क्या गलत बोल दिया शिवराज ने ? यह तो आज की आवाज है!
रायपुर दिनांक 14 दिसबर।
क्या गलत बोल दिया शिवराज
ने ? यह तो आज की आवाज है!
खरी बात किसी के गले नहीं उतरती। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने जब यह कहा कि राज्य सभा अंगे्रजो की देन है, जो अब खरीद फरोख्त की मंडी बनकर रह गई है। तो लोग उनपर पिल पड़े और शिवराज ंिसंह को अपना बयान वापस लेना पड़ा। राज्य सभा ही नहीं आज ऐसी कितनी ही संस्थाएं ऐसी हंै, जिनकी आवश्यकता नहीं है और फिजूल खर्ची बढ़ा रही है। शिवराज ंिसंह जैसे युवा की सोच जब उनकी आवाज बनकर गूंजती है, तो उन लोगों को बुरा लगता है जो परंपरावादी बनकर ऐसी संस्थाओं को बनाकर रखना चाहते हैं। शिवराज ंिसंह ने इस बात की भी वकालत की है कि देश में प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री का चुनाव राष्ट्रपति पध्दति से कराया जाये। चुनावी खर्च कम करने के लिये यह जरूरी है कि विधानसभा और लोकसभा का चुनाव भी एक साथ कराया जाना चाहिये। बकौल शिवराज सिंह ''राज्य सभा का कोई औचित्य नहीं है। राज्य सभा के चुनाव विधायकों के खरीद-फरोख्त की मंडी होती हैं जिससे लोकतंत्र शर्मसार होता है। राज्य सभा के औचित्य पर सवाल उठाते हुए वे कहते हैं कि राज्य सभा ऐसे लोगों के लिये बनाया गया था, जो चुनाव नहीं लड़ सकते। मसलन कलाकार व साहित्यकार, अब तो ऐसे लोग भी चुनाव में हिस्सोदारी निभाते हैं जो इस वर्ग में नहीं आते- यही कारण है कि यह चुनाव विधायकों के खरीद-फरोख्त की मंडी बन जाता है। इस स्थिति से ईमानदारी से राजनीति करने वालों का नुकसान होता है। उद्योगपतियों के लिये चुनाव में पैसा लगाना इंवेस्टमेंट हैं और वे सिर्फ काला धन ही देते हैं। यही कारण है कि नीरा राडिया जैसे लोग जन्म लेते हैं। शिवराज सिंह आज के युवा वर्ग के प्रतिबिम्ब है, उन्होंने जो बात कही वह आज के युवा सोच और उनके दिल से निकली आवाज मानी जानी चाहिये। राज्य सभा से बढ़कर उन्होंने यह बात नहीं कही कि राज्यों में राज्यपालों की नियुक्ति का भी औचित्य क्या है। जबकि यह पद भी राज्यों में अनावश्यक खर्च बढ़ा रहे हैं। सवाल यही है कि इस पद की जरूरत क्या है? जब प्रदेशों में मुख्य न्यायाधीश का पद है तो वे राज्यपाल के दायित्व को भी आसानी से निभा सकते हैं। राज्यपाल के पास सिवाय राज्यों की रिपोर्ट केन्द्र को पे्रषित करने के अलावा सामान्य दिनों में क्या काम बच जाता है? बहुत से ऐसे पद व संस्थाएं हैं, जो सिर्फ कतिपय लोगों को खुश करने के लिये बनाकर रखे गये हैं। शिवराज सिंह की बातों में दम है। इस मुद्दे पर विरोध अपनी जगह है। शिवराज सिंह के बयान का विरोध करने वाले तो करते रहेंगे मगर, देश की व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिये अगर कोई सही सुझाव देता है, तो तंत्र को उसपर गौर करना चाहिये। शिवराज ंिसंह के बयान में बहुत सी बातें देश के चुनाव आयोग को विचार करने के लिये है। कम से कम देश की इस संवैधानिक संस्था को शिवराज के विचारों पर गौर करना चाहिये।
क्या गलत बोल दिया शिवराज
ने ? यह तो आज की आवाज है!
खरी बात किसी के गले नहीं उतरती। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने जब यह कहा कि राज्य सभा अंगे्रजो की देन है, जो अब खरीद फरोख्त की मंडी बनकर रह गई है। तो लोग उनपर पिल पड़े और शिवराज ंिसंह को अपना बयान वापस लेना पड़ा। राज्य सभा ही नहीं आज ऐसी कितनी ही संस्थाएं ऐसी हंै, जिनकी आवश्यकता नहीं है और फिजूल खर्ची बढ़ा रही है। शिवराज ंिसंह जैसे युवा की सोच जब उनकी आवाज बनकर गूंजती है, तो उन लोगों को बुरा लगता है जो परंपरावादी बनकर ऐसी संस्थाओं को बनाकर रखना चाहते हैं। शिवराज ंिसंह ने इस बात की भी वकालत की है कि देश में प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री का चुनाव राष्ट्रपति पध्दति से कराया जाये। चुनावी खर्च कम करने के लिये यह जरूरी है कि विधानसभा और लोकसभा का चुनाव भी एक साथ कराया जाना चाहिये। बकौल शिवराज सिंह ''राज्य सभा का कोई औचित्य नहीं है। राज्य सभा के चुनाव विधायकों के खरीद-फरोख्त की मंडी होती हैं जिससे लोकतंत्र शर्मसार होता है। राज्य सभा के औचित्य पर सवाल उठाते हुए वे कहते हैं कि राज्य सभा ऐसे लोगों के लिये बनाया गया था, जो चुनाव नहीं लड़ सकते। मसलन कलाकार व साहित्यकार, अब तो ऐसे लोग भी चुनाव में हिस्सोदारी निभाते हैं जो इस वर्ग में नहीं आते- यही कारण है कि यह चुनाव विधायकों के खरीद-फरोख्त की मंडी बन जाता है। इस स्थिति से ईमानदारी से राजनीति करने वालों का नुकसान होता है। उद्योगपतियों के लिये चुनाव में पैसा लगाना इंवेस्टमेंट हैं और वे सिर्फ काला धन ही देते हैं। यही कारण है कि नीरा राडिया जैसे लोग जन्म लेते हैं। शिवराज सिंह आज के युवा वर्ग के प्रतिबिम्ब है, उन्होंने जो बात कही वह आज के युवा सोच और उनके दिल से निकली आवाज मानी जानी चाहिये। राज्य सभा से बढ़कर उन्होंने यह बात नहीं कही कि राज्यों में राज्यपालों की नियुक्ति का भी औचित्य क्या है। जबकि यह पद भी राज्यों में अनावश्यक खर्च बढ़ा रहे हैं। सवाल यही है कि इस पद की जरूरत क्या है? जब प्रदेशों में मुख्य न्यायाधीश का पद है तो वे राज्यपाल के दायित्व को भी आसानी से निभा सकते हैं। राज्यपाल के पास सिवाय राज्यों की रिपोर्ट केन्द्र को पे्रषित करने के अलावा सामान्य दिनों में क्या काम बच जाता है? बहुत से ऐसे पद व संस्थाएं हैं, जो सिर्फ कतिपय लोगों को खुश करने के लिये बनाकर रखे गये हैं। शिवराज सिंह की बातों में दम है। इस मुद्दे पर विरोध अपनी जगह है। शिवराज सिंह के बयान का विरोध करने वाले तो करते रहेंगे मगर, देश की व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिये अगर कोई सही सुझाव देता है, तो तंत्र को उसपर गौर करना चाहिये। शिवराज ंिसंह के बयान में बहुत सी बातें देश के चुनाव आयोग को विचार करने के लिये है। कम से कम देश की इस संवैधानिक संस्था को शिवराज के विचारों पर गौर करना चाहिये।
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