'मृगतृष्णा बन गई मंहगाई-हम पागलों की तरह भाग रहे हैं उसके पीछे...

रायपुर दिनांक 20 नवंबर 2019
'मृगतृष्णा बन गई मंहगाई-हम पागलों
की तरह भाग रहे हैं उसके पीछे...
सरकार के आंकड़े दावे करने लगे हैं कि महंगाई कम होने लगी है। क्या यह आंकड़े हकीकत को बयान कर रहे हैं? जब तक आम आदमी को रोटी, कपड़ा और मकान तीनों सही या उनकी आमदनी की पहुंच के आधार पर उपलब्ध न होने लगे, तब तक कैसे कह सकते हैं कि मंहगाई कम हो रही है? सरकार अभी जनता से मार्च तक और इंतजार करने को कह रही है, ऐसे कितने ही मार्च निकल गये...मंहगाई यूं ही बढ़ती चली गई। ऐसे जैसे कोई मृगतृण्णा हो, जिसके पीछे हम पागलों की तरह भागते ही चले जा रहे हैं। इस सप्ताह बुधवार को कहा गया कि प्याज के मूल्य तेजी से बढ़ रहे हैं। गुरुवार को खबर आई कि गेंहू की कीमत में ग्यारह प्रतिशत से अधिक की बढौत्तरी हुई। इधर सरकारी आंकडों ने गुरुवार को ही दावा किया है कि -ज्यादातर खाद्य वस्तुओं के दाम में नरमी से 6 नवंबर को समाप्त सप्ताह में मुद्रास्फीति की दर दो प्रतिशत घटकर 10.3 प्रतिशत रह गई। इसके साथ ही सकल मुद्रास्फीति के साल के अंत तक छह प्रतिशत के स्तर पर आने की उम्मीद बढ़ गई इससे पूर्व सप्ताह में खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति 12.3 प्रतिशत पर थी। जबकि बीते साल की समान अवधि में यह 13.99 प्रतिशत थी। यह सही है कि काफी लंबे समय के बाद खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति एक विशेष अवधि में बीते साल की समान अवधि के मुकाबले कम है, लेकिन इसके पीछे क्या हम यह कह सकते हैं कि सरकार के किसी प्रयास से यह संभव हो सका? बल्कि बात यह है कि वस्तुओं के दामों में अगर थोडी बहुत भी गिरावट आई है, तो उसके पीछे कारण यही हो सकता है कि त्यौहार का सीजन निपट गया तथा बारिश के बाद अब सर्दी के दिनों में नई फसल धीरे- धीरे बाजार में आना शुरू हो गई। इसमें सरकार ने क्या तीर मारा? जब मंहगाई सर्वाधक ऊंचे स्तर पर थी, तब सरकार ने आम लोगों को कोई राहत नहीं पहुंचाई। तो अब कौन सी जादुई छड़ी का इस्तेमाल कर दावा किया जा रहा है कि खाद्यान्न की कीमतों में कमी आ रही है। जिन वस्तुओं के दाम कथित महंगाई के दौरान बढ़ा दिया गया था। उसमें से एक भी वस्तु का दाम आज गिरा नहीं है। चाहे वह पेट्रोलियम पदार्थ हो, कपड़े हो, मकान बनाने का कच्चा माल हो या फिर खाने- पीने की वस्तुएं। सरकार अगर भाव कम हाने का दावा करती है तो वह डिब्बे बंद वस्तुओं में पुराने और नये कम दाम क्यों नहीं दर्शाने का निर्देश कंपनियों को देती। आजकल डिब्बा बंद खाद्यान्न वस्तुओं का जमाना है। सारी वस्तुएं सामान्य व्यक्ति की पहुंच से ऊंचे भाव पर चल रही है। जमाखोरों और कालाबाजारियों के गोदामों में अभी खाद्यान्न भरा पड़ा है। उसे निकालने प्रयास सरकारी स्तर पर होना चाहिये। जबकि सरकार जनहित की बात छोड़क र अपने ही मुद्दों पर उलझी हुई है। खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति में नरमी जरूर आई है, उससेे रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति को सख्त करने के उपायों के मामले में राहत ले सकता है। सख्त मौद्रिक नीति के चलते सितंबर में औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर घटकर 16 माह के निचले स्तर 4.4 प्रतिशत पर आ गई।
महाराष्ट्रध्दि में फसल बर्बाद होने के चलते प्याज की कीमतों में 0.63 प्रतिशत तेजी दर्ज की गई। जबकि प्रोटीन आधारित खाद्य वस्तुओं की कीमतों में किसी प्रकार की कमी नहीं आई है। अंडा, मीट और मछली की कीमत में 33 प्रतिशत से अधिक की बढ़ौतरी बनी हुई, वहीं दूध के दाम 25 प्रतिशत से अधिक और दालों के दाम 19.4 प्रतिशत अधिक बढ़े हुए हंै। इसके अलावा, गेहूं की कीमत में 11 प्रतिशत से अधिक की वृध्दि मध्यम वर्ग की रसोई के लिये आज भी समस्या खड़ी किये हुए है। रोज खाने और कमाने वाला अकेले खाद्य पदार्थो को नहीं देखता। उसकी रोजमर्रा की अन्य आवश्यकताएं भी हंै, उसे कैसे पूरा किया जाये? अभी शादी ब्याह का समय है-ऐसे में मध्यम वर्गीय सोने में आई थोड़ी सी राहत से कुछ सोना तो खरीद ही सकता है। सोना बीस हजार चार सौ बीस रूपये प्रति दस ग्राम तक पहुंच गया था। अब यह एक सौ अस्सी रूपये लुढ़ककर बीस हजार दो सौ बीस रूपये प्रति दस ग्राम रह गया है। आम आदमी को जीने के लिये रोटी- कपड़ा और मकान चाहिये- जब यह तीनों ही आसानी से उपलब्ध नहीं है, तो कौन सी महंगाई को कम होने की बात हम कर सकते हैं?

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