जंगली जानवर फसल का नुकसान करेंगे तो मिलेगा मुआवजा!



छत्तीसगढ़ के कोरबा में हाथियों से कुचलकर अब तक पांच लोग मारे गये हैं-कल ही एक वृद्वा को जो महुआ बीनने गई थी हाथी ने कुचलकर मार डाला यह सिलसिला पूरे छत्तीसगढ़ में लगातार जारी है वहीं संपत्ति को नुकसान का तो कोई आंकलन ही नहीं है.असल में हाथियों की  चपेट में वे लोग आते हैं जो अन्न उत्पादन में लगे हैं उनके खेतों को उजाडऩे पहुंचे जानवरों से वे भिड़ जाते हैं तथा उसी में उनकी मौत होती है. किसान को अन्न उत्पादन से लेकर उसे बेचने तक हर कदम पर परेशानियों का सामना करना पड़ता है. अच्छी भली फसल को देखते देखते जहां मवेशी चट कर जाते हैं तो दूसरी ओर जंगली जानवर भी किसानों के दुश्मन बन जाते हैं. हाथी  व अन्य जंगली जानवर जिस तरह फसलों की बरबादी करते हैं वह असहनीय है. जगली जानवरों से किसानों को बचाने के लिये सरकार ने कुछ कदम उठाये हैं उसके तहत उन किसानों को शीघ्र राहत मिल सकती है जिनकी फसल जंगली हाथियों द्वारा रौंदकर खराब कर दी जाती है या फिर नीलगाय या अन्य किसी जंगली जीव बर्बाद कर देते है। ऐसी दशा में किसान फसल के नुकसान की भरपाई सरकार से हासिल कर पाएंगे लेकिन व्यक्तिगत रूप से हाथियों के हमले से बचाने का कोई प्रयास अब तक नहीं किया गया है बहरहाल सरकार की नई पहल पर्यावरण मंत्रालय की ओर से हुई  हैं. सुविधा को अमल में लाने के लिए पर्यावरण मंत्रालय ने इसी महीने एक औपचारिक प्रस्ताव कृषि मंत्रालय को भेजा है. पर्यावरण मंत्रालय की ओर से कृषि मंत्रालय को भेजे गए इस प्रस्ताव में कहा गया है कि जल्द से जल्द इस प्रावधान को भी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अधीन शामिल किया जाए ताकि किसानों को वन जीवों के कारण होने वाली फसल नुकसान की भरपाई भी हासिल हो सके.प्रस्ताव में यह कहा गया है कि किसानों को राहत तय समय के भीतर मुहैया कराई जानी चाहिए.आज की स्थिति में किसानों की फसल को रौंदने में मौसम के साथ साथ मवेशी व जंगली जानवर किस प्रकार भूमिका अदा करते हैं यह किसी से छिपा नहीं है इसी कड़ी में सरकार का यह कदम अब किसानों को कितना फायदा पहुंचायेगा यह इस प्रस्ताव के नियम बन जाने के बाद भी पता चलेगा. पर्यावरण मंत्रालय का वन्यजीव प्रभाग भी प्रधानमंत्री फसल बीमा स्कीम में शामिल हो सकता है. वहीं, पर्यावरण मंत्रालय के  प्रस्ताव पर कृषि मंत्रालय का रुख सकारात्मक दिखाई दे रहा है.,वह इस प्रस्ताव के बाद फसल बीमा की मौजूदा गाइडलाइनों में बदलाव की तैयारी कर रहा है. नए नियम और मानकों को तय करने के लिए बीमा कंपनियां क्या कहती है यह देखना भी दिलचस्प होगा. पर्यावरण मंत्रालय मानता है कि लगातार जंगली जमीनों के लैंड-यूज बदले जाने से वन जीवों और आबादी के बीच संघर्ष में बढ़ोतरी हुई है खासतौर से हाथियों के लिए जंगलों में मौजूद करीब 70 फीसदी से ज्यादा रास्ते संरक्षित इलाके से बाहर आते हैं इसकी वजह से हाथी न सिर्फ रास्ता बदलकर आबादी की ओर रूख कर जाते हैं बल्कि फसलों को बड़े पैमाने पर नुकसान भी पहुंचाते हैं. यही वजह है कि कई बार आबादी और हाथियों के बीच संघर्ष भी होता है। अनुमान के मुताबिक इस बढ़ते संघर्ष के कारण हर साल 400 लोगों और 100 हाथियों की मौत हो जाती है. यह नुकसान दोनों तरफ है, वहीं जंगली जीवों के कारण फसलों का नुकसान अनुमानित 200 से 400 करोड़ रुपये तक होता है. यह कोई कम रकम नहीं है. हमें जंगली जानवरों को भी बचाना है और अपनी आबादी तथा फसल को भी ऐसे में प्रयास यही होना चाहिये कि सरकार ऐसी कोई योजना को सामने लाये जो बिना किसी डेमेज के कंट्रोल हो जाये. पर्यावरण मंत्रालय की जो पहल है वह फौरी तौर पर जो दिखाई देती है वह सिर्फ किसानों की फसल को किसी प्रकार बचाकर उसेे मदद पहुंंचाने की है लेकिन  इसके साथ ही  जंगली जानवरों के आबादी वाले क्षेत्रों में न पहुंचं इसके लिये भी कोर्ई प्रयास तत्काल उठाने की जरूरत है देश के कई भागों में जंगल से आने वाले हाथी एक बड़ी समस्या है विशेषकर पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ और उड़ीसा में है सरकार को कोई ठोस योजना की पहल वर्तमान में लिये जा रहे प्रस्ताव के साथ करना चाहिये।

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