हावडा-मुम्बई मेल को समय पर चलाने सोर्स स्टेशन नहीं बदलने की जिद क्यों?
रायपुर दिनांक 15 नवबंर
हावडा-मुम्बई मेल को समय पर चलाने
सोर्स स्टेशन नहीं बदलने की जिद क्यों?
रेलवे को इस बात की जिद क्यों हैं कि वह हावड़ा-मुम्बई मेल को हावड़ा से ही चलायेगी? 28 मई 2010 को ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस को नक्सलियों द्वारा विस्फोट कर पटरी से उतारने और उसके जाकर एक मालगाड़ी से टकरा जाने के बाद से अब तक रेलवे यह तय नहीं कर पाई है, कि हावड़ा-मुम्बई मेल के समय को कैसे नियंत्रित किया जाये? हावड़ा-मुम्बई मेल के रायपुर पहुंचने का समय आज भी टाइम टेबिल पर और यहां तक कि रेलवे द्वारा जारी किये जाने वाले टिकिटों पर सुबह 9.05 लिखा हुआ है । लेकिन यह ट्रेन दुर्घटना दिन के बाद से लगातार अब तक रायपुर पहुंचती है- शाम सात, आठ या नौ बजे। पूछताछ कार्यालय से यही सूचना दी जात्री है कि आठ घंटे या दस घंटे लेट चल रही है। दुर्घटना या आंतकवादी घटना को पांच माह बीत चुके हैं और रेलवे अब तक यह तय नहीं कर पा रही है कि इस ट्रेन को समय पर यात्रियों को कैसे उपलब्ध कराया जाए। रेलवे, हावड़ा- मुम्बई मेल के विलंब का कारण 'सुरक्षा बताता है। अगर उसे इतना ही डर है तो इस ट्रेन के समय में स्थायी परिवर्तन क्यों नहंी करता या सोर्स स्टेशन क्यों नहीं बदलता? क्यों यात्रियों को सुबह नौ बजे से शाम या रात तक इंतजार करने के लिये मजबूर किया जा रहा है़? पश्चिम बंगाल, रेलमंत्री ममता बेनर्जी का गृह राज्य है। शायद यही कारण है कि रेलवे इस ट्रेन को हावड़ा से खडग़पुर-राउरकेला तक रद्द कर आगे की यात्रा पूर्व समयानुसार करने से हिचक रही है। अगर रेलवे को अब भी नक्सली हिंसा का डर है, तो उसे इस ट्रेन का सोर्स स्टेशन हावड़ा की जगह राउरकेला कर उसे आगे के लिये समयानुसार चलाना चाहिये। हम यह नहीं कहते कि सैकड़ों यात्रियों का जीवन संकट में डालकर मेल को या अन्य ट्रेनों को रात में उस रूट पर चलाये, जहां किसी प्रकार के तोडफ़ोड़ की आशंका है। रेलवे यह अच्छी तरह जानती है कि इस रूट पर यह एक स्थाई समस्या है। फिर उसने इसे हल करने का प्रयास पांच महीनों बाद भी क्यों नहीं किया ?। रेलवे की इस ढिलाई से कई यात्रियों ने इस उपयोगी ट्रेन से यात्रा करना छोड़ दिया चूंकि इसका स्टेशनों में पहुंचने का समय ऊठपटांग हो गया। अब यह बात भी लोगों को समझ में नहीं आ रही कि मुम्बई से रवाना होने वाली हावडृ़ा मैल का समय क्यों बदला गया। यह ट्रेन पहले रात आठ बजे के आसपास वीटी से छूटती थी जो अब कई महीनों से सुबह चार बजे छूट रही है। सुरक्षा के नाम पर रेलवे अपनी व्यवस्था ठीक करने में कोताही कर रही है और सैकड़ों याित्रयों को परेशानी में डाल रही है। हावड़ा मुम्बई मेल को उस समय तक राउरकला, रायगढ या बिलासपुर से चलाया जाये जब तक रेलवे इस ट्रेन की सुरक्षा का पुख्ता इतजाम न कर ले। रेलवे की कमजोरी इसी से उजागर होती है कि वह ज्ञानेश्वरी ट्रेन हादसे,जिसमें 170 लोग मारे गये थे से अब तक सिर्फ सुरक्षा का बहाना कर कोई वैक्ल्पिक व्यवस्था न करते हुए ट्रेनों को अपनी मनमर्जी से चला रही है- उसे इस बात का कोई सरोकार नहीं कि यात्रियों को कितनी परेशानी हो रही है?यह उल्लेख भी यहां किया जा सकता है कि 19 जुलाई को पश्यिम बंगाल के सैतिया में उत्तरबंगा एक्सपे्रस-वनांचल एस्सपे्रस से भिड़ गई थी तथा इस दुर्र्घटना में 63 लोग मारे गये और 165 से ज्यादा लोग घायल हुए।
हावडा-मुम्बई मेल को समय पर चलाने
सोर्स स्टेशन नहीं बदलने की जिद क्यों?
रेलवे को इस बात की जिद क्यों हैं कि वह हावड़ा-मुम्बई मेल को हावड़ा से ही चलायेगी? 28 मई 2010 को ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस को नक्सलियों द्वारा विस्फोट कर पटरी से उतारने और उसके जाकर एक मालगाड़ी से टकरा जाने के बाद से अब तक रेलवे यह तय नहीं कर पाई है, कि हावड़ा-मुम्बई मेल के समय को कैसे नियंत्रित किया जाये? हावड़ा-मुम्बई मेल के रायपुर पहुंचने का समय आज भी टाइम टेबिल पर और यहां तक कि रेलवे द्वारा जारी किये जाने वाले टिकिटों पर सुबह 9.05 लिखा हुआ है । लेकिन यह ट्रेन दुर्घटना दिन के बाद से लगातार अब तक रायपुर पहुंचती है- शाम सात, आठ या नौ बजे। पूछताछ कार्यालय से यही सूचना दी जात्री है कि आठ घंटे या दस घंटे लेट चल रही है। दुर्घटना या आंतकवादी घटना को पांच माह बीत चुके हैं और रेलवे अब तक यह तय नहीं कर पा रही है कि इस ट्रेन को समय पर यात्रियों को कैसे उपलब्ध कराया जाए। रेलवे, हावड़ा- मुम्बई मेल के विलंब का कारण 'सुरक्षा बताता है। अगर उसे इतना ही डर है तो इस ट्रेन के समय में स्थायी परिवर्तन क्यों नहंी करता या सोर्स स्टेशन क्यों नहीं बदलता? क्यों यात्रियों को सुबह नौ बजे से शाम या रात तक इंतजार करने के लिये मजबूर किया जा रहा है़? पश्चिम बंगाल, रेलमंत्री ममता बेनर्जी का गृह राज्य है। शायद यही कारण है कि रेलवे इस ट्रेन को हावड़ा से खडग़पुर-राउरकेला तक रद्द कर आगे की यात्रा पूर्व समयानुसार करने से हिचक रही है। अगर रेलवे को अब भी नक्सली हिंसा का डर है, तो उसे इस ट्रेन का सोर्स स्टेशन हावड़ा की जगह राउरकेला कर उसे आगे के लिये समयानुसार चलाना चाहिये। हम यह नहीं कहते कि सैकड़ों यात्रियों का जीवन संकट में डालकर मेल को या अन्य ट्रेनों को रात में उस रूट पर चलाये, जहां किसी प्रकार के तोडफ़ोड़ की आशंका है। रेलवे यह अच्छी तरह जानती है कि इस रूट पर यह एक स्थाई समस्या है। फिर उसने इसे हल करने का प्रयास पांच महीनों बाद भी क्यों नहीं किया ?। रेलवे की इस ढिलाई से कई यात्रियों ने इस उपयोगी ट्रेन से यात्रा करना छोड़ दिया चूंकि इसका स्टेशनों में पहुंचने का समय ऊठपटांग हो गया। अब यह बात भी लोगों को समझ में नहीं आ रही कि मुम्बई से रवाना होने वाली हावडृ़ा मैल का समय क्यों बदला गया। यह ट्रेन पहले रात आठ बजे के आसपास वीटी से छूटती थी जो अब कई महीनों से सुबह चार बजे छूट रही है। सुरक्षा के नाम पर रेलवे अपनी व्यवस्था ठीक करने में कोताही कर रही है और सैकड़ों याित्रयों को परेशानी में डाल रही है। हावड़ा मुम्बई मेल को उस समय तक राउरकला, रायगढ या बिलासपुर से चलाया जाये जब तक रेलवे इस ट्रेन की सुरक्षा का पुख्ता इतजाम न कर ले। रेलवे की कमजोरी इसी से उजागर होती है कि वह ज्ञानेश्वरी ट्रेन हादसे,जिसमें 170 लोग मारे गये थे से अब तक सिर्फ सुरक्षा का बहाना कर कोई वैक्ल्पिक व्यवस्था न करते हुए ट्रेनों को अपनी मनमर्जी से चला रही है- उसे इस बात का कोई सरोकार नहीं कि यात्रियों को कितनी परेशानी हो रही है?यह उल्लेख भी यहां किया जा सकता है कि 19 जुलाई को पश्यिम बंगाल के सैतिया में उत्तरबंगा एक्सपे्रस-वनांचल एस्सपे्रस से भिड़ गई थी तथा इस दुर्र्घटना में 63 लोग मारे गये और 165 से ज्यादा लोग घायल हुए।
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