भागम भाग....और अंतिम पढ़ाव राजनीति!
भागम भाग....और अंतिम
पढ़ाव राजनीति!
जंगल परिवार में जानवरों पक्षियों के बीच एक आदत पाई जाती है- जब उनके बीच कोई अपरिचित प्राणी आ जाये तो उनका व्यवहार बदल जाता है मसलन वे कू्ररता करने लगते हैं, यहां तक कि उनपर हिंसक हो जाते हैं. यह बात मनुष्यों के बीच पलने वाले जानवरों विशेषकर डागी में भी पाई जाती है फिर मनुष्य इससे क्यों अलग हो- स्कूल कालेजों में कोई नया छात्र आ जाये तो उससे रेगिंग के नाम पर जो कुछ होता है उससे कोई अपरिचित नहीं है, उसके कपड़े तक फाड डाले जाते हैं.... और अब वर्षो बाद राजनीति में भी कुछ इसी प्रकार की प्रवृत्ति शुरू हो गई है. भारतीय राजनीतिक इतिहास में यूं तो कई राजनीतिक पािर्टयों का उदय और अस्त हुआ किन्तु यह भी पहली बार हो रहा है जब हाल ही उदित हुई एक नई पार्टी विशिष्ट तरह की परिस्थितियों का सामना कर रही है. किसी की नजर उसपर टेड़ी है तो कोई उसे घूरकर देख रहा है तो कोई उसपर झपट रहा है तो कोई हिंसक रूप धारण कर रहा है इतना ही नहीं मीडिया की भी उसपर कोई मेहरबानी नहीं ह,ै विशेषकर इलेक्ट्रानिक मीडिया जो कभी उसके बहुत ही फेवर में दिखाई पड़ता है तो कभी ऐसा लगता है कि उसे बाहर करने का कान्ट्रेक्ट ही ले लिया है.कहते हैं प्रेम और युद्व में सब वाजिब है अब वह समय आ गया है जब प्रेम, युद्व और राजनीति तीनों में सब सही ठहराया जा सकता है.सरकारी सेवा, फिल्म, व्यवसाय, सेना, पत्रकारिता और यहां तक कि सन्यास को छोड़ लोग राजनीति में आ रहे हैं तब कोई न कोई बात तो होगी. आखिर कौन सा क्रेज है जो राजनीति लोगों को आकर्षित कर रही है.ग्लेमर ?अगर यह है तो ग्लेमर की दुनिया में शामिल लोग क्यों राजनीति की शरण में जा रहे हैं. पैसे की बात है तो व्यवसायी, उद्योगपति क्यों राजनीति की तरफ बढ़ रहे हैं?क्या वे और कमाई का लालच लेकर आगे बढ़़ रहे हैं? सेना और पत्रकारिता से जुड़े लोग क्यों राजनीति की तरफ बढ़ रहे हैं। सन्यासियों को क्यों राजनीति अच्छी लग रही है? क्या राजनीति में आत्मशांति भी मौजूद है? पिछले कुछ वर्षो में हुए करोड़ों रूपये के घोटाले तो कहीं लोगों को उसकी तरफ आकर्षित नहीं कर रहे ? कई ऐसे प्रशन हैं जो अब तक अनसुलझे हैं लेकिन एक बात जो हमारी समझ में आ रही है वह कुछ ऐसा लगता है कि राजनीति में अब उन सबका समन्वय हो गया है जो जीवन के प्रत्येक अंग में मौजूद है. जब एक ही जगह सब एक साथ उपलब्ध होजाये तो कोई दूसरी ओर क्यों जाये?वहले एक परिवार में लोग एक सदस्य राजनीति से जुडा चाहते थे,एक सरकारी सेवा से जुड़ा चाहत थे और एक पुलिस से ताकि सारे सदस्य सुरक्षित रहे लेकिन अब सबकुछ बदल गया है. राजनीति में सबकुछ बदल गया है. वंशवाद इसी की उपज है पहले वंशवाद में सिर्फ गांधी परिवार था आज हर दिशा में वंशवाद राजघराने के रूप में मौजूद है. लोकतंत्र के बाद अराजकता फिर तानाशाही....क्या विश्व के इस बड़े लोकतंत्र का भविष्य अब कुछ ऐसा नजर नहीं आ रहा?
.
पढ़ाव राजनीति!
जंगल परिवार में जानवरों पक्षियों के बीच एक आदत पाई जाती है- जब उनके बीच कोई अपरिचित प्राणी आ जाये तो उनका व्यवहार बदल जाता है मसलन वे कू्ररता करने लगते हैं, यहां तक कि उनपर हिंसक हो जाते हैं. यह बात मनुष्यों के बीच पलने वाले जानवरों विशेषकर डागी में भी पाई जाती है फिर मनुष्य इससे क्यों अलग हो- स्कूल कालेजों में कोई नया छात्र आ जाये तो उससे रेगिंग के नाम पर जो कुछ होता है उससे कोई अपरिचित नहीं है, उसके कपड़े तक फाड डाले जाते हैं.... और अब वर्षो बाद राजनीति में भी कुछ इसी प्रकार की प्रवृत्ति शुरू हो गई है. भारतीय राजनीतिक इतिहास में यूं तो कई राजनीतिक पािर्टयों का उदय और अस्त हुआ किन्तु यह भी पहली बार हो रहा है जब हाल ही उदित हुई एक नई पार्टी विशिष्ट तरह की परिस्थितियों का सामना कर रही है. किसी की नजर उसपर टेड़ी है तो कोई उसे घूरकर देख रहा है तो कोई उसपर झपट रहा है तो कोई हिंसक रूप धारण कर रहा है इतना ही नहीं मीडिया की भी उसपर कोई मेहरबानी नहीं ह,ै विशेषकर इलेक्ट्रानिक मीडिया जो कभी उसके बहुत ही फेवर में दिखाई पड़ता है तो कभी ऐसा लगता है कि उसे बाहर करने का कान्ट्रेक्ट ही ले लिया है.कहते हैं प्रेम और युद्व में सब वाजिब है अब वह समय आ गया है जब प्रेम, युद्व और राजनीति तीनों में सब सही ठहराया जा सकता है.सरकारी सेवा, फिल्म, व्यवसाय, सेना, पत्रकारिता और यहां तक कि सन्यास को छोड़ लोग राजनीति में आ रहे हैं तब कोई न कोई बात तो होगी. आखिर कौन सा क्रेज है जो राजनीति लोगों को आकर्षित कर रही है.ग्लेमर ?अगर यह है तो ग्लेमर की दुनिया में शामिल लोग क्यों राजनीति की शरण में जा रहे हैं. पैसे की बात है तो व्यवसायी, उद्योगपति क्यों राजनीति की तरफ बढ़ रहे हैं?क्या वे और कमाई का लालच लेकर आगे बढ़़ रहे हैं? सेना और पत्रकारिता से जुड़े लोग क्यों राजनीति की तरफ बढ़ रहे हैं। सन्यासियों को क्यों राजनीति अच्छी लग रही है? क्या राजनीति में आत्मशांति भी मौजूद है? पिछले कुछ वर्षो में हुए करोड़ों रूपये के घोटाले तो कहीं लोगों को उसकी तरफ आकर्षित नहीं कर रहे ? कई ऐसे प्रशन हैं जो अब तक अनसुलझे हैं लेकिन एक बात जो हमारी समझ में आ रही है वह कुछ ऐसा लगता है कि राजनीति में अब उन सबका समन्वय हो गया है जो जीवन के प्रत्येक अंग में मौजूद है. जब एक ही जगह सब एक साथ उपलब्ध होजाये तो कोई दूसरी ओर क्यों जाये?वहले एक परिवार में लोग एक सदस्य राजनीति से जुडा चाहते थे,एक सरकारी सेवा से जुड़ा चाहत थे और एक पुलिस से ताकि सारे सदस्य सुरक्षित रहे लेकिन अब सबकुछ बदल गया है. राजनीति में सबकुछ बदल गया है. वंशवाद इसी की उपज है पहले वंशवाद में सिर्फ गांधी परिवार था आज हर दिशा में वंशवाद राजघराने के रूप में मौजूद है. लोकतंत्र के बाद अराजकता फिर तानाशाही....क्या विश्व के इस बड़े लोकतंत्र का भविष्य अब कुछ ऐसा नजर नहीं आ रहा?
.
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें