सिंहासन छीनने, पाने व अस्तित्व कायम रखने की लड़ाई!
सिंहासन छीनने, पाने व अस्तित्व कायम रखने की लड़ाई!
यूपीए, एनडीए, तीसरा मोर्चा और छुटकू(?) पार्टी- 'आप -यह चार पहलवान इस बार लोकसभा चुनाव के अखाड़े में हैं इनमें से कौन सत्ता पर काबिज होगा इस पर अभी से कयास लगाना मुश्किल है लेकिन पार्टियां जिस ढंग से ताल ठोक रही हैं उससे लगता है कि मुकाबला न केवल रोमांचक होगा वरन कई पार्टियों का अस्तित्व भी दाव पर लगा हुआ है। ससंद में पिछले एक सप्ताह के दौरान जो कुछ हुआ वह लोकतांत्रिक व्यवस्था का अभूतपूर्व समय माना जा सकता है जो सत्ता पर काबिज होने के लिये अब तक किया गया सबसे बड़ा कूटचक्र कहा जाये तो अतिशयोक्ति नहीं होगी।
सत्ता पर दस साल काबिज रहने के बाद कांगे्रस नीत यूपीए चुनाव के बाद क्या फिर सत्ता पर काबिज होगी? या एनडीए, तीसरा मोर्चा अथवा 'आपÓ? राज्यों के विधानसभा चुनाव नतीजों ने देश के चुनाव का समीकरण ही बदलकर रख दिया है। छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, राजस्थान,और मणिपुर चुनाव में जहां भाजपा और कांग्रेस काबिज हो गये वहीं दिल्ली में किसी पार्टी को बहुमत न मिलना तथा आम आदमी पार्टी का उदय तथा बाद में उसका कांग्रेस के समर्थन से दिल्ली में सरकार बनाना पूरे देश की राजनीति को नया मोड़ देने में कारक बना।
राजनीति किस तरह अपना रंग बदलता है यह विधानसभा चुनाव के बाद साफ हुआ चुनाव के पूर्व तक भाजपा अपना माहौल बना चुकी थी। नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार घोषित कर भाजपा ने अपना पासा फेका तो कांग्रेस अपने पत्ते खोलने में चूक गई लेकिन चुनाव में भारी हार के बाद यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी ने यह कहा कि उचित समय पर वे प्रधानमंत्री उम्मीदवार की घोषणा करेंगी लेकिन राहुल गांधी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार बनाने की जगह चुनाव का नेतृत्व दिया। कांग्रेस एक तरह से दिल्ली में अपनी पार्टी की भारी पराजय और आप के अचानक उदय से घबरा गई। इसका फायदा भारतीय जनता पार्टी ने उठाया। मोदी अपनी भाषण की शैली से जहां युुवाओं में अपना सिक्का कायम करने में कुछ हद तक कामयाब हुए वहीं वह भी 'आपÓ के उदय और दिल्ली में कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाने से कुछ हद तक निराशा के माहौल में आ गई, इस माहौल से निकलने के लिये कई प्रकार के हथकंडे अपनाये।
भाजपा का समीकरण फिर उस समय बदलता नजर आया जब आप जनलोकपाल बिल को लेकर सत्ता से बाहर आई और उसने लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान किया। आप ने बीस उम्मीदवारों की घोषणा भी कर दी। इधर जयललिता, जिससे भाजपा को बहुत आशा थी, ने लोकसभा चुनाव के लिये वामपंथियों से गठबंधन कर नरेन्द्र मोदी के मनसूबे को बहुत हद तक लगाम लगा दी। दूसरी ओर मुलायमसिंह एंड कंपनियो ने मिलकर तीसरा मोर्चा खड़ा करने की पहल की। नरेन्द्र मोदी यद्यपि प्रचार के मोड़ में आज भी आगे चल रहे हैं लेकिन उनके सामने आप सबसे बड़ी मुसीबत के रूप में मौजूद हैं जिसने संपूर्ण समीकरण को ही बिगाड़ कर रख दिया है। चुनावी दंगल में कथित रूप से छोटी पार्टीे आप को ठिकाने लगाने के लिये उसंकी छोटी- छोटी गलतियों पर भी निशाना साधा जा रहा है। कांग्रेस का प्रचार अभियान जहां कतिपय मूददो को लेकर चल रहा है तो भाजपा यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाये हुए है। आप लोकसभा चुनाव के दंगल में कूदने के बाद कांग्र्रेस के दिग्गजों को चुनौती दे रही है मोदी को भी आड़े हाथों लिया है। तीसरा मोर्चा का गठबंधन का रूप कैसा होगा और इसमें कितने खिलाड़ी होंगे यह अभी स्पष्ट नहीं है लेकिन यह स्प्ष्ट है कि इन हालातों में नरेन्द्र मोदी का सत्ता तकर पहुंचना आसान नहीं लगता। पूरा चुनाव शक्ति प्रदर्शन, रैली, वाकयुद्व, छीटाकशी,आरोप- प्रत्यारोप से लड़ा जा रहा है इसमें इलेक्ट्रानिक मीडिया महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है कतिपय चैनलों का रवैया एकदम से पार्टियों की तरफ झुका हुआ अेौर उनके प्रवक्ता की तरह का नजर आता है। इस संबन्ध में कभी मोदी आरोप लगा रहे हैं तो कभी अरविन्द केजरीवाल, केजरीवाल ने तो यहां तक कह दिया है कि इलेक्ट्रानिक मीडिया के मालिकों को पार्टियों ने खरीद लिया है। वैसे पैसा देकर प्रचार के मामले में कांग्रेस जहां सबसे आगे हैं तो रैली में भीड़ जुटाने में भाजपा आगे है। आरोप प्रत्यारोप के दौर में अरविन्द केजरीवाल का आरोप है कि रैली में बीस -बीस करोड़ रूपये तक खर्च हो रहा है जो चुनाव के बाद जनता की जेब से निकाला जायेगा। अभी चुनाव में समय है मगर इससे पूर्व की रिहर्सल सारे चुनावपूर्व के दृश्य को सामने रख रही है। इस बीच यूपीए ने अपना आखिरी अतरिम बजट युवाओं और सैनिको को समर्पित कर एक नया पासा फेका है। तेलंगाना बिल को भी येन केन प्रकारेण पास कराकर सरकार ने ऐन समय चुनाव में अपनी स्थिति को मजबूत करने की कोशिश की है। अभी वह समय नही आया कि साफ तौर पर कहा जाये कि कौन पहलवान पार्टी का हाथ चुनावी दंगल में ऊंचा उठायेगा लेकिन इस चुनाव में युवाओं की भूमिका निर्णायक होगी!
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