक्षण में लगी है उनका संबन्ध एनीमल राइटस एक्टीविस्ट से भी है अत: उनका इस मामले को लेकर गर्म हाना स्वाभाविक है.मेनका गांधी को लगता है कि यह केन्द्रीय पर्यावरण मंत्रालय की जानवरों को मारने की हवस है....उनका यह भी दावा है कि  'एनवायरन्मेंट मिनिस्ट्री हर स्टेट को पत्र लिखकर कह रही है कि आप बताओ किसको मारना है, हम इजाजत दे देंगे, बंगाल में कह दिया कि हाथी को मारो,हिमाचल मेें कह गये कि बंदरों को मारो, गोवा में कह दिया कि मोर को मारो. चंद्रपुर में जहां इतना अलर्ट है वहां  जंगली सुअर मार रहे हैं. दूसरी ओर वाइल्डलाइफ डिपार्टमेंट कहता है कि हम नहीं मारना चाहते, यह करने के लिये आप हमारे पीछे मत पडियें. यह पहली बार हुआ है कि मिनिस्ट्री जंगली जानवरों को मारने की इजाजत दे रही है।Óजावडेकर के तर्क में भी दम लगता है कि जानवरों की संख्या का 'वैज्ञानिक प्रबंधनÓ होता है और 'खूंखारÓ घोषित किए जानवरों को मारने की इजाजत विशेष इलाकों और समयावधि के लिए होती है, 'मौजूदा कानून के तहत जब किसान बहुत अधिक समस्याओं का सामना करते हैं और उनकी फसलें पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो जाती हैं तब राज्य सरकार प्रस्ताव भेजती है तभी मिनिस्ट्री जानवरों को मारने की इजाजत देती हैं. यह अनुमति राज्य के एक विशेष इलाके और समयावधि के लिये होती हैं।Ó हिमाचल में उत्पाती बंदर को नष्ट करने का आदेश है. केंद्र सरकार ने एक नोटिफिकेशन के जरिये  हिमाचल प्रदेश में बंदरों को छह महीने के लिए हिंसक जानवर घोषित किया यह कदम केंद्र को राज्य के अधिकारियों से कई बार शिकायतें मिलने के बाद उठाया गया. बंदरों की वजह से राज्य के टूरिज्म पर भी असर पड़ रहा था.अब स्थिति यह है कि हिमाचल में बंदर नुकसान पहुंचा रहे हैं तो छत्तीसगढ़,उड़ीसा, पश्चिम बंगाल में हाथियों का आतंक है. छत्तीसगढ़ में तो भालू और सांपों का भी  हमला बदस्तूर जारी है.सरकार ने हाथियों को मारने की परमीशन नहीं दी है साथ ही ऐसा भी कुछ नहीं किया गया है कि हाथियों व भालू से लोग अपने जानमाल की रक्षा कर सके. 

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