कश्मीर में अलगाववादी सोच का बढ़ता दायरा.


पिकनिक या मस्ती में होने वाली परीक्षाएं....करोडों छात्रो के भविष्य के साथ खिलवाड!

हरे-भरे मैदान या पेड़ों की छांव में अकेले बैठकर या जगह-जगह ग्रुप बनाकर पढ़ाई करना या परीक्षा देना दोनों ही अच्छी बात हैं लेकिन परीक्षा क्या ऐसी ही ली जाती है?  झारखंड में धनबाद जिले के आरएस मोर कॉलेज में शनिवार को झारखंड एकेडमिक काउंसिल की ओर से आयोजित 11 वीं की परीक्षा में तो कुछ ऐसा हो गया कि पूरे देश का ही घ्यान वर्तमान शिक्षा प्रणाली और उससे उपजे परीक्षार्थी या पास हाने वाले विद्यार्थियों की काबिलियत पर ही सवाल खड़ा कर गया. यहां 600 स्टूडेंट्स को एक साथ बैठाने की व्यवस्था की गई. शनिवार को अंग्रेजी और हिंदी की परीक्षा थी, न सिर्फ धनबाद बल्कि झारखंड के कई और जिलों में इस तरह से परीक्षा करवाने की बात कही गई है. बिहार में नकल और फर्जी टॉपर्स के मामले पर छिड़ी बहस अभी खत्म नहीं हुई है. वहां ऐसे ही कई परीक्षार्थियों को जो टापर्स बनाया गया व  गिरफतार किया गया वह देश के  सामने है.एकेडमिक करप्शन का यह ताजा उदाहरण है जिसमें  धनबाद  कॉलेज की तीन फैकल्टी (साइंस, आर्ट्स और कॉमर्स) के सभी 1664 स्टूडेंट परीक्षा देने पहुंचे थे. इतने छात्रों के एक साथ आने से बैठने की व्यवस्था चरमरा गई व परीक्षा शुरू होने की घंटी बजते ही टीचर कॉमन रूम में चले गए.नकल  ऐसी चली कि आप अकेले बैठें या चार-पांच साथियों के साथ, किसी को कोई ऐतराज नहीं था.सबने कापी  पुस्तकों और जानकार छात्रों से बातचीत कर आराम से बिना किसी रोक टोक के खुशी खुशी परीक्षा दी.आरएस मोर कॉलेज में एक साथ 600 स्टूडेंट्स को ही बैठाने की व्यवस्था है. एक ही दिन तीनों संकायों के 1664 स्टूडेंट्स की परीक्षा हुई तो बाकी स्टूडेंटंस को कहां बिठाया जाय इसका प्रबंध पहले ही प्रबंधन ने क्यों नहीं किया?यह सवाल तो उठता ही है. धनबाद के आलावा राजधानी रांची और जमशेदपुर में भी एकेडमिक काउंसिल की परीक्षा के दौरान सामूहिक नकल कराने का मामला सामने आया है.यह एक ऐसा मामला है जो संपूर्ण शिक्षा प्रणाली पर ही प्रशनचिंन्ह लगाता है. सवाल उन छात्रों का भी है जो सालभर खूब मेहनत करके पढ़ते हैं और इस व्यवस्था के चलते वे अपने कैरियर को खत्म कर देते है.यह अकेले बिहार का मामला भी नहीं है संपूर्ण देश ऐसी ही व्यवस्था की गोद में फलफूल रहा है जहां मध्यप्रदेश का व्यापम और बिहार के टापर्स जैसी घटनाएं हर साल होती है.छत्तीसगढ़ भी इससे अछूता नहीं है यहां जो घटनाएं हुई वह किसी से छिपी नहीं, चाहे वह पोराबाई का मामला हो, लोहाड़ीगुडा में प्रदेश के मंत्री केदार कश्यप की पत्नी शांतिबाई का मामला हो या 16 फरवरी 2015 को छत्तीसगढ़ में हुए प्रशन पत्र लीक कांड का मामला. इन सबसे भी आज तक परीक्षा लने वालों ने कोई सबक नहीं सीखा.  छत्तीसगढ़ में 15 फरवरी को आयोजित कर्मचारी चयन आयोग (एसएससी) की भर्ती परीक्षा का मामला आज भी लोगों की जुबान पर है जबकि मध्यप्रदेश के व्यापम की जांच प्रक्रिया सीबीआई की जांच के दायरे में है. लाखों करोडों की संख्या में बच्चे हर साल  परीक्षा देते हैं. आधे से ज्यादा हिस्सा नकल, पहुंच और पैसे के बल पर अपना उल्लू सीधा कर जाते हैं जबकि ईमानदारी ओर निष्ठा से पढ़ाई कर आगे बढऩे वाले बच्चों के साथ आगे अपने भविष्य पर तलवार ऐसे लोगों के कारण लटक जाती है. सरकारे ंमामला उजागर होने के बाद जांच समितियां बिठा देती है. सारी  प्रक्रिया में इतनी देर हो जाती है कि तब तक कोई दूसरा कांड हो जाता है.नकल व परीक्षा में गड़बडिय़ों के लिये कोचिंग क्लासेस और ऐसे ही टूयूशन करने वाले भी बहुत हद तक जिम्मेदार है जो अपने संस्थान की साख को कायम करने के लिये पेपर लीक करवाते हैं .पूर्व में जब मामला उजागर हुआ था तब दिल्ली में संचालित एक कोचिंग संस्थान भी संदेह के दायरे में आया था. यह कोचिंग एसएससी के एक पूर्व अधिकारी द्वारा संचालित किया जा रहा था.गली गली आज कोचिंग सेेंटर खुले हुए हैं जिनपर सरकार का किसी प्रकार कोई नियंत्रण नहीं हैंं-ऐसे कई हरकतों से नकल और प्रशनपत्र लीक का सारा मामला उलझा पड़ा है  जिसपर कोई ठोस कदम नहीं उठाने से करोड़ों छात्रों का भविष्य दाव पर लगा हुआ है.


कश्मीर में अलगाववादी सोच का बढ़ता दायरा...

हिजबुल मुजाहिदीन के युवा कमांडर बुरहान मुस्तफा वानी के मारे जाने के विरोध में जितनी बड़ी हिंसा हुई वह पिछले पच्चीस छब्बीस वर्षो में हुई सबसे बड़ी हिंसा और सबसे बड़ी शवयात्रा है-यह इंगित कर रही है कि कश्मीर में अलगाववादी अपनी पैठ तेजी से जमा रहे हैं और एक विषम स्थिति केन्द्र व राज्य सरकार के लिये पैदा कर रहे हैं.सह भी सोचने वाली बात हैं कि जो व्यक्ति सेना की किसी गफलत या मनमानी की वजह से नहीं मारा गया और जिसपर दस लाख रुपए का इनाम घोषित था उसके प्रति किस तरह की हमदर्दी लोग दिखा रहे हैं. यह भी महत्वपूर्ण व चिंता का विषय है कि ऐसे व्यक्ति की मौत पर हमारा पडौसी दु:ख और चिंता व्यक्त कर रहा है. इस व्यक्ति की शव यात्रा में शामिल होने हजारों लोग जुटे और सुरक्षा बलों के साथ हिंसक झड़पों पर उतर आए.सुरक्षा बलों के ठिकानों पर तोड़-फोड़ की और आग लगा दी. इस पर काबू पाने में की गई गोलीबारी में ग्यारह लोग मारे गए और सौ से ज्यादा घायल हो गए.आखिरकार अमरनाथ यात्रा रोक दी गई, पूरी घाटी में कर्फ्यू लगाना पड़ा.इस समय सरकार के समक्ष सबसे कठिन काम अमरनाथ यात्रियों को सुरक्षित अपने ठिकानों तक पहुंचाना है इसमें बहुत हद तक सफलता भी मिली है.कऱीब 23000 यात्रियों को बालटाल और पहलगाम के बेस कैम्प से जम्मू भेज दिया गया है. ये सभी यात्री दर्शन कर वापस आ रहे थे और बेस कैम्पों में फंसे हुए थे.कऱीब 2000 गाडियों में हजारों यात्रियों को रात को जवाहर टनल क्रॉस करवाया गया इस दौरान सुरक्षा बलों ने पूरे हाइवे में तैनाती की थी. इसके अलावा रामबान बेसकैम्प में फंसे करीब 1000 यात्रियों को बालटाल बेस कैम्प पहुंचाया गया.अभी तक सेना की ज्यादतियों के विरोध में घाटी के लोग ऐसी हिंसा पर उतारू होते देखे जाते रहे हैं. किसी आतंकवादी के मारे जाने पर ऐसा जनाक्रोश लंबे समय से नहीं फूटा.बुरहान की शव यात्रा में कम से कम दो अलगाववादी धड़े शामिल हुए और एक बार फिर कश्मीर की आजादी के नारे लगाए गए, पाकिस्तान का झंडा फहराया गया तो क्या इससे  यह समझा जाये कि कश्मीर एक बार फिर नए सिरे से चरमपंथी तरीके से अपने हकों के लिए लडऩे पर उतारू है! पिछले कुछ सालों में जिस तरह के जख्म कश्मीर ने आतंकवादी के नाम पर झेले थे और वहां शांति के लिए आमराय बननी शुरू हुई थी, चरमपंथ से उनका भरोसा डिगा था, क्या वह फिर से वहां वापस लौट रहा है? जम्मू-कश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने युवाओं के भटकाव और उनके मारे जाने पर अफसोस जाहिर किया है मगर सवाल है कि युवाओं के भटकाव को रोकने के लिए जो प्रयास पहले किए गए, उनका असर क्यों नहीं हो पा रहा. क्यों वे चरमपंथी गतिविधियों की तरफ आकर्षित हो रहे हैं कश्मीर में युवाओं के गुमराह होने की बड़ी वजह रोजगार के अवसरों का न होना है, जिसके लिए पिछले दस-वर्षो में काफी प्रयास किए गए, उसका सकारात्मक नतीजा भी दिखाई देने लगा था मगर अभी जिस तरह से वहां कश्मीर की आजादी के नारे लगने शुरू हुए हैं और पाकिस्तान का झंडा लहराया जाने लगा है, उसने यही जाहिर किया है कि वजहें और भी हैं. पाकिस्तान से कश्मीर में आतंकवाद को मिल रही मदद छिपी नहीं है, उसके चलते घाटी के कुछ अलगाववादी संगठन युवाओं को गुमराह करने में सफल होते रहे हैं मगर जब से कश्मीर में नई सरकार बनी है, युवाओं में अलगाववादी मानसिकता गहरी होती गई है यह केवल रोजगार की कमी की वजह से या सेना की ज्यादतियों के चलते पैदा हुई मानसिकता नहीं है,इसमें एक प्रकार की धार्मिक कट्टरता है, यह कट्टरता इस्लाम को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बन रहे माहौल की वजह से भी पैदा हुई है. जब पूरी घाटी में हजारों लोग इस तरह अलगाववादी नारे लगाते हुए निकल पड़े तो सोचने की जरूरत है कि इस मानसिकता को, इस प्रतिरोध को सेना के बल पर नहीं दबाया जा सकता.इस पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है.
हम अपने ही देश में एक दूसरे  को क्यों नहीं पहचान पाते?
यह कितना दुर्भाग्यजनक है कि एक ही देश में रहने वाले एक दूसरे को नहीं पहंचानते कि वह अपने देश का है या दूसरे देश का! यह आज की बात नहीं, कई सालो से चला आ रहा है कि अपने ही देश में रहने वाले एक दूसरे को सही ढंग से नहीं जान पाये. केरल, आन्ध्रप्रदेश,कर्नाटक में रहने वाला जब मध्यभारत में आया तो उसे लोग मद्रासी या अण्णा कहकर पुकारने लगे जबकि इन प्रांतों में रहने वाले न तो मद्रासी कहलाते हैं न अण्णा, दक्षिण से आने वाले हर शख्स को मद्रासी और मध्यभारत या अन्य किसी प्रदेश से दक्षिण पहुंचने वाले को हिन्दी-पंजाबी-गुजराती-बंगाली से पुकारा जाने लगा. वही उत्तरी राज्यों के लोगों को भारतीय होने के बाद भी चीनी, नेपाली, जापानी जैसे बनाकर  पेश किया जाने लगा.हम न अपनी भौगोलिक स्थिति को पूरी तरह समझ पाये और न ही सामाजिक व्यवस्था और वातावरण को समझ पाये कुछ ऐसा ही हुआ जब  मणिपुरी युवती  दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर पहुुंची.कथित तौर पर उससे बदसलूकी हुइ्र्र. इस युवती ने अपने फेसबुक पेज पर लिखा  कि एक आव्रजन अधिकारी ने उससे पूछा कि क्या वह सचमुच भारतीय है और सबूत के तौर पर उसे भारत के राज्यों की संख्या गिनाने को कहा, उसके साथ और भी कुछ मजाक किए गए, जो साफ है कि उसके पूर्वोत्तर भारत की होने की वजह से थे.अक्सर यह बात एक दूसरे राज्यों  से आने-जाने वालों के साथ होती ही है. कोई उत्तर भारत से दक्षिण पहुंचने वाले को समोसा कहकर पुकारता है तो कोई दक्षिण भारत से पहुंचने वालों को इडली समोसा और गुजरात से पहुंचने वालो को ढोकला आदि, बहरहाल यह सबकुछ एक दूसरे की संस्कृति , सामाजिक व्यवस्था भाषा को न जानने के कारण होता है. कुछ मामले जैसा इस मणिपुरी युवती के साथ हुआ शायद इसके पीछे और दूसरे कारण भी रहे होंगे जो आब्रजन अधिकारियों ने मजाक या युवती को हरास करने के लिये किया हो. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने उसकी फेसबुक पोस्ट को लेकर ट्विटर पर टिप्पणी की है और इस मामले में गृह मंत्री राजनाथ सिंह से बात करने का वादा किया है. गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू ने भी इस मामले में कार्रवाई करने का आश्वासन दिया है. रिजिजू खुद पूर्वोत्तर भारत से आते हैं. यह इंसान की फितरत है कि वह अपने साथ तो उदार व्यवहार चाहता है, पर दूसरों के प्रति अनुदार हो जाता है. जो भारतीय विदेशों में हैं, वे आम तौर पर वहां के उदारवादी नेताओं और पार्टियों के समर्थक होते हैं, जैसे अमेरिका में बसे बहुसंख्यक भारतीय डेमोक्रेटिक पार्टी और ग्रेट ब्रिटेन में बसे हुए भारतीय लेबर पार्टी के समर्थक हैं, यह स्वाभाविक भी है, क्योंकि वहां वे अल्पसंख्यक हैं और वे ऐसी राजनीतिक शक्तियों का समर्थन करते हैं, जो धर्म या नस्ल के आधार पर अल्पसंख्यकों के साथ ज्यादा उदार और समानता की राजनीति के पक्षधर हैं लेकिन अपने देश में हम यह बराबरी नहीं चाहते. हमारे देश में धार्मिक या नस्लीय आधार पर भेदभाव के शिकार विदेशी ही नहीं, भारतीय नागरिक भी होते हैं. अक्सर हमारे देश में व्यावहारिक अवधारणा बहुत संकुचित होती है.उत्तर भारतीयों के लिए भारत और भारतीय संस्कृति का आधार उत्तर भारतीय हिंदू समाज है, जबकि दक्षिण भारतीयों के साथ भी कमोबेश यही स्थिति है. पूर्वोत्तर भारत के लोग इस अवधारणा में अंटते ही नहीं हैं, और चूंकि वे जनसंख्या के लिहाज से अल्पसंख्यक हैं, इसलिए उनके साथ बराबरी और सम्मान का व्यवहार करना जरूरी नहीं माना जाता.हम कितना ही कहें कि अनेकता में एकता हमारी विशेषता है, लेकिन वास्तविकता यह है कि अपने से अलग रंग-रूप या संस्कृति के लोगों को हम अपना नहीं मान पाते. पूर्वोत्तर भारत से आए लोगों के साथ बदसलूकी और हिंसा की घटनाएं आए दिन सुनने में आती हैं, दिल्ली में तो पिछले सालों में अनेक ऐसी घटनाएं सिर उठा चुकी है. एक छात्र की तो हत्या तक कर दी गई थी इसके बाद पूर्वोत्तर के छात्रों ने अच्छा खासा हंगामा किया था. र कभी-कभी तो ऐसा लगता है कि आधुनिकता के बढऩे के साथ जो दुराग्रह घटने चाहिए थे, वे दरअसल बढ़ रहे हैं.

















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