क्या जनहित पर लिये गये निर्णयों से जनता को फायदा हो रहा?
इसमें दो मत नहीं कि नोट बंदी के बाद ही इस बात के कयास लगने शुरू हो गये थे कि इसका असर देश की अर्थव्यवस्था पर विपरीत पड़ सकता है.आरबीआई द्वारा जारी आंकड़ों के बाद यह लगभग स्पष्ट हो गया कि नोटबंदी का फायदा उतना नहीं हुआ जितनी कि सरकार ने उम्मीद की थी इसके पीछे एक कारण यह भी हो सकता है कि आधे से ज्यादा ब्लेक मनी रखने वालों ने निजी और सहकारी बैंकों के जरिये अपने कालेधन को सफेद कर लिया. यह बात सरकार के छापों के बाद स्पष्ट भी हुई है. भ्रष्टाचार और कालेधन पर किये गये नोट बंदी प्रहार ने बहुत हद तक जमा कालाधन तो बाहर निकाला लेकिन जितनी उम्मीद थी उतना नहीं निकला.वास्तविकता यही है कि बंद किये नोट का एक बड़ा हिस्सा बैंको में जमा ही नहीं हुआ. हालाकि नोटंबदी के शुरूआती दौर में कुछ कु छ फायदा जरूर देखने को मिला लेकिन धीरे-धीरे जीडीपी में जो कमी आती गई उसने अर्थव्यवस्था को बुरी तरह झकजोर कर रख दिया. सरकार ने ईधन के दाम को कंट्रोल करने के लिये दैनिक दाम तय करने की नीति अपनाई कुछ समय तक पेट्रोल-डीजल के दाम कम हुए किन्तु अचानक ही इसमें भारी तेजी आने लगी. एक्साइज ड्यूटी और वेट के भार ने आम ...