ऐसी है हमारी शिक्षा नीति-प्रथम वर्ग, इंजीनियर,डाक्टर,द्वितीय वर्ग प्रशासक, तृतीय वर्ग राजनीति और चौथा-पांचवा....?


ऐसी है हमारी शिक्षा नीति-प्रथम वर्ग,
इंजीनियर,डाक्टर,द्वितीय वर्ग प्रशासक,
तृतीय वर्ग राजनीति और चौथा-पांचवा....?


''तेरे पिताजी क्या करते हेैं? मैरे पिताजी तो डाक्टर हैं और तेरे-मैरे पिता तो सरकारी कार्यालय में बाबू हैं....तो तूू बड़ा होकर बाबू बनेगा और मैं डाक्टर.ÓÓ-बच्चों के बीच स्कूली शिक्षा के दौरान अक्सर इस तरह की बात होती रहती है जिसमें पढ़ते पढ़ते ही भविष्य को तय कर दिया जाता है कि कौन बड़ा होकर क्या बनेगा और कौन किस व्यवसाय में लगेगा. सड़सठ साल की शिक्षा नीति में आज तक कोई बदलाव नहीं आ रहा है. कहीं यह प्रयास नहीं किया गया कि जो नीचे है या मध्यम स्तर पर है उसे ऐसा बनाया जाये कि समानता स्थापित हो सके.अगर रिक्शा चलाने वाले का लड़का या किसी बर्तन मांजने वाली बाई का बेटा  अथवा बेटी भी अच्छे नम्बरों  से पास हो तो उसे भी ऐसी परिस्थिति मिलनी चाहिये कि वह आईएएस आईपीएस बनजाये किन्तु ऐसे बच्चों के सामने सबसे बड़ी बाधा उनकी आर्थिक स्थिति आती है जिसके चलते पूरी योग्यता धरे रह जाती हे ओर वे या तो किसी संस्थान  में बाबूगिरी करते नजर आते  है या फिर शिक्षक बन किसी स्कूल में छड़ी लेकर खड़े रहने बाध्य हो जाते हैं-बहरहाल यह सब हमारी शिक्षा नीति का दोष है जो पढाई से ज्यादा आरक्षण पर निर्भर है. कभी कोई प्रयोग किया जाता है तो कभी कोई.हाल ही सोशल  मीड़िया में अब तक बनी सरकारों की शिक्षा नीति की खिल्ली उड़ाते एजुकेशन इंडिया शीर्षक से एक लिखित कार्टून वायरल हुआ है जिसमें एक दो तीन चार पांच नम्बर से शिक्षा नीति का यह कहते हुए मखौल  उड़ाया है कि अधिकांश -प्रथम वर्ग छात्र तकनीकी सीट प्राप्त कर लेते हैं, कुछ को डाक्टरी मिल जाती है तो कुछ इंजीनियर बन जाते हैं. दूसरा दर्जे में पास करने वाला एमबीए बनकर प्रशासक बन जाता है तथा प्रथम दर्जे वाले के ऊपर  नियंत्रण रखता है जबकि तीसरे दर्जे में उत्तीर्ण करने वाला राजनीति में प्रवेश कर जाता है तथा मंत्री बनकर प्रथम व द्वितीय दोनो श्रेणी में उत्तीर्ण करने वालों पर नियंत्रण रखता है...अभी भी शिक्षा के इस खेल का अंत नहीं होता और परीक्षाओं में बराबर फैल होने वालो का एक वर्ग भी तो है जिसमें से बहुत से चोरी सीनाजोरी गुण्डागर्दी अंडरं वल्ड में शरीक होकर सभी वर्ग पर नियंत्रण रख हीरो बन जाता है.इतना ही नहीं ऐसे लोग जिन्होंने  किसी स्कूलं में कभी उपस्थिति नहीं दी वे स्वामी और गुरू कहलाने लगते है और पूरा वर्ग उनकी  तरफ भागने लगता है. वास्तव में दिलचस्प है. क्या ऐसा ही कुछ नहीं है आज हमारी शिक्षा व्यवस्था? सभी  वर्ग को सोचने समझने व कुछ करने की जरूरत है जिससे हमारी आने वाली पीड़ी का कोई हिस्सा इस वर्ग भेद के जाल में फंस न जाये.

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