कौन जीता, कौन हारा से ज्यादा महत्वपूर्ण रही दलों की प्रतिष्ठा!
रायपुर दिनांक 27 दिसंबर
कौन जीता, कौन हारा से ज्यादा
महत्वपूर्ण रही दलों की प्रतिष्ठा!
उप चुनाव व नगर निकाय चुनावों में बहुत हद तक सत्तारूढ पार्टी की साख का पता चल जाता है कि उसकी नीतियां व कार्यक्रमों को किस हद तक जनता पसंद करती हैं। हाल ही संपन्न निकाय चुनावों में नीतियां और कार्यक्रमों की जगह 'प्रतिष्ठाÓ ज्यादा महत्वपूर्ण रही चूंकि चुनाव का सारा दारोमदार ही सीटों पर कब्जा जमाना था। हालाकि इन चुनावों में तेरह मे से आठ पर कब्जा कर भाजपा ने अपनी साख तो कायम रखी किंतु प्रतिष्ठापूर्ण लड़ाई के चलते चुनावों में पराजय से पार्टी व सरकार को धक्का लगा है। तेरह नगर पंचायतों और नगर पालिकाओं के चुनाव में से अगर पार्टी बेस बहुमत देखे तो भाजपा ही आगे रही, उसने आठ पर कब्जा जमाया है तो शेष पर कांग्रेस को सफलता मिली वैसे इससे भाजपा गदगद हो सकती है लेकिन उसके लिये आठ सीटों पर कब्जा करना उतना मायने नहीं रखता जितना प्रतिष्ठापूर्ण सीटों को गंवाना। एक सीट निर्दलीय के हाथ भी लगी है।बैकुंठपुर में तो कमाल ही हो गया जहां निर्दलीय प्रत्याशी ने कांग्रेस की जमानत जब्त कर भाजपा को भी शिकस्त दे पालिका पर कब्जा कर लिया। रायपुर के निकट वीरगांव नगर पालिका और भिलाई नगर निगम पर सबकी नजर थी। यह दोनों सीटें इसलिये प्रतिष्ठापूर्ण बन गई चूंकि सत्तारूढ़ दल ने इन सीटों को जीतने के लिये अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। शायद यही कारण है कि विपक्ष ने फतह हासिल करने के बाद पहली प्रतिक्रिया में यही कहा कि यहां कांग्रेस की जीत यही दर्शाती है कि सरकार पराजित हुई। राज्य सरकार व संगठन के बड़े बड़े नेता अपने प्रत्याशी को जिताने के लिये पूरे तामझाम से उतरे। यह सही है कि कांग्रेस की तरह भाजपा में भी गुटबाजी है किंतु इस चुनाव में हमें लगता है कि भाजपा की गुटबाजी की जगह उसके चुनाव संचालन की खामियां ज्यादा महत्व रखती हैैं। चुनाव संचालन की जिम्मेदारियंा जिन लोगों के सिपुर्द रही उनमें से अधिकांश को कार्यकर्ताओ ने पसंद नहीं किया। भाजपा भटगांव विधानसभा चुनाव में जीत से गदगद थी और उसे पूरा भरोसा था कि दोनों ही सीट पर आसानी से जीत जायेगी, इस ओवर कान्फीडेंस ने भी भाजपा को पीछे ढकेल दिया। सत्ता में रहते हुए भाजपा ने जहां वैशालीनगर विधानसभा उपचुनाव को भी प्रतिष्ठापूर्ण सीट मानकर लडा और पराजय का सामना किया वहीं भठगांव चुनाव में उसने जीत हासिल कर पराजय पर मरहम पट्टी की किंतु नगर निकायों में वह कांग्रेस से उन सीटों को छीन नहीं सकी जिसपर उसका कब्जा था। वीरगांव और भिलाई निकायों में कांगे्रस की जीत से भाजपा को झटका लगा है। जहां तक चुनाव में ग्रामीण इलाकों का सवाल है-कुल सात नगर पंचायतों के चुनाव नतीजों से यह लगता है कि भाजपा की साख ग्रामीण इलाकों में शहरों के मुकाबले अच्छी है। भाजपा को सात में से चार सीट यहां मिली है जबकि दो सीट कांगेस को तथा एक सीट पर निर्दलीय विजयी हुआ है। दलों की स्थिति के आंकलन का अगला पड़ाव संजारी बालौद है। तेरह सीटों पर जीत पाकर यद्यपि भाजपा उत्साहित है किंतु प्रतिष्ठापूर्ण सीटों पर उसकी पराजय ने हतोत्साहित भी किया है। संजारी बालोद पर भी निकट भविष्य में प्रतिष्ठापूर्ण लड़ाई होगी। यहां भाजपा को कठिन संघर्ष का सामना करना पड़ सकता है।
कौन जीता, कौन हारा से ज्यादा
महत्वपूर्ण रही दलों की प्रतिष्ठा!
उप चुनाव व नगर निकाय चुनावों में बहुत हद तक सत्तारूढ पार्टी की साख का पता चल जाता है कि उसकी नीतियां व कार्यक्रमों को किस हद तक जनता पसंद करती हैं। हाल ही संपन्न निकाय चुनावों में नीतियां और कार्यक्रमों की जगह 'प्रतिष्ठाÓ ज्यादा महत्वपूर्ण रही चूंकि चुनाव का सारा दारोमदार ही सीटों पर कब्जा जमाना था। हालाकि इन चुनावों में तेरह मे से आठ पर कब्जा कर भाजपा ने अपनी साख तो कायम रखी किंतु प्रतिष्ठापूर्ण लड़ाई के चलते चुनावों में पराजय से पार्टी व सरकार को धक्का लगा है। तेरह नगर पंचायतों और नगर पालिकाओं के चुनाव में से अगर पार्टी बेस बहुमत देखे तो भाजपा ही आगे रही, उसने आठ पर कब्जा जमाया है तो शेष पर कांग्रेस को सफलता मिली वैसे इससे भाजपा गदगद हो सकती है लेकिन उसके लिये आठ सीटों पर कब्जा करना उतना मायने नहीं रखता जितना प्रतिष्ठापूर्ण सीटों को गंवाना। एक सीट निर्दलीय के हाथ भी लगी है।बैकुंठपुर में तो कमाल ही हो गया जहां निर्दलीय प्रत्याशी ने कांग्रेस की जमानत जब्त कर भाजपा को भी शिकस्त दे पालिका पर कब्जा कर लिया। रायपुर के निकट वीरगांव नगर पालिका और भिलाई नगर निगम पर सबकी नजर थी। यह दोनों सीटें इसलिये प्रतिष्ठापूर्ण बन गई चूंकि सत्तारूढ़ दल ने इन सीटों को जीतने के लिये अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी। शायद यही कारण है कि विपक्ष ने फतह हासिल करने के बाद पहली प्रतिक्रिया में यही कहा कि यहां कांग्रेस की जीत यही दर्शाती है कि सरकार पराजित हुई। राज्य सरकार व संगठन के बड़े बड़े नेता अपने प्रत्याशी को जिताने के लिये पूरे तामझाम से उतरे। यह सही है कि कांग्रेस की तरह भाजपा में भी गुटबाजी है किंतु इस चुनाव में हमें लगता है कि भाजपा की गुटबाजी की जगह उसके चुनाव संचालन की खामियां ज्यादा महत्व रखती हैैं। चुनाव संचालन की जिम्मेदारियंा जिन लोगों के सिपुर्द रही उनमें से अधिकांश को कार्यकर्ताओ ने पसंद नहीं किया। भाजपा भटगांव विधानसभा चुनाव में जीत से गदगद थी और उसे पूरा भरोसा था कि दोनों ही सीट पर आसानी से जीत जायेगी, इस ओवर कान्फीडेंस ने भी भाजपा को पीछे ढकेल दिया। सत्ता में रहते हुए भाजपा ने जहां वैशालीनगर विधानसभा उपचुनाव को भी प्रतिष्ठापूर्ण सीट मानकर लडा और पराजय का सामना किया वहीं भठगांव चुनाव में उसने जीत हासिल कर पराजय पर मरहम पट्टी की किंतु नगर निकायों में वह कांग्रेस से उन सीटों को छीन नहीं सकी जिसपर उसका कब्जा था। वीरगांव और भिलाई निकायों में कांगे्रस की जीत से भाजपा को झटका लगा है। जहां तक चुनाव में ग्रामीण इलाकों का सवाल है-कुल सात नगर पंचायतों के चुनाव नतीजों से यह लगता है कि भाजपा की साख ग्रामीण इलाकों में शहरों के मुकाबले अच्छी है। भाजपा को सात में से चार सीट यहां मिली है जबकि दो सीट कांगेस को तथा एक सीट पर निर्दलीय विजयी हुआ है। दलों की स्थिति के आंकलन का अगला पड़ाव संजारी बालौद है। तेरह सीटों पर जीत पाकर यद्यपि भाजपा उत्साहित है किंतु प्रतिष्ठापूर्ण सीटों पर उसकी पराजय ने हतोत्साहित भी किया है। संजारी बालोद पर भी निकट भविष्य में प्रतिष्ठापूर्ण लड़ाई होगी। यहां भाजपा को कठिन संघर्ष का सामना करना पड़ सकता है।
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