छत्तीसगढ़ में बढ़ते अपराध....क्यों दुष्टों का पनाहस्थल बना हुआ है राज्य?


अरूणाचल पर सुप्रीम फैसला...अब सवाल नबाम तुकी के बहुमत हासिल करने का!

उत्तराखंड के बाद अरुणाचल प्रदेश पर  सुप्रीम कोर्ट के निर्णय से मोदी सरकार की अच्छी खासी किरकिरी हुई है. यहां कांग्रेस की सरकार को फिर से बहाल करने का आदेश दिया है.यह पहली बार है जब सुप्रीम कोर्ट ने किसी पुरानी सरकार को स्थापित करने का फै सला दिया है.गवर्नर द्वारा बुलाए गए विधानसभा सत्र को तक सुको ने असंवैधानिक करार दिया  है. कोर्ट ने सवाल उठाया  है कि क्या राज्यपाल कानून व्यवस्था को ताक पर रखकर ऐसे फैसले ले सकते हैं?राज्यपाल के निर्णय पर देश की सबसे बड़ी अदालत ने विधानसभा सत्र बुलाने के अलावा 9 दिसंबर के बाद की कार्रवाई को भी असंवैधानिक माना है.अदालत के इस फैसले के बाद राज्य में नबाम तुकी सरकार बहाल हो गई. अरुणाचल प्रदेश के स्पीकर नबम रेबिया ने सुप्रीम कोर्ट में ईटानगर हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमें 9 दिसंबर को राज्यपाल जेपी राजखोआ के विधानसभा के सत्र को एक महीने पहले 16 दिसंबर को ही बुलाने का फैसले को सही ठहराया था, इसके बाद 26 जनवरी को राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया और कांग्रेस की नबम तुकी वाली सरकार परेशानी में आ गई क्योंकि 21 विधायक बागी हो गए, इससे कांग्रेस के 47 में से 26 विधायक रह गए। इससे पूर्व भाजपा को उत्तराखंड में लगे झटके के बाद यह दूसरा झटका है, जो राज्यों में विपक्षी सरकारों के विद्रोही विधायकों के सहारे सरकार बनाने की भाजपा की कोशिशों को लगा है. दोनों ही राज्यों में इस हार के लिए खुद भाजपा जिम्मेदार है. उत्तराखंड की ही तरह अरुणाचल  में भी कांग्रेसी विधायकों के टूटने से कांग्रेस सरकार अल्पमत में आ गई थी. ऐसे में, संयम का परिचय देते हुए, सांविधानिक मर्यादाओं का पालन करते हुए आगे बढऩा ज्यादा समझदारी होती इसके बजाय भाजपा ने जल्दबाजी कह और राज्यपाल का दुरुपयोग करके स्थिति बिगाड़ ली। भाजपा बार-बार यह तर्क देती रही है कि कांग्रेस ने कितनी ही बार संविधान के अनुच्छेद 356 का दुरुपयोग करके राष्ट्रपति शासन लगाया  लेकिन भाजपा को यह याद रखना चाहिए कि कांग्रेस द्वारा दुरुपयोग के उदाहरण उसके अपने दुरुपयोग को सही नहीं ठहरा सकते. कांग्रेस ने जब ऐसा दुरुपयोग किया था, तो वह दौर अलग था, तब गठबंधन सरकारे हुआ करती थी,  क्षेत्रीय पार्टियों को केंद्रीय राजनीति में इतनी महत्वपूर्ण जगह नहीं मिली थी. क्षेत्रीय पार्टियां आमतौर पर अनुच्छेद 356 के इस्तेमाल की सख्त विरोधी रही हैं, क्योंकि इसका नुकसान उनकी राज्य सरकारों को भुगतना पड़ा है। इस मायने में राजनीतिक माहौल अब अलग है.अदालत ने एक तरह से इस मामले में राष्ट्रपति शासन लगाने के केंद्र के अधिकार को अत्यंत सीमित कर दिया था,इसी से पिछले काफी वक्त से राजनीतिक वजहों से राष्ट्रपति शासन लगाने की घटनाएं लगभग बंद हो गई थीं, भाजपा की मौजूदा सरकार ने दो साल में ही दो राज्य में राजनीतिक आधार पर राष्ट्रपति शासन लगाकर एक ऐसी प्रवृत्ति को फिर चलन में ला दिया, जो अपनी प्रासंगिकता खो चुकी है. कुछ-एक मामलों में  केंद्र ने राज्यों को ज्यादा अधिकार देने की पहल भी की है, लेकिन अरुणाचल और उत्तराखंड  दोनों मामलों से वह यह सीख सकती है कि सांविधानिक मर्यादाओं का पालन करना कितना जरूरी है.सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर केन्द पुनर्विचार याचिका लेकर जा सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल द्वारा छै महीनों के दौरान लिये सारे फैसलों को भी रद्द कर दिया है. अब विपक्ष केन्द्र से उनके इस्तीफे की मांग भी करने लगा है. सुप्रीम
कोर्ट के पांच जजों की संविधान पीठ ने यह फैसला दिया है. विलंब से आए इस निर्णय को लागू करने के बाद कुछ अड़चनें आ सकती है जैसे सवाल उठ रहा है कि क्या पूर्व मुख्यमंत्री नबाम तुकी अब बहुमत हासिल कर पाएंगे...? गैरकानूनी सरकार बनाने के लिए जवाबदेह गवर्नर क्या देंगे त्यागपत्र...?  सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बावजूद बहुमत का फैसला विधानसभा में होगा, जहां संख्याबल बीजेपी के साथ है, सवाल यहां यही बना हुआ है कि क्या अरुणाचल प्रदेश में संख्या बल की राजनीति ही जीतेगी...?

प्रशांत सागर में चीन की जासूसी... चीन की महत्वाकांक्षा क्या है? ?

इन दिनों भारत, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका का एक संयुक्त नौसैनिक अभ्यास जापान के पास पश्चिमी प्रशांत सागर में किया जा रहा है, जिसमें अमेरिकी विमानवाहक जहाज जॉन सी स्टेनिस भाग ले रहा है.जॉन सी स्टेनिस के कमांडर का कहना है कि एक चीनी जासूसी जहाज ने उनका पीछा किया। उनके मुताबिक, चीनी जहाज दक्षिण चीन सागर से उनके पीछे आया और आठ-दस मील की दूरी पर बना रहा. चीन का कहना है कि वह अपने कानूनी अधिकार और नौवहन की स्वतंत्रता के तहत काम कर रहा है. दक्षिण चीन सागर एक तरफ से चीन और बाकी तरफ से वियतनाम, ताइवान, फिलीपींस, इंडोनेशिया, जापान वगैरह देशों से घिरा हुआ है. यह अपेक्षाकृत छोटा समुद्र पश्चिमी प्रशांत सागर की ओर खुलता है और यह चीन के लिए पश्चिमी प्रशांत की ओर जाने का रास्ता है.चीन दक्षिणी प्रशांत सागर को अपना प्रभाव क्षेत्र मानता है और इलाके के सारे देशों से समुद्री अधिकार क्षेत्र को लेकर उसका झगड़ा है. झगड़े की वजह सामरिक और व्यापारिक वर्चस्व के अलावा यह भी है कि इस क्षेत्र में तेल के भारी भंडार होने की संभावना है.चीन इस क्षेत्र में सबसे ताकतवर देश है, इसलिए बाकी देश उसकी महत्वाकांक्षा से डरे हुए हैं. इन देशों का कहना है कि इस क्षेत्र में और इसमें मौजूद तमाम द्वीपों पर चीन अपना हक जता रहा है और कुछ कृत्रिम द्वीप भी बना रहा है, जो अंतरराष्ट्रीय संधियों और कानूनों का उल्लंघन है. चीन यह भी कहता है कि वह अपने अधिकारों की रक्षा कर रहा है. चीन की महत्वाकांक्षा को नियंत्रित करने के लिए तमाम आसियान देश साझा रणनीति बनाने की कोशिश कर रहे है, इसी बीच चीन और आसियान देशों के विदेश मंत्रियों की एक बैठक भी हुई, जिसमें दक्षिण चीन सागर को लेकर विचार-विमर्श किया गया.सम्मेलन के बाद एक साझा बयान जारी किया गया, जिसमें चीन का नाम लिए बगैर इस क्षेत्र में अपनी ताकत दिखाने की उसकी प्रवृत्ति की आलोचना की गई थी, लेकिन कुछ ही देर बाद यह बयान वापस ले लिया गया और कहा गया कि सभी विदेश मंत्री अपना-अपना बयान जारी करेंगे.जापान और चीन के बीच भी समुद्री सीमा को लेकर विवाद है. पूर्वी चीन सागर में जापान के पास कई छोटे-छोटे द्वीप हैं, जिन्हें जापान चीन के खिलाफ अपनी रक्षा पंक्ति की तरह इस्तेमाल करता है और उन पर उसने रडार व अन्य यंत्र लगा रखे हैं। चीन इन द्वीपों पर भी अपना दावा जताता है। उसका मुकाबला करने के लिए इस क्षेत्र के तमाम प्रजातांत्रिक देश मिलकर जो कोशिश कर रहे हैं, उसमें भारत भी उनके साथ है. चीन का विवाद वियतनाम के साथ भी है और भारत जहां दक्षिण चीन सागर में तेल की खोज के लिए वियतनाम की मदद कर रहा है, वहीं उससे ब्रह्मोस मिसाइल बेचने का एक समझौता भी किया है। इसी रणनीति का हिस्सा अमेरिका, भारत और जापान का संयुक्त नौसैनिक अभ्यास है.जापान का कहना है कि चीनी जासूसी जहाज उसकी समुद्री सीमा में प्रवेश कर गया था। हो सकता है कि चीन का इरादा जासूसी करने से ज्यादा अपनी नाराजगी जताने का हो, लेकिन एक-दूसरे की समुद्री सीमा में घुस आने की शिकायतें इस क्षेत्र के तमाम देशों और चीन के बीच लगातार चलती रहती हैं। देखना यह है कि ये विवाद कहां तक जाएंगे, क्योंकि चीन की आक्रामकता बढ़ रही है। इस क्षेत्र का सामरिक और आर्थिक महत्व बढऩे ही वाला है। निकट भविष्य में भले ही कोई युद्ध न हो, लेकिन ज्यादा टकराव की खबरें सुनने को मिलेंगी. दूसरी ओर चीन- भारत के बीच सीमा विवाद कभी भी विस्फोटक रूप धारण कर ले तो भी आश्चर्य नहीं. इसके संकेत बार बार मिलते रहते हैं. चीन की किसी बातों पर भरोसा भी नहीं किया जा सकता.

छत्तीसगढ़ में बढ़ते अपराध....क्यों दुष्टों का पनाहस्थल बना हुआ है राज्य?
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर सहित प्रेदेश के सभी  बड़ी शहर यहां तक कि कस्बे भी इन दिनों अपराधियों के लिये  स्वर्ग बने हुए हैं. स्थानीय अपराधियोंं की बात छोडिय़े बाहरी अपराधियों ने भी रायपुर को छिपने का अपना अच्छा ठिकाना बना लिया है. बाहर से आये अपराधी कोई न छोटा मोटा बिजनेस शुरू करने का नाम पर यहां आते हैं फिर अपने और साथियों को यहां बुलवा लेते हैं. कई ऐसे भी है जो पडोसी देश के रहने वाले हैं जिन्हें तुरंन्त फुरन्त सारी सुविधाएं उपलब्ध करा दी जाती है जिसमे बिजली गैस कनेक्शन से लेकर और सारी मूलभूत सुविधाएं शामिल है.अपराधी तत्व यह भी जानते हैं कि पैसा देने से यहां कुछ भी काम हो जाता है तो इसे प्राप्त करने के लिये पैसा भी वे पानी की तरह बहाते हैं राजधानी रायपुर में सड्डू से हीरापुर जरवाय नंदनवन तक के पूरे इलाके में कई ऐसे लोगो की बसाहट चर्चा का विषय है.भारी संख्या में बाहरी तत्वों के प्रवेश पर किसी प्रकार की लगाम नहीं होने के चलते यहां अपराधों की बाढ़ आ गई है. इसका खामियाजां यहां रहने वालों को भुगतना पड़ रहा है. बीते दिनों में हुई कई गंभीर किस्म की घटनाओं से तो शहर में लोगों को बाहर निकलने में भी डर लगने लगा है. कानून और व्यवस्था की स्थिति एकदम चौपट हो चुकी है. सभ्य लोग जो कभी रास्ता चलते किसी से टकरा जाने पर भी उत्तेजित होकर भिड़ जाते थे वे आजकल के अपराधियों से इतने भयभीत हो चुके हैं कि कोई अपशब्दों का प्रयोग कर दे तो भी शांत भाव से मुस्कराकर चल देते हैैं चूंकि उन्हें भय रहता है कि कहीं कटार व पिस्तौल निकालकर उसका काम तमाम न कर दें. स्थानीय  स्तर पर भी कम उम्र के नौजवान बेरोजगारों के बड़े बड़े गेंग शहर में मौका देखकर वारदात को अंजाम दे जाते हैं. जिसपर पुलिस की कोई पकड़ नहीं है-कुछ चोरी लूटपाट और नशें का व्यापार करते हैं तो कुछ बड़ी बड़ी बड़ी वारदातों से रोज सुर्खियों में आ रहे हैं. बहरहाल बहुत दिनों या कहें बहुत सालों से राजधानी व आसपास के शहरों में पुराने चड्डी बनियान गिरोह का नाम सुनाई नहीं दे रहा था लेकिन अब लगता है कि उनका भी दुर्भावगमन इस राज्य में हो चुका है तथा उन्होंने शिवनाथ एक्सप्रेस में लूट, ट्रेन पर पथराव कर अपनी उपस्थिति दर्ज करा दी है.बिल्हा से चकरभाठा स्टेशन के बीच बनियान गिरोह न गत शुक्रवार रात ढाई घंटे के भीतर दो ट्रेनों में लूट की यात्रियों को इस बात की खुशी रही कि आरपीएफ स्कार्टिंग पार्टी ट्रेन में थी जिसके ट्रेन से उतरते ही डकैतों ने उनपर भी  पथराव किया. इससे दो यात्रियों के सिर पर चोटें आईं.हमारे प्रदेश के लोग बहुत सहनशील है वे जुल्म सहन कर लेते हैं लेकिन शिकायत नहीं करते=कुछ इस मामले में भी ऐसा ही हुआ. सर फटकर खून बहने के बाद भी लोगों ने सोचा कौन शिकायत करके पुलिस और अदालत के चक्कर लगाये? वैसे भी  रिपोर्ट लिखा देेंगें तो क्या पुलिस उनको जो नुकसान हुआ उसकी भरपाई कर देगी? पुलिस को जनता के प्रति उत्तरदायी बनाने के लिये भी सरकार को कुछ करना चाहिये.अगर कोई किसी पुलिस क्षेत्र में लुट जाता है, किसी को कोई परेशानी अपराधियों से होती है तो इसकी जिम्मेदारी उस क्षेत्र के पुलिस व वहां तैनात अधिकारियों पर तय होना चाहिये. राजधानी रायपुर में पिछले कुछ दिनों के दौरान सीरियल उठाईगिरी या सरे आम सड़क पर लूट की वारदाते हुई हैं. संदेह है कि यह काम बाइक पर हेलमेट लगाकर तेज गाड़ी चलाने व विचित्र आवाज के हार्न बजाते घूमने वाले लड़कों की कारस्तानी हो सकती है.. रायपुर, दुर्ग, बिलासपुर, राजनांदगांव जैसे शहरों में  महिलाओं के गले से सरे आम चैन स्नेचिंग की घटनाएं होती रहती हैं.गिरोह पकड़े भी जाते हैं किन्तु पुलिस की निगरानी  व  सख्त गश्त के बगैर इनपर  नियंत्रण नहीं पाया जा रहा है. चोरी, लूट की तो इतनी घटनाएं हो रही है कि उसका कोई हिसाब नहीं है. कई लोग अपने ऊपर होने वाले जुर्म की शिकायते लेकर थानों में नहीं पहुंचते: ऐसा ही कुछ महिलाओं के साथ भी हो रहा है जिनके साथ मनचलों व बदमाशों द्वारा होने वाले दुव्र्यवहार की शिकायते थानों तक नहीं पहुंच रही है. कानून के लचीलेपन के कारण भी लोग अपने ऊपर होने वाले जुर्म को सहकर चुप  बैठने के लिये मजबूर हैं.
























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