लहर किस ओर ? फिफटी-फिफटी या एक तरफा?
सेोलह मई... कौन बनेगा प्रधानमंत्री? एक अरब बीस करोड़ की आबादी वाले सबसे बड़े लोकतंत्र में इक्यासी करोड़ से ज्यादा मतदाताओं के बीच से इस सवाल का जवाब खोजना आसान नहीं, जितनी मुंह उतनी बाते.. देश की जनता क्या चाहती है?यह उसी समय पता चलेगा जब मतों की गणना होगी मगर यह जरूर कहा जा सकता है कि किसी एक पार्टी को बहुमत नहीं मिलेगा। यह भी नहीं कहा जा सकता कि यूपीए फिर सत्ता में आयेगी और यह भी नहीं कहा जा सकता कि एनडीए सत्ता पर काबिज होगी लेकिन इस समय सिहासन के सबसे करीब कोई अपने आपको देख रहा है तो वह है भारतीय जनता पार्टी. चुनाव घोषणा से पूर्व तक उसने देश के कुछ हिस्से में कम से कम माहौल तो ऐसा बना लिया है किन्तु यह भी मानकर चलना चाहिये कि भाजपा का अकेले सत्ता पर काबिज होना आसान नहीं वह दो सौ बहत्तर का बहुमत लाने का दावा कर रही है लेकिन इतनी सीटे कहां से लायेंगी?खुद बहुमत के लायक सीटो पर भाजपा चुनाव नहीं लड़ रही जबकि कुछ सीटे उसने अपने सहयोगियों को बांट दी है. प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार रेलियों में लच्छेदार भाषणों से माहौल बनान का प्रयास जरूर कर रहे हैं लेकिन रेैलियों की भीड़ जो टीवी पर दिखाई जा रही है उस पर भी सवाल उठने लगे हैं. यह रहस्योद्घाटन हुआ है कि रैलियों में भीड़ की हकीकत वास्तवमें वह नहीं है जो टीवी पर दिखाई जा रही है रैलियों में ऐसे कैमरे लगाये जाते हैं जो पचास हजार या एक लाख की भीड़ को कई गुना बनाकर दिखाती है। इसकी पुष्टि कुछ दिन पूर्व भाजपा नेता वरूण गांधी स्वंय कोलकत्ता रैली के बाद कर चुके हैं। इस चुनाव में युवा महत्वपूर्णा भूमिका अदा करेंगे। भाजपा या मोदी के सिहासन के लिये हिन्दी भाषी बेल्ट पर हरी झंडी दिखती है तो 250 सीटो वाले दक्षिण, पूर्वोत्तर राज्यों में भाजपा का आधार नहीं । तीसरा मोर्चा का कई स्थानों पर बहुकोणीय मुकाबला है और ऐसे मुकाबले भी चुनाव में भाजपा के लिये मुसीबत बनेंगे। एक तरह से यही कहा जा सकता है कि हिन्दी बेल्ट वाले कई क्षेत्रों से जहां भाजपा को हरी झंडी है तो दूसरी व तीसरी तरफ सब लाल झंडी हैं. हरी झंडी वाले क्षेत्रों से एक बड़ा क्षेत्र जहां कांग्रेस शासित व कांग्रेस समर्थित है तो कुछ हिन्दी भाषी क्षेत्र आज भी जातिगत आधार पर वोट को बांटे हुए है। इनमें से बहुत से क्षेत्र में नवनिर्मित आम आदमी पार्टी और तीसरे मोर्चे की घुसपैठ ने चुनौती पैदा कर दी है। आम आदमी पार्टी दिल्ली में अपनी सफलता से उत्साहित है तो उसकी चुनौती भी भाजपा के हर उस क्षेत्र में हैं जहां भाजपा अब अपना वर्चस्व जमाने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस ने विकास जरूर किया लेकिन इसके प्रचारित नहीं होने का खामियाजा उसे भुगतना पड़ सकता है। तीसरे मोर्चे के उदय ने भी भाजपा को दिल्ली में पताका फहराने से रोकने की कोशिश की है। भाजपा गठबंधन के बगैर केन्द्र में सत्तारूढ नहीं हो सकती, उसने जहां लोजपा को दलित वोट बटोरने के लिये सहयोगी के रूप में चुना तो महाराष्ट्र में नितिन गडकरी की राज ठाकरे से मुलाकात के कारण शिव सेना से दोस्ती टूटती नजर आ रही है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी जहां अब भी मजबूत है तो उन्हें अन्ना का भी साथ मिला है। तामिलनाडृू में जयललिता का पताका अभी भी फहरा रहा है। यहां से भाजपा को कोई उम्मीद नहीं करनी चाहिये। जयललिता तीसरे मोर्चे से पहले ही सांठगांठ कर चुकी है जबकि आंन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना में अभी कुछ कहा नहीं जा सकता। कर्नाटक और पूर्वोत्तर के राज्यों में कांग्रेस अभी हाल के चुनावों में अच्छा प्रदर्शन कर चुकी है। कांग्रेस कों केरल सहित पूर्वोत्तर के राज्यों से फिर फायदा होने की आशा है जबकि महाराष्ट्र में क्या होगा इसका अंदाज भी अभी से नहीं लगाया जा सकता।
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