कोई बड़़ा अपराधी तो कोईछोटा, किसी को ऊंची सजा के साथ ऊंवी सुविधा भी.क्यों है ऐसा?
कोई बड़़ा अपराधी तो कोईछोटा,
किसी को ऊंची सजा के साथ
ऊंवी सुविधा भी.क्यों है ऐसा?
अपराध घटित हुआ सन् 2002 में!
फैसला आया सन् 2015 में!
फैसले की घोषणा हुई सवेरे 11.15 पर!
सजा सुनाई गई शाम 1.15 पर !
अभियोजन पक्ष जमानत लेने हाई कोर्ट की तरफ दौड़ा दोपहर बाद 3 बजकर पन्द्रह मिनिट पर!
जमानत पर सुनवाई हुई शाम चार बजे!
जमानत की घोषणा हुई शाम 4.50 बजे!
कौन कहता है भारतीय न्यायव्यवस्था काबिल नहीं है? लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या सामान्य व्यक्ति इस ढंग का न्याय प्राप्त कर सकता है? न्यायपालिका का पूर्ण सम्मान करते हुए हम अपनी प्रजातांत्रिक व्यवस्था में कुछ सवाल उठाना चाहते हैं कि दोहरी व्यवस्था को क्यों कायम किये हुए हैं?क्या आज हमारी व्यवस्था-सामान्य व्यक्ति और प्रभावशाली, धनवान, बाहुबलियो के बीच अलग अलग बट नहीं गई है? कानून में विभिन्नता क्यों हैं? एक सामान्य व्यक्ति अगर किसी ऐसे मामले में फंसता है तो उसका फैसला आने में देरी नहीं होती उसे तत्काल काल कोठरी के पीछे भेज दिया जाता किन्तु बड़े व पैसे लोग इस स्वतंत्र भारत में अपने प्रभाव का भरूपूर उपयोग करने लगे हैं.संविधान प्रदत्त समाजवाद का जहां नामोनिशान मिट गया है वहीं अमीर अमीर से और अमीर होने के पूरे रिकार्ड तोड़ चुका है. दूसरी तरफ मध्यम और गरीब वर्ग है जिसके तन से कपड़े तक छिनते जा रहे हैं. कानून का कुछ नया रूप एक के बाद एक हमारे सामने आता जा रहा हैं.कोई एक प्रभावशाली व्यक्ति भारतीय दंड विधान की धारा 302 जैसा जघन्य कृत्य करता है तो माननीय न्यायालय से उसे आजन्म कैद या फांसी की सजा सुनाई जाती है लेकिन वह जेल की सलाखों के पीछै जाता है तो उसे वे सारी सुविधाएं प्रदान कर दी जाती है जो किसी अन्य सामान्य कैदी को नहीं मिलती. हाल ही हुए कई निर्णय के बाद ऐसे कई मामले सामने आये हैं जिनके प्रति हर दृष्टि से नर्मी बरती गई. अदालतों से सजा पाये व्यक्ति सीधे जेल जाने की जगह अस्पतालों में भेजे गये, जेल से नियम विरूद्व परोल स्वीकृत किया गया. छुटटी दी गई. यहां तक कि सजा की घोषणा के बाद उसे सीधे जेल भेजने की जगह किसी आलीशान सर्किट हाउस में पूर्ण सुविधा और सेक्युरिटी के साथ रखा गया. समझ में नहीं आता कि ऐसे लोग अपराधी हैं या सजा भुगतने के बाद भी वीआईपी या वीवीआईपी? जबकि कुछ मामले ऐसे भी आये जिसमें सीधे घर ही भेज दिया गया, यह कहते हुए कि जाओं अपने मां बाप से मिलकर उनके चरण छू आओ? अब तक सही पटरी पर एक ही व्यवस्था है जिसपर हम गर्व कर सकते हैं वह है हमारी न्यायव्यवस्था है. हमें उसपर पूर्ण भरोसा है.ईश्वर के बाद अगर धरती पर भगवान है तो वह न्यायाधीश है-यह बात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी कह चुके हैं लेकिन कुछ बाते ऐसी भी हो रही है जिसपर अब गौर करना जरूरी हो गया है।
किसी को ऊंची सजा के साथ
ऊंवी सुविधा भी.क्यों है ऐसा?
अपराध घटित हुआ सन् 2002 में!
फैसला आया सन् 2015 में!
फैसले की घोषणा हुई सवेरे 11.15 पर!
सजा सुनाई गई शाम 1.15 पर !
अभियोजन पक्ष जमानत लेने हाई कोर्ट की तरफ दौड़ा दोपहर बाद 3 बजकर पन्द्रह मिनिट पर!
जमानत पर सुनवाई हुई शाम चार बजे!
जमानत की घोषणा हुई शाम 4.50 बजे!
कौन कहता है भारतीय न्यायव्यवस्था काबिल नहीं है? लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या सामान्य व्यक्ति इस ढंग का न्याय प्राप्त कर सकता है? न्यायपालिका का पूर्ण सम्मान करते हुए हम अपनी प्रजातांत्रिक व्यवस्था में कुछ सवाल उठाना चाहते हैं कि दोहरी व्यवस्था को क्यों कायम किये हुए हैं?क्या आज हमारी व्यवस्था-सामान्य व्यक्ति और प्रभावशाली, धनवान, बाहुबलियो के बीच अलग अलग बट नहीं गई है? कानून में विभिन्नता क्यों हैं? एक सामान्य व्यक्ति अगर किसी ऐसे मामले में फंसता है तो उसका फैसला आने में देरी नहीं होती उसे तत्काल काल कोठरी के पीछे भेज दिया जाता किन्तु बड़े व पैसे लोग इस स्वतंत्र भारत में अपने प्रभाव का भरूपूर उपयोग करने लगे हैं.संविधान प्रदत्त समाजवाद का जहां नामोनिशान मिट गया है वहीं अमीर अमीर से और अमीर होने के पूरे रिकार्ड तोड़ चुका है. दूसरी तरफ मध्यम और गरीब वर्ग है जिसके तन से कपड़े तक छिनते जा रहे हैं. कानून का कुछ नया रूप एक के बाद एक हमारे सामने आता जा रहा हैं.कोई एक प्रभावशाली व्यक्ति भारतीय दंड विधान की धारा 302 जैसा जघन्य कृत्य करता है तो माननीय न्यायालय से उसे आजन्म कैद या फांसी की सजा सुनाई जाती है लेकिन वह जेल की सलाखों के पीछै जाता है तो उसे वे सारी सुविधाएं प्रदान कर दी जाती है जो किसी अन्य सामान्य कैदी को नहीं मिलती. हाल ही हुए कई निर्णय के बाद ऐसे कई मामले सामने आये हैं जिनके प्रति हर दृष्टि से नर्मी बरती गई. अदालतों से सजा पाये व्यक्ति सीधे जेल जाने की जगह अस्पतालों में भेजे गये, जेल से नियम विरूद्व परोल स्वीकृत किया गया. छुटटी दी गई. यहां तक कि सजा की घोषणा के बाद उसे सीधे जेल भेजने की जगह किसी आलीशान सर्किट हाउस में पूर्ण सुविधा और सेक्युरिटी के साथ रखा गया. समझ में नहीं आता कि ऐसे लोग अपराधी हैं या सजा भुगतने के बाद भी वीआईपी या वीवीआईपी? जबकि कुछ मामले ऐसे भी आये जिसमें सीधे घर ही भेज दिया गया, यह कहते हुए कि जाओं अपने मां बाप से मिलकर उनके चरण छू आओ? अब तक सही पटरी पर एक ही व्यवस्था है जिसपर हम गर्व कर सकते हैं वह है हमारी न्यायव्यवस्था है. हमें उसपर पूर्ण भरोसा है.ईश्वर के बाद अगर धरती पर भगवान है तो वह न्यायाधीश है-यह बात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी कह चुके हैं लेकिन कुछ बाते ऐसी भी हो रही है जिसपर अब गौर करना जरूरी हो गया है।
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें