नक्सलियों पर सेना का उपयोग करने में क्यों कतराती है सरकार?
आखिर वे कौन से कारण है, जिसके चलते सरकार नक्सलियों के खिलाफ सेना का उपयोग नहीं करती?हमने भी झीरम घाटी कांड के बाद इन्हीं कालमों में यह बात कही थी कि नक्सलियों से निपटने के लिये सेना का उपयोग किया जाना चाहिये ताकि इस समस्या का तत्काल निदान हो जाये. वास्तविकता क्या है?आप और हम सोचते हैं कि जब सरकार युद्व के साथ देश की अन्य समस्याओं जैसे बाढ़,दंगे, कर्फयू, यहां तक कि किसी गांव के बोर में बच्चा गिर जाय अथवा तेन्दुए के उत्पात से निपटने के लिये भी सेना बुला लेती है तो लगता है कि छत्तीसगढ़ सहित देश की नक्सली समस्या को निपटाने के लिये सेना का उपयोग किया जा सकता है! जो चंद घंटों में ही इस समस्या का हल निकाल सकती है लेकिन यह इतना आसान नहीं चूंकि ऐसा हुआ तो सेना को भारी संख्या में नक्सलियों के साथ- साथ कई निर्दोषों का खून भी बहाना होगा, शायद यही एक कारण है कि वह सेना को इस काम के लिये उपयोग में नहीं ला रही. सेना अपने दुश्मनों से सीधे मुकाबला करती है जबकि नक्सलियों से मुकाबला कुछ भिन्न है, जो एक तरह से आम ग्रामीणों के जीवन को खतरे में डालना भी है. असल में नक्सलियों की लड़ाई का तरीका ही भिन्न है, गुरिल्लाओं की तरह वे छिपकर व अचानक वार करते हैं तथा छितर- बितर हो जाते हैं. घटना को अंजाम देने के बाद वे आम ग्रामीणों के साथ उनके वेष में ही सामान्य नागरिक की तरह घूमने लगते हैं. हाल ही मेरी मुलाकात सेना के एक पूर्व अधिकारी से हुई जो अस्सी के दशक में नक्सलियों की तरह खतरा बन गये खालिस्तानी आतंकवादियों से गांव के गांव को मुक्त कराने के अभियान में शामिल थे. उन्होने नक्सलियों द्वारा हाल ही जवानों को मारकर यूबीजीएल मशीन लूटने को गंभीर बताया है तथा कहा है कि वे इससे बडी वारदात को अंजाम दे सकते हैं. इस हथियार का उपयोग हेलीकाप्टर को मार गिराने के लिये किया जाता है.इधर पंजाब में आंतकवादियों से निपटने के वक्त भारी तादात में निर्दोष भी मारे गये थे शायद सरकार के लिये यह सबक भी नक्सलियों के खिलाफ सेना के इस्तेमाल में बाधक है.नक्सली ग्रामीणों की शक्ल में उनके बीच ही रहते हैं. इसकी जानकारी ग्रामीणों और उस क्षेत्र के पंच -सरपंच सभी को रहती है तथा वे डर के कारण इसकी जानकारी किसी को नहीं देते. जानकारी देने का अंजाम वे अच्छी तरह जानते हैं सिर कलम कर देने की कई वारदातों ने इस डर को और भी गहरा कर दिया है। सेना की कार्रवाई में पहले ग्रामीणों को चुनचुनकर जीवित निकालना चुनौती होती है चूंकि इस कार्रवाही के दौरान दूसरी ओर से गोली चलने की स्थिति में गांव के गांव साफ होने का अंदेशा रहता है. शायद इस बड़े खून खराबे से अपने आपको बचाने के लिये ही सरकार सेना के उपयोग जैसे कदम उठाने से हिचकती है. नक्सलियों की ब्धूह रचना ऐसी है कि निर्दोष ग्रामीणों को पार कर ही उनसे निपटा जा सकता है नक्सली चालाकी से सीधे संघर्ष से बचते हैं. पुलिस, सीआरपीएफ और सीमा सुरक्षा बल के जवानों को भी कड़े प्रशिक्षण के बाद नक्सली इलाकों में तैनात किया जाता है लेकिन गुरिल्ल्रा आक्रमण के आगे वे थोड़ी देर आमना सामना करने के बाद अपने साथियों को खोकर नक्सलियों की खोज में भी असफल हो जाते हैं.इन हालातों में अगर देश के प्रधानमंत्री नक्सली समस्या को देश की अंदरूनी सुरक्षा के लिये गंभीर समस्या मानते हैं तो यह गलत नहीं है.
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